Feb 1, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, सहज सुखी जीवन की चाह में सामान्यतः मनुष्य भटकता नजर आता है। इसकी मुख्य वजह कभी भौतिक वस्तुओं से, तो कभी तात्कालिक सुख या शांति देने वाली चीजों से आनंद खोजना है, जो मेरी नजर में संभव ही नहीं है। इसकी मुख्य वजह ग़लत प्राथमिकताओं या भटकाव के कारण आध्यात्मिक सुख को नजरअंदाज करना है। जी हाँ दोस्तों, अक्सर लोग सोचते हैं कि महंगी कार, बड़ा घर, या समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करके ही वे सुखी हो सकते हैं, जबकि यह धारणा पूरी तरह ग़लत है। बाहरी वस्तुएं वास्तव में हमें कभी पूर्ण संतुष्टि नहीं दे सकती हैं, लेकिन अक्सर इनके कारण ही हम असली और सबसे उत्तम सुख याने आध्यात्मिक सुख को नजरअंदाज कर जाते है।
याद रखियेगा, भौतिक संसाधनों से मिलने वाला सुख अल्पकालिक होता है। अर्थात् यह सुख समय के साथ खत्म हो जाता है। उदाहरण के लिए नया फ़ोन, नई कार, बड़ा घर आदि लेने के बाद हम कुछ समय के लिए तो बहुत खुश रहते हैं, लेकिन बीतते समय के साथ नई इच्छाएँ, इन सबसे मिलने वाले सुख को हमारे लिए सामान्य बना देती है। यही कारण है कि बाहरी वस्तुओं से प्राप्त होने वाला आनंद क्षणिक होता है। इसके ठीक विपरीत आध्यात्मिक सुख ना सिर्फ़ स्थायी होता है, बल्कि समय के साथ बढ़ता जाता है। इसकी मुख्य वजह आध्यात्मिक सुख का हमारी शांति और संतोष में निहित होना है। अर्थात् इस सुख का लेना-देना सीधे-सीधे हमारी आत्मा से है। इसलिए ही कहा जाता है कि वास्तविक आनंद बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर है। यदि हम अपने मन को नियंत्रित करना सीख लें, तो हम स्थायी सुख की प्राप्ति कर सकते हैं।
दोस्तों, अगर आप भी आध्यात्मिक सुख से आनंद पाना चाहते हैं तो इस बात को स्वीकार लें कि मन को नियंत्रित किए बिना बाहरी सुखों का कोई महत्व नहीं है। जब तक मन भटकेगा या चंचल रहेगा, तब तक सच्चे सुख को पाना असंभव ही होगा। उदाहरण के लिए, अथाह संपत्ति के साथ अगर कोई हमेशा चिंता और तनाव में रहता है, तो सारे संसाधन मिलकर भी उसे सच्चा आनंद नहीं दे सकते हैं। जबकि इसके विपरीत, अगर कोई साधारण या सामान्य सा व्यक्ति आत्म-संतोष के भाव के साथ अपने अपने मन को शांत रखते हुए जीता है, तो वह वास्तविक आनंद का अनुभव करता है। गौतम बुद्ध, स्वामी विवेकानंद आदि इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। इन दोनों ने ही बड़े साधारण तरीक़े से आत्मिक सुख के साथ असाधारण जीवन जिया है।
दूसरी बात जो आपको आत्मिक सुख को पाने में मदद कर सकती है, वह योग, ध्यान और प्रार्थना याने धर्म और साधना के ज़रिए मन को शांत करना है। अर्थात् योग, ध्यान और प्रार्थना के ज़रिए मन को स्थिर कर हम सच्चे आनंद की अनुभूति कर सकते हैं। इसी बात को आधार बनाते हुए राजकुमार सिद्धार्थ ने अपना सारा वैभव त्याग दिया था और आत्मज्ञान की खोज में निकल पड़े थे। इसी यात्रा ने एक साधारण इंसान को भगवान बुद्ध बना दिया था। इसलिए वे हमेशा कहते थे, ‘सुख बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि आत्म-ज्ञान और ध्यान में है।’
निष्कर्ष के तौर पर अंत में दोस्तों इतना ही कहना चाहूँगा कि यदि वास्तविक सुख चाहते हो तो, बाहरी वस्तुओं के पीछे भागने के स्थान पर अपने भीतर झांकना शुरू करो। आत्म-चिंतन, मनन, ध्यान और साधना द्वारा ही हम अपने मन को नियंत्रित कर सकते हैं और सच्चे सुख की प्राप्ति कर सकते हैं। यह याने आध्यात्मिक सुख ही एकमात्र ऐसा सुख है, जो न तो समय के साथ घटता है और न ही किसी बाहरी वस्तु पर निर्भर करता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
Commentaires