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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

अवचेतन मन की शक्ति से बनें सफल…

Sep 29, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अक्सर मुझसे एक प्रश्न किया जाता है, ‘आप प्रतिदिन एफर्मेशन पर और अचीवमेंट डायरी लिखने पर इतना अधिक ज़ोर क्यों देते हैं? क्या वाक़ई इससे कुछ फ़र्क़ पढ़ता है?’ तो मेरा बड़ा साधारण सा जवाब है, ‘हाँ! निश्चित तौर पर…’ चलिए मेरा ऐसा कहने की वजह को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।


बात कई साल पुरानी है, राजेंद्र नगर के राजा राजवेंद्र के राज में वैसे तो सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। प्रजा अपने राजा के नेतृत्व, व्यवहार, दूरदृष्टि, ख़्याल रखने की प्रवृत्ति आदि सभी से खुश थी। लेकिन पिछले कुछ दिनों में बड़ी चोरी ने उनका जीना दूभर कर दिया था। राजा राजवेंद्र भी चोरी की बढ़ती घटनाओं के कारण बहुत चिंतित थे। काफ़ी सोचने के बाद उन्होंने पूरे राज्य में ऐलान करवा दिया कि ‘राज्य में अगर कोई भी व्यक्ति चोरी करते हुए पकड़ा गया तो उसे तत्काल मृत्युदंड दिया जाएगा।’ इसके पश्चात उन्होंने राज्य के चप्पे-चप्पे में अपने सैनिकों को तैनात कर दिया।


राजा के इस निर्णय का सबसे अधिक प्रभाव, उस राज्य के एकमात्र चोर को पड़ा और उसने मृत्युदंड के डर के कारण चोरी करना बंद कर दिया। इसका असर यह हुआ कि अगले तीन-चार दिनों में ही उसके भूखे मरने की नौबत आ गई। अंत में उसने काफ़ी विचार करके निर्णय लिया कि उसे और कोई काम तो आता नहीं है, इसलिए सैनिकों और मृत्युदंड से डर कर बैठने के स्थान पर चोरी करेगा क्योंकि भूखे मरने से बेहतर है चोरी की जाये। उस रात चोर चोरी की नियत से एक घर में घुसा, लेकिन एक बर्तन के टकरा जाने से हुई आवाज़ के कारण घर वाले जाग गए और ‘चोर… चोर…’ चिल्लाने लगे।


चोर किसी तरह वहाँ से जान बचा कर भागा और उसके पीछे-पीछे पहरे पर तैनात सैनिक। कुछ ही देर में चोर को एहसास हुआ कि भाग कर जान बचाना; सैनिकों को चकमा देना तो संभव नहीं होगा। इसलिए उसने नगर के बाहर पहुँचते ही सबसे पहले अपने कपड़े उतारकर तालाब में फेंके और पास ही में स्थित बरगद के पेड़ के नीचे पहुँचा। उस पेड़ पर बगुले के जोड़े रहा करते थे, इसलिए उस पेड़ के तने के पास बगुलों की बीट पड़ी थी। चोर ने बीट उठा कर अपने माथे पर लगाई और आँखें मूँदकर इस तरह स्वाँग करने लगा, मानो कोई संत-महात्मा साधना में लीन बैठे हों।


कुछ ही देर में सैनिक चोर को खोजते हुए वहाँ तक पहुँच गये, लेकिन उनको कहीं चोर नज़र नहीं आया। तभी हल्का-हल्का उजाला होने लगा और सैनिकों की नज़र ढोंगी बाबा पर पड़ी। उन्होंने बाबा को आवाज़ देकर पूछा कि ‘क्या उन्होंने उधर किसी चोर को आते-जाते हुए देखा है?’ लेकिन ढोंगी बाबा तो उस वक़्त साधना में लीन होने का स्वाँग कर रहे थे, इसलिए कुछ बोले नहीं। सैनिकों को उन पर शंका तो हो रही थी लेकिन वे कुछ बोले नहीं। उन्हें डर था कि कहीं यह ढोंगी सही में संत निकला, तो परेशानी हो जाएगी। अंत में सिपाहियों ने उसपर छिपकर निगाह रखने का निर्णय लिया, जिसका भान जल्द ही चोर को हो गया। इसलिए वो उसी तरह साधना में बैठे होने का ढोंग करता रहा।


इसी तरह अगले २ दिन बीत गये और यह बात राजेंद्र नगर में चर्चा का विषय बन गई कि नगर के बाहर स्थित जंगल के मुहाने पर कोई संत पता नहीं कितने समय से ध्यान लगाकर बैठे हैं। सैनिकों को उनके दर्शन अचानक ही चोर को खोजते वक़्त हुए। जैसे-जैसे यह खबर नगर में फैलती जा रही थी, लोगों की भीड़ बाबा के दर्शन के लिए आने लगी। एक दिन जब यह खबर राजा को लगी तो वे भी बाबा के दर्शन करने के लिए वहाँ पहुँच गये। दर्शन के पश्चात राजा ने ढोंगी बाबा से कहा, ‘महात्मन, आप नगर मे पधारें और हमें सेवा का सौभाग्य दें।’ यह सुन चोर के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया और वह सोचने लगा कि अगर ढोंग करने में इतने प्रेम और श्रद्धा के साथ, मान-सम्मान मिल रहा है, तो सही में संत या महात्मा बनने पर कितना सम्मान होगा। उसने उसी पल चोरी करना त्याग दिया और साधना में लीन हो गया और कुछ ही वर्षों की साधना में अपना लक्ष्य पा लिया।


दोस्तों, जिस तरह एक स्वाँग ने चोर को संत बना दिया ठीक वैसे ही प्रतिदिन एफर्मेशन करना और अचीवमेंट डायरी लिखना आपके अवचेतन मन याने सब कॉन्शियस माइंड को प्रोग्राम करता है और आकर्षण के नियम के साथ-साथ आपके रोम-रोम को आपके लक्ष्य के लिए तैयार करता है। जो अंततः आपको अपने लक्ष्य तक पहुँचाकर सफल बनाता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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