Dec 28, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक ऐसी पौराणिक कथा से करते हैं जो हमें अहंकार के हश्र के बारे में बताती है। एक बार धन संपत्ति के स्वामी कुबेर देवता के मन में ख्याल आया कि सबसे अमीर होने के बाद भी तीनों लोक में मुझे बहुत कम लोग जानते हैं, जो किसी भी तरह से ठीक नहीं है। विचार आने के बाद कुबेर देवता बड़े चिंतित रहने लगे और पूरे समय अपनी संपत्ति के प्रदर्शन का उपाय सोचने लगे। काफ़ी विचार करने के बाद उन्होंने एक भव्य भोज का आयोजना करने का निर्णय लिया और उसके लिए तीनों लोकों के देवताओं को आमंत्रित किया। चूँकि कुबेर देवता भगवान शिव को अपना इष्ट मानते थे, इसलिए वे उनसे आशीर्वाद लेने और उन्हें भी इस भोज में आमंत्रित करने के लिए कैलाश पर्वत पर गए और उनसे बोले, ‘प्रभु, आपकी कृपा से मैं आज तीनों लोकों में सबसे धनवान हूँ। इसी ख़ुशी में मैं अपने निवास पर एक भोज का आयोजन करने जा रहा हूँ, मेरा आपसे हाथ जोड़ कर नम्र निवेदन है कि आप परिवार सहित भोज में पधारने की कृपा करें।’
भगवान शिव तुरंत समझ गए कि कुबेर देवता के मन में धन का अहंकार आ गया है। वे उसी पल अपनी असमर्थता जताते हुए बोले, ‘वत्स! मैं बूढ़ा हो चला हूँ इसलिए आजकल मैं कहीं बाहर नहीं जाता हूँ।’ भगवान शिव का जवाब सुन कुबेर देवता घबरा गए और गिड़गिड़ाते हुए बोले, ‘भगवान आपके बग़ैर तो मैं आयोजन की कल्पना भी नहीं कर सकता हूँ। मेरा सारा आयोजन ही बेकार चला जाएगा।’ कुबेर को गिड़गिड़ाता देख भगवान शिव उन्हें शांत करते हुए बोले, ‘परेशान मत हो कुबेर,एक उपाय है। मैं अपने छोटे बेटे गणपति को तुम्हारे भोज में जाने को कह दूंगा।’ भगवान शिव का उपाय सुन कुबेर संतुष्ट होकर लौट आए और भोज की तैयारियों में व्यस्त हो गए।
नियत दिन, नियत समय पर कुबेर देव का भव्य भोज प्रारंभ हुआ जिसमें तीनों लोकों के देवता पहुंच गए। हर कोई वहाँ की व्यवस्था और कुबेर देव की शानो-शौकत देख हैरान था। सभी लोग उनकी प्रशंसा कर रहे थे तभी भगवान गणपति वहाँ आए और आते ही बोले, ‘मुझको बहुत तेज भूख लगी है। बताइये भोजन कहां है।’ कुबेर देव ने पहले उन्हें प्रणाम करा और भोजन से सजे कमरे में ले गए। वहाँ उन्होंने भगवान गणपति को सोने के पटे पर बिठाया और सोने की थाली में भोजन परोसा, जिसे भगवान गणपति एक पल में चट कर गए। तत्काल भगवान गणेश को दोबारा खाना परोसा गया, वे उसे भी खा गए। इसके बाद तो यह सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक हज़ारों लोगों के लिए बना खाना ख़त्म नहीं हो गया।
भगवान गणपति को तो अभी भी भूख लग रही थी। वे उठे और सीधे रसोईघर में पहुंच गए जहाँ खाना बन रहा था। जब उन्हें वहाँ पका हुआ भोजन नहीं मिला तो वे वहाँ रखा सारा कच्चा सामान भी खा गए, लेकिन तब भी उनकी भूख नहीं मिटी। जब सब कुछ खत्म हो गया, तो गणपति ने कुबेर से कहा, ‘जब तुम्हारे पास मुझे खिलाने के लिए कुछ था ही नहीं, तो तुमने मुझे न्योता क्यों दिया था?’ यह सुनते कुबेर देव का अहंकार चूर-चूर हो गया!!!
दोस्तों, यह कहानी मुझे उस वक़्त याद आई जब एक हाल ही में धनी बने व्यक्ति द्वारा अपनी संपत्ति का प्रदर्शन करने के लिए एक आयोजन किया गया जिसमें मुझे भी भाग लेने का मौक़ा मिला। उक्त प्रोग्राम में रात्रि भोज के पश्चात जब मैं वापस आ रहा था उस वक़्त वहाँ एक ग़रीब परिवार बचा हुआ भोजन पाने की आस में बैठा हुआ था जिसे बार-बार वहाँ मौजूद लोग हटाने और भगाने का प्रयास कर रहे थे। उस वक़्त मेरे मन में विचार आया कि जब आप एक भूखे को भोजन नहीं करा सकते हैं तो आप किस काम के अमीर हैं?
याद रखियेगा दोस्तों, दौलत इकट्ठा करने से कोई अमीर नहीं बनता, असली अमीर तो वह है जो ज़रूरत पड़ने पर ज़रूरतमंद की मदद कर पाए। विचार कर अपने मत से अवगत करवाइयेगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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