Sep 3, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
हाल ही में एक विद्यालय के प्री प्राइमरी शिक्षकों को ट्रेन करने का मौक़ा मिला। ट्रेनिंग के पश्चात अपनी आदतानुसार जब मैं स्वमूल्यांकन कर रहा था, तभी एक शिक्षक की आवाज़ से मेरी तंद्रा टूटी। वे कह रही थी, ‘सर आज का सेशन एकदम परफ़ेक्ट था। उनका इतना कहना था कि अनायास ही मेरे मन से एक प्रतिक्रिया आई, ‘इस दुनिया में पूर्ण या परफ़ेक्ट तो कुछ भी नहीं है।’ मेरी प्रतिक्रिया को सुन वे मुस्कुराई और बोली, ‘आप कह तो सही रहे हैं, ‘इस दुनिया में कुछ भी पूर्ण या परफ़ेक्ट नहीं है। लेकिन इस अपूर्णता में भी पूर्णता है।’
वाह, क्या ज़बरदस्त बुद्धिमत्ता पूर्ण अंतर्दृष्टि थी उस शिक्षिका की, कुछ पलों के लिए तो मैं बिलकुल अवाक था, मैं समझ नहीं पा रहा था कि आगे क्या बोलूँ?, वैसे आगे कुछ बोलने की ज़रूरत भी नहीं थी क्यूँकि उनका संदेश एकदम पूर्ण था। मुझे उनकी प्रतिक्रिया सुन एलिस वाकर की निम्न पंक्तियाँ याद आई, ‘प्रकृति में, कुछ भी संपूर्ण नहीं है और सब कुछ संपूर्ण भी है। पेड़ों की शाख़ या तनों को ही देखिए, कैसे अजीब तरीके से मुड़े-टुडे है, पर वे अभी भी सुंदर हैं।’
वैसे दोस्तों, सिर्फ़ पेड़-पौधे ही क्यों, प्रकृति में सभी चीजें अपने आप में अपूर्ण होते हुए भी पूर्ण है। जैसे समुद्र के रेतीले किनारे, पहाड़ों की चोटियाँ, नदी, हरा-भरा जंगल, रेगिस्तान, सुगंधित फूल, कँटीली झाड़ियाँ आदि सभी कुछ तो किसी ना किसी रूप में अपूर्ण है, लेकिन फिर भी अपनी अपूर्णता के साथ पूर्ण है।
ठीक इसी तरह हम सब इंसान भी अपूर्ण हैं, ढेरों कमियों के साथ इस दुनिया में आए हैं और ढेरों कमियों के साथ ही इस दुनिया से वापस चले भी जाएँगे। शायद इसीलिए तो महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने कहा है, ‘ब्रह्मांड के मूल नियमों में से एक यह भी है कि कुछ भी परिपूर्ण नहीं है। पूर्णता तो असल में कहीं मौजूद ही नहीं है। अपूर्णता के बिना न तो तुम होते, न मैं।’ हमारा जीवन भी प्रकृति के उन्हीं नियमों के द्वारा शासित होता है। हमें भी कभी ऐसा कुछ नहीं मिलेगा जो बिल्कुल सही हो, पूर्ण हो। और एक बार जब आप इस अपूर्णता को स्वीकार लेंगे, तो आप पाएंगे कि चीजों को प्रबंधित करना बहुत आसान हो गया है। अब आप पहले के मुक़ाबले कहीं अधिक प्रफुल्लित, खुश, शांत और मस्त रहने लगे हैं। इतना ही नहीं बल्कि अब आप आध्यात्मिक रूप से भी सशक्त हो गए हैं।
जी हाँ साथियों, आप जिस भी चीज़ को पूर्ण या परफ़ेक्ट मान रहे हैं, उसमें भी कुछ ना कुछ अपूर्ण है। फिर भले ही उसकी रचना आपने ही क्यूँ ना की हो। मुझे तो पूरा यक़ीन है कि महान से भी महान लोग भी अगर पीछे मुड़कर अपना जीवन देखेंगे, तो अपने द्वारा पूर्व में किए गए कार्य को नए तरीके से करना चाहेंगे। जी हाँ, यह बिलकुल सही है, हमें छोड़िए किसी को भी अगर दूसरा मौक़ा दिया जाए तो वह अपना जीवन थोड़ा अलग तरीके से जीना चाहेगा। शायद इसीलिए तो अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है, ‘इस दुनिया में कुछ भी 'पूर्ण' नहीं है, 'पूर्ण' तो बस वह चीजें हैं जिसमें आप अपूर्णताओं को ना देखना चुनते हैं।’
याद रखिएगा, कोई भी व्यवसाय कभी भी परिपूर्ण नहीं होगा, भले ही आपके पास दुनिया का सबसे अच्छा उत्पाद हो, सबसे अच्छी टीम हो, सबसे अच्छा बाज़ार हो। इसी तरह कोई भी नौकरी परिपूर्ण नहीं होगी फिर भले ही आप कितने भी ऊँचे पद पर क्यों ना हो? बाज़ार में भी आपको कभी परिपूर्ण उत्पाद या सर्विस नहीं मिलेगी फिर चाहे आप उसके बदले कुछ भी देने के लिए क्यों ना राज़ी हों और ठीक इसी तरह कभी भी, कोई भी रिश्ता परिपूर्ण नहीं होगा।
लेकिन हाँ, जो बात आपके जीवन को निश्चित तौर पर पूर्णता की ओर ले जाएगी, वह है, इस अपूर्णता को स्वीकारना, उसके साथ जीना। अर्थात् दोस्तों जितना आप इस बात को स्वीकारते जाएँगे कि ‘कुछ भी पूर्ण नहीं है!’ और अपूर्णता के इर्द-गिर्द मौजूद सभी चीजों को अंगीकार करते जाएँगे, उन्हें दिल से स्वीकार करते जाएँगे, उतना ही पूर्णता के साथ जी पाएँगे। इसके लिए आपको अपने अंदर एक नया नज़रिया विकसित करना होगा या यह कहना बेहतर होगा कि सीखना होगा कि कोई भी वस्तु अपनी अपूर्णता के कारण ही पूर्ण है।
जापान के लोगों को देखिए, वे टूटे हुए मिट्टी के बर्तनों को शुद्ध सोने से जोड़कर सुरक्षित रखते हैं। यह उनकी चार सौ साल पुरानी ‘किंत्सुगी’ प्रथा है। इस प्रथा की सबसे मज़ेदार बात तो यह है कि क्षतिग्रस्त बर्तन वहाँ से मज़बूत हो जाता है, जहाँ वो सबसे कमजोर था। वैसे इस प्रथा का इससे भी महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि दोष वाली, अपूर्ण चीज़ को भी और अधिक मूल्यवान बनाया जा सकता है। यही तो बस हमें अपने जीवन में करना है। तो चलिए साथियों, आज से हम अपने जीवन को तमाम ख़ामियों के साथ एक बार फिर ईश्वर के प्रति आभारी रहते हुए गले लगाते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
Comments