Feb 16, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, हम सभी जानते हैं कि संसाधनों में ख़ुशी और तृप्ति तलाशना ही शायद हमारे असंतुष्ट रहने का या जीवन में भटकाव का सबसे बड़ा कारण है। लेकिन इसके बाद भी हम बच्चों के लालन-पालन से लेकर अपने स्वयं के जीवन को बनाने को लेकर यही ग़लती बार-बार दोहराते जाते हैं। उदाहरण के लिए हम बच्चे के बचपन याने उसके वर्तमान को छीन कर उसे पढ़-लिखकर भविष्य में ख़ुशियाँ तलाशने का मार्ग दिखाते हैं। इतना ही नहीं उसके मन में यह बात दृढ़ता पूर्वक अंकित हो जाए, इसलिए हम उसे इसी बात के लिए बार-बार, अनेकों बार टोकते हैं, उसको टुकड़ों में भविष्य के सपने दिखाते हैं। जैसे, पहले तुम दसवीं की बोर्ड परीक्षा अच्छे से उत्तीर्ण कर लो, उसके बाद तो फलाने विषय को पढ़ना ही नहीं है या पहले बारहवीं उत्तीर्ण कर लो उसके बाद तो कॉलेज में मज़े ही मज़े हैं। फिर बच्चा जब कॉलेज में आ जाता है तब हम उसे अगले 5 सालों तक खुद को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए दबाव डालते हैं। जैसे ही वह उस दबाव से बाहर आने लगता है तो पहले हम उसे कैरियर और फिर परिवार बसाने पर ध्यान लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। जी हाँ दोस्तों, कुल मिला कर कहा जाए तो उसे वर्तमान की जगह भविष्य में ख़ुशियाँ तलाशना सिखाते हैं, वह भी धन के माध्यम से।
इस पूरी प्रक्रिया में सबसे मज़ेदार बात यह है कि ऐसा करते वक्त हम यह भी भूल जाते हैं कि इसी प्रक्रिया को सच मान हम अपना बचपन और जवानी दोनों गँवा चुके हैं और आज अपने उस समय को याद कर खुश होते हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो हम बच्चों को उस मार्ग पर विश्वास करने के लिए तैयार करते हैं, जिससे हमें अपने, स्वयं के जीवन में वह नहीं मिला जो असल में हम चाहते थे।
जी हाँ दोस्तों, पद, पैसे, प्रतिष्ठा के बल पर सब कुछ पाने के प्रयास में हम यह भूल जाते हैं कि धन के बल पर भोग की वस्तुएँ अवश्य प्राप्त की जा सकती हैं, लेकिन संतुष्टि, तृप्ति, ख़ुशी और शांति को पाना असम्भव ही है। इसकी सबसे बड़ी वजह दोनों के बीच का अंतर है; पैसा, पद और प्रतिष्ठा जहाँ बाह्य या बाहरी दुनिया से जोड़ता है, अर्थात् आप ख़ुशियों को बाहर तलाशते हैं। वहीं संतुष्टि, तृप्ति, ख़ुशी और शांति आपको अपने अंदर की दुनिया से जोड़ती है अर्थात् आप जीवन को बेहतर बनाने के लिए ज़रूरी चीजों को अपने अंदर ही तलाशते हैं।
वैसे दोस्तों, इसी बात को हम एक और उदाहरण से समझ सकते हैं। जब आप सुख को भोग की वस्तुओं में तलाशते हैं, तब दो बातों की सम्भावना रहती है। पहली, तुम्हें वह वस्तु मिल जाए और तुम उस वक्त के लिए सुखी महसूस करने लगो। दूसरी, तुम्हें वह वस्तु चाहने के बाद भी ना मिल पाए। ऐसी स्थिति में आपके अंदर दुःख और असंतोष पैदा हो सकता है और इसी असंतोष की वजह से सम्भावना है कि आप जो पूर्व में मिला था, उसका सुख भी ना भोग पाओ। इसीलिए तो कहा गया है, ‘धन के बल पर पूरे संसार के भोगों को प्राप्त करने के बाद भी तुम अतृप्त ही रहोगे। रिक्तता, खिन्नता, विषाद, अशांति तुम्हारा पीछा न छोड़ेगी। आशा का दास तो हमेशा निराश ही रहेगा।’
जी हाँ साथियों, इसीलिए असंतोषी व्यक्ति को इस संसार में सबसे ज़्यादा दुखी माना गया है। असंतोष ही इंसान को पाप और निम्न स्तर का आचरण करने के लिए मजबूर करता है। इसके विपरीत जब आप ख़ुशी, शांति, तृप्ति और संतुष्टि को अपने अंदर तलाशते हैं, तब आप प्रसन्न रह पाते हैं।जीवन के प्रत्येक क्षण को आनंद के साथ जी पाते हैं। याद रखिएगा दोस्तों, धन जीवन की आवश्यकता है, उद्देश्य कदापि नहीं, इससे आज तक कोई तृप्त नहीं हुआ। इसलिए, ईश्वर को हर पल अपने अंदर महसूस करते हुए, संतुष्ट रहें एवं जो भी आपके पास है, उसके लिए आभारी रहें, तभी आप अभाव में भी प्रभावी रह पाएँगे। हर पल खुश, मस्त, संतुष्ट और तृप्त रह पाएँगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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