top of page
Search

असफलता स्थायी नहीं होती…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Mar 17
  • 3 min read

Mar 18, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, इंसान, ईश्वर की बनाई सबसे अनुपम और श्रेष्ठ कृति है। उसके अंदर बड़ी से बड़ी हार को जीत में बदलने की ताकत होती है। अगर वह अपनी ताक़त को पहचान ले तो अपने जीवन को तत्काल सार्थक बना सकता है। लेकिन अक्सर ग़लत संगत और चकाचौंध भरी दुनिया उसे ऐसा करने से रोक लेती है। अपनी बात को मैं आपको एक किस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ। लेकिन आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बता दूँ कि पहचान छुपाने के उद्देश्य से मैंने इस किस्से को एक काल्पनिक कहानी का रूप दे दिया है। चलिए शुरू करते हैं…


स्कूल के दिनों में रवि बड़ा आज्ञाकारी और मेहनती छात्र के रूप में जाना जाता था। परिवार से मिले संस्कारों और पढ़ने की लगन उसे विशेष बनाती थी। लेकिन कॉलेज में दाखिला होने के कुछ ही महीनों बाद उसके व्यवहार में बड़ा बदलाव आ गया। अब वो ना तो पहले की तरह मेहनत करता था और ना ही अब वो अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन किया करता था। लेकिन स्थिति तब और गंभीर हो गई जब उसने घरवालों से झूठ बोलकर पैसे लेना शुरू कर दिया था।


माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य रवि में आए इस बदलाव को देख चिंतित थे। इसलिए उन्होंने गहराई में उतर कर इसकी वजह जानने का प्रयास किया तो उन्हें पता चला कि यह बदलाव बुरी संगत की वजह से आया है। कॉलेज में उसके दोस्त फिजूलखर्ची, क्लब या सिनेमा देखने जाने और धूम्रपान करने के आदी थे। परिवार के सदस्यों ने रवि को बुरी संगति से बचने और पढ़ाई पर ध्यान देने की सलाह दी, लेकिन इसका उसपर कोई असर नहीं हुआ। वह तो बस हमेशा एक ही रट लगाए रहता था, ‘मुझे अच्छे-बुरे की समझ है, मैं भले ही ऐसे लड़कों के साथ रहता हूँ, लेकिन उन पर निर्भर नहीं हूँ।’


समय इसी तरह बीतता रहा और रवि के व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया। उसे अपनी गलती का भान सालाना परीक्षा के समय हुआ, लेकिन तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी। परिणामस्वरूप हमेशा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने वाला रवि इस वर्ष एक विषय में फेल हो गया। इस असफलता से रवि टूट सा गया था। अब वह ज्यादातर समय अपने कमरे में ही बंद रहता था। परिवार उसकी हालत देख काफ़ी चिंतित था। सभी ने उसे बहुत समझाया कि अगर वह असफलता से सीख लेकर जीवन में आगे बढ़ेगा तो जल्द ही सब कुछ अच्छा हो जायेगा। लेकिन रवि फेल होने के सदमे से बाहर ही नहीं आ पा रहा था।


रवि के हाल का पता जब उसके विद्यालय के प्राचार्य को पड़ा, तो उन्हें बहुत दुख हुआ। उन्होंने अपने प्रिय छात्र रवि को इस स्थिति से बाहर निकालने का दृढ़ संकल्प लिया और उसे अपने घर बुला लिया। रवि जब उनके घर पहुँचा तब प्राचार्य एक जलती हुई अँगीठी के पास बैठ अपने हाथ ताप रहे थे। उन्होंने बिना कुछ कहे, मुस्कुराते हुए रवि का स्वागत किया और उसे अपने पास बैठने का इशारा किया। कुछ क्षणों बाद अचानक ही प्राचार्य ने जलती हुई अँगीठी से एक जलता हुआ कोयला निकाला और उसे पास पड़ी मिट्टी में डाल दिया। जिसे देख अनायास ही रवि बोल पड़ा, ‘सर आपने इस जलते हुए कोयले को निकाल कर मिट्टी में क्यों डाल दिया? इससे तो यह बुझ जायेगा।’ प्राचार्य बोले, ‘बिल्कुल सही कहा बेटा तुमने, लेकिन अगर मैं इसे वापस अँगीठी में जलते हुए कोयलों के पास डाल दूँगा तो यह फिर से जलने लगेगा और हम फिर से इसकी गर्मी महसूस करने लगेंगे।’


इतना कहकर प्राचार्य कुछ क्षणों के लिए एकदम शांत हो गए, फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘तुम भी इसी कोयले की तरह हो रवि बेटा। जब तक अच्छी संगति में थे, मेहनत कर रहे थे, माता-पिता की बात मान रहे थे, तब तक तुम सफलता की रोशनी में चमक रहे थे। लेकिन जैसे ही तुम बुरी संगति में पड़े, तुम्हारी चमक फीकी पड़ गई और तुम असफल हो गए। लेकिन याद रखो, असफलता स्थायी नहीं होती। जैसे यह कोयला फिर से जल सकता है, वैसे ही तुम भी मेहनत करके फिर से अपनी पुरानी सफलता हासिल कर सकते हो। रवि को अब अपनी गलती समझ आ गई थी। उसने उठकर अपने गुरु के चरण स्पर्श किए और अपना भविष्य बनाने के लिए निकल पड़ा।


बात तो दोस्तों प्राचार्य की एकदम सटीक थी, अच्छी संगति, सही मार्गदर्शन और मेहनत से हम किसी भी असफलता को सफलता में बदल सकते हैं। बुरी संगति हमें हमारी मंजिल से दूर ले जाती है, लेकिन अगर हम समय रहते अपनी गलतियों को सुधार लें, तो सफलता हमारे कदम चूमती है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

Commentaires


bottom of page