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अहंकार, अभिमान और स्वाभिमान !!!

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Jul 7, 2022
  • 2 min read

July 7, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक छोटे से किस्से से करते हैं। सुंदर वन में अप्पू हाथी और भोलू गधा जंगल के हरे-भरे मैदान में साथ में घूम रहे थे। घूमते-घूमते भोलू गधा अप्पू हाथी से बोला, ‘अप्पू भाई, यह नीली घास कितनी अच्छी लग रही है। बल्कि मुझे तो लगता है, यह नीली घास खाने में भी बहुत स्वादिष्ट होगी।’ भोलू गधे की बात को बीच में काटते हुए अप्पू हाथी बोला, ‘भोलू, तुम घास के रंग को पहचानने में ग़लती कर रहे हो। घास नीली नहीं, हरी है।’ अप्पू की बात सुनते ही भोलू गधा बोला, ‘नहीं-नहीं, तुम गलती कर रहे हो घास हरी नहीं, नीली है।’


अप्पू बार-बार भोलू को समझाने का प्रयास कर रहा था, लेकिन भोलू मानने के लिए तैयार ही नहीं था। आख़िर में अप्पू चिढ़ता हुआ भोलू के पास गया और उसकी आँख पर लगे नीले चश्में को उतारते हुए ग़ुस्से से बोला, ‘अब देख कर बता घास नीली है या हरी?’ चश्मा उतारते ही भोलू को अपनी गलती का एहसास हो गया, उसे समझ आ गया कि नीले चश्में की वजह से ही उसे सब-कुछ नीला-नीला नज़र आ रहा था।’ लेकिन अब वह सोच रहा था कि अगर गलती स्वीकार ली तो मेरे सम्मान का क्या होगा?


दोस्तों, निश्चित तौर पर आपने अप्पू और भोलू के किस्से के समान ही सामान्य बातचीत या संवाद को, हर हाल में स्वयं को सही सिद्ध करने के प्रयास में अनावश्यक बहस में बदलते हुए देखा होगा। अगर आप बहस करने वालों की मनःस्थिति को समझने का प्रयास करेंगे तो आप पाएँगे कि वे अपने मत को अपने स्वाभिमान से जोड़कर देखते हैं और शायद यही उनकी सबसे बड़ी गलती होती है। साधारण शब्दों में कहूँ तो लोगों को लगता है कि अपनी गलती या दूसरों की सही बात को स्वीकारना, अपने स्वाभिमान को कम करने के सामान है।


असल में साथियों अक्सर हम अहंकार, अभिमान और स्वाभिमान के बीच के महीन अंतर को समझने में गलती कर जाते हैं और स्वाभिमानी बनने के प्रयास में अभिमानी या अहंकारी बनकर रह जाते हैं। याद रखिएगा साथियों, दूसरों को नीचा दिखाते हुए अपनी बात को सही सिद्ध करने का प्रयास करना, स्वाभिमानी होने का लक्षण नहीं है। अपितु, दूसरों की बात को यथायोग्य सम्मान देते हुए, बिना किसी दवाब के सत्य पर अडिग रहना, स्वाभिमान है।


इसी तरह, अभिमानी वह है जो अपने अहंकार के पोषण के लिए दूसरों को कष्ट देना पसंद करता है। इसके विपरीत स्वाभिमानी वह है, जो सत्य के रक्षण के लिए स्वयं कष्टों का वरण कर ले। मैं जो कह रहा हूँ वही सत्य है, यह अभिमानी का लक्षण है और जो सत्य होगा उसे मैं स्वीकार कर लूँगा, यह स्वाभिमानी का लक्षण है। अपने आत्म गौरव की प्रतिष्ठा ज़रूर बनी रहनी चाहिए मगर किसी को अकारण, अनावश्यक झुकाकर, गिराकर या रुलाकर नहीं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

 
 
 

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