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अहंकार छोड़ें, मज़े से रहें…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Nov 25, 2023
  • 3 min read

Nov 25, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए साथियों, आज के लेख की शुरुआत हम एक बहुत पुरानी कहानी से करते हैं, जिसने मेरे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला था। बात कई साल पुरानी है, एक दिन मधुमक्खियों का एक समूह उड़ता हुआ घने जंगल में पहुँचा और वहाँ अपना घर यानी छत्ता बनाने के लिए एक घना पेड़ तलाशने लगा। सबसे पहले रानी मक्खी बबूल के पेड़ के पास गई और उससे बड़ी विनम्रता के साथ बोली, ‘बबूल भैया, क्या मैं आपके इस पेड़ की एक शाख़ पर अपने परिवार के रहने के लिए एक घर याने छत्ता बना लूँ?’


बबूल अपनी मस्ती में मस्त रहने वाला पेड़ था। उसे कभी भी यह पसंद नहीं आता था कि कोई उसे परेशान करे। उसने अपने व्यवहार के अनुरूप याने अहंकार के साथ एकदम चिढ़ते हुए जवाब दिया, ‘चल भाग यहाँ से; बड़ी आई यहाँ घर बना लूँ क्या। चलो हटो यहाँ से; मुझे परेशान करने के स्थान पर कहीं और जाकर अपने लिए छत्ता बना लो।’ बबूल को चिढ़ते हुए देख पास के ही आम के पेड़ ने उसे समझाते हुए कहा, ‘बबूल भाई! इन मधुमक्खियों को अपनी एक शाख़ पर छत्ता बना लेने दो ना। तुम्हारी काँटों भरी शाख़ के बीच में यह सब सुरक्षित रह लेंगी।’ आम के पेड़ की बात सुनते ही बबूल का पेड़ एकदम चिढ़ते हुए बोला, ‘तू क्यों बीच में उछल रहा है? अपने काम से काम रख और अगर इतनी ही ज़्यादा चिंता है तो इन मधुमक्खियों को अपनी शाख़ पर छत्ता बना लेने दे।’ बबूल की बात सुन आम के पेड़ को बड़ा तरस आया, उसने बबूल को उसी हाल में छोड़ा और रानी मक्खी को कहा, ‘हे रानी मक्खी, अगर तुम चाहो तो मेरी शाख़ पर अपना छत्ता बना सकती हो।’ रानी मक्खी ने आम के पेड़ का आभार व्यक्त करा और अपने साथियों के साथ मिलकर उसपर अपना घर याने छत्ता बनाया और फिर उसमें आराम से रहने लगी।


कई माह ऐसे ही बीत गए, एक दिन जंगल में कुछ लकड़हारे आए और आम के पेड़ को काटने की योजना बनाने लगे। तभी उनमें से एक लकड़हारा अचानक से चिल्लाते हुए बोला, ‘नहीं! नहीं! हम इस आम के पेड़ को नहीं काटेंगे। इसपर तो बहुत बड़ा मधुमक्खियों का छत्ता है। कहीं यह हमारे पीछे पड़ गई तो लेने के देने पड़ जाएँगे।’ इस लकड़हारे की बात सुन उसका दूसरा साथी बोला, ‘हाँ मित्र, तुम सही कह रहे हो, इस आम के पेड़ को काटना हमारे लिए ख़तरे से ख़ाली नहीं रहेगा। इसके स्थान पर हम सामने वाले बबूल के पेड़ को काट लेते हैं।’ दूसरे लकड़हारे की बात सुन सभी लकड़हारों ने अपनी-अपनी कुल्हाड़ी और अन्य औज़ार निकाले और बबूल के पेड़ को काटने लगे।


बबूल का पेड़ अब दर्द से चिल्ला रहा था, ‘बचाओ… बचाओ…’, बबूल की आवाज़ सुन आम के पेड़ ने मधुमक्खियों से बबूल के पेड़ को बचाने के लिए कहा। मधुमक्खियों ने आम के पेड़ के इशारे पर लकड़हारों पर हमला कर दिया। जिसके कारण सभी लकड़हारे अपनी जान बचाकर वहाँ से भाग गए और बबूल का पेड़ कटने से बच गया। बबूल के पेड़ को अब मधुमक्खियों से किए अपने व्यवहार पर शर्म आ रही थी। उसने मधुमक्खियों का धन्यवाद करते हुए, अपने आचरण के लिए क्षमा माँगी। इसपर मधुमक्खियों ने बबूल को आम के पेड़ से क्षमा माँगने और धन्यवाद कहने के लिये कहा और उसे बताया कि आम के पेड़ ने ही उन्हें समझाया था कि अगर कोई बुरा करता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम भी वैसा ही करें।


दोस्तों, वैसे तो अब आप इस कहानी में छुपे संदेश को समझ ही चुके होंगे कि अहंकार किसी काम का नहीं होता है क्योंकि यह किसी ना किसी दिन टूट ही जाता है। इसलिए जितना हो सके लोगों की सेवा करो; उनके काम आओ। जिससे वक़्त पड़ने पर तुम भी किसी से मदद माँग सको या कोई और तुम्हारी मदद कर सके। जी हाँ साथियों, जब हम किसी की मदद करेंगे तब ही तो कोई ज़रूरत के समय हमारी मदद करेगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

 
 
 

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