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‘अहम’ का ‘वहम’ !!!

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

May 20, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, कई बार योग्य, शिक्षित, सक्षम और पूर्व में सफलता का स्वाद चख लेने के बाद भी कई इंसान सफलता की वैसी गाथा नहीं लिख पाते हैं, जिसके सपने वे देखा करते थे। मेरी नज़र में इसकी मुख्य वजह ‘अहम्’ का ‘ वहम्’ होना है। जी हाँ दोस्तों, जब किसी इंसान में तमाम दुर्गुणों का अग्रणी अहंकार याने अहम् या फिर अभिमान प्रवेश कर जाता है, तब तमाम गुणों की मौजूदगी और प्रतिकूल परिस्थिति होने के बाद भी इंसान उन्नति नहीं कर पाता है। इतना ही नहीं अगर आप इतिहास उठा कर देखेंगे तो पायेंगे कि जिन सफल लोगों ने अपनी सफलता पर ‘अहम्’ का ‘वहम्’ पाला है, लोगों ने या इतिहास ने उनकी अच्छाइयों को; उनके किए अच्छे कार्यों को बहुत जल्दी भुला डाला है। इसलिए मेरा मानना है कि आपके जीवन में कोई ना कोई ऐसा इंसान, गुरु, दोस्त या सचेतक आदि के रूप में होना चाहिए जो समय रहते आपको ‘अहम्’ का ‘वहम्’ आते ही सचेत कर दे ताकि आप अपने लक्ष्य याने सफलता या यश के शिखर तक बिना किसी अवरोध के पहुँच सकें। अपनी बात को मैं आपको छत्रपति शिवाजी के एक क़िस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ।


शिवाजी महाराज ने अपने गुरु श्री समर्थ स्वामी रामदास जी महाराज के निर्देशों, सीखों, बताये गये मार्गों आदि का अनुसरण करके ढेर सारी सफलताएँ पाई थी; कई युद्ध और किले जीते थे। उस काल में किलों का महत्व बहुत अधिक होता था, इसलिए किलों को मज़बूत बनाने के लिए उनमें रखरखाव याने उन्हें ठीक कराने का कार्य सदा चला करता था और उसमें हज़ारों मज़दूर हमेशा लगे रहते थे।


ऐसा ही एक क़िला था, समनगढ़, जहाँ शिवाजी महाराज द्वारा रखरखाव याने उसे ठीक कर मज़बूत बनाने के साथ नये निर्माण का कार्य चल रहा था। एक दिन अचानक ही शिवाजी महाराज छोटी सी सैन्य टुकड़ी ले कार्यों का निरीक्षण करने के लिए समनगढ़ क़िले पर पहुँच गये। वहाँ हज़ारों मज़दूरों को कार्य करता देख उनके मन में अहंकार का भाव उपजा और वे सोचने लगे, ‘मेरे कारण कितने सारे लोगों का जीवन चल रहा है।’ इस विचार ने उनके मन में अहंकार या यूँ कहूँ अभिमान के भाव को जन्म दे दिया।


शिवाजी के गुरु, अंतर्यामी सद्गुरू स्वामी समर्थ महाराज अपनी शक्तियों से शिवाजी के मन में उपजे भाव को तुरंत जान गये। वे ‘जय जय रघुवीर समर्थ’ का जाप करते हुए अचानक ही समनगढ़ क़िले पहुँच गये। अपने समक्ष गुरु को देख शिवाजी ने दण्डवत प्रणाम किया और विशेष सत्कार करते हुए पूछा, ‘गुरुजी, आज अचानक ही आपका आगमन कैसे और कहाँ से हुआ?’ स्वामी समर्थ मुस्कुराते हुए बोले, ‘शिवबा! मैंने सुना था कि इस क़िले में तुम्हारा कोई बहुत बड़ा कार्य चल रहा है, जिसकी वजह से इस स्थान का भाग्योदय और इतने सारे इंसानों और अन्य जीवों का पालन तुम्हारे ही कारण हो रहा है। इसलिए मेरी इच्छा हुई कि मैं भी आकर इसे देखूँ। बस इसीलिए चला आया। वाह-वाह शिवबा तुम्हारे कारण कितने सारे जीव पल रहे हैं।’ गुरु के मुख से अपना गुणगान सुन शिवाजी प्रसन्न हो गये और ख़ुद को धन्य मानते हुए बोले, ‘यह सब आपके आशीर्वाद का फल है गुरुजी।’


गुरु और शिष्य इसी तरह बातचीत करते-करते क़िले से नीचे, जहाँ रास्ते के निर्माण का कार्य चल रहा था, वहाँ आ पहुँचे। वहाँ सद्गुरू स्वामी समर्थ ने निर्मित रास्ते के बीच में पड़ी एक विशाल शिला को देख शिवाजी से पूछा, ‘यहाँ बीच में यह शिला क्यों पड़ी हुई है?’ शिवाजी उस शिला की ओर देखते हुए बोले, ‘गुरु जी मार्ग का निर्माण होते ही इस शिला को यहाँ से हटा लिया जाएगा।’ सद्‌गुरु समर्थ स्वामी रामदास जी बोले, ‘नहीं… नहीं… हमें कार्यों को टालना नहीं चाहिए। हमें तो उन्हें हाथों-हाथ पूर्ण कर देना चाहिये। अन्यथा छूटे हुए काम कभी पूर्ण नहीं होते। तुम अभी कारीगरों को बुलाकर बीच से इस शिला के दो भाग करा दो और फिर उन्हें हटा दो।’


शिवाजी ने तुरन्त कारीगरों को बुलाया और उस शिला के दो समान टुकड़े करवाए। शिला के टूटते ही वहाँ मौजूद लोग यह देख के हैरान रह गए कि शिला के अंदर एक भाग में काफ़ी बड़ा गड्डा सा था, जिसमें पर्याप्त पानी भरा हुआ था और उसमें एक छोटा सा मेंढक था। उसे देखते ही सद्गुरू समर्थ स्वामी रामदास जी बोले, ‘वाह-वाह शिवबा, धन्य हो तुम! इस शिला के अंदर भी तुमने जल रखवाकर इस मेंढक के पोषण की सारी व्यवस्था कर रखी है।’


गुरु के इतने ही शब्द शिवाजी को सच्चाई का अहसास करवाने के लिए पर्याप्त थे। उन्हें तुरंत अपनी गलती याने अहंकार का एहसास हो गया। वे जान गए कि ‘मैं इतने लोगों का पेट भरता हूँ सिवा एक भ्रम के और कुछ नहीं है। उन्होंने तुरंत सद्गुरू के चरण पकड़ लिये और उनसे क्षमा-याचना करने लगे।


दोस्तों, गुरु की सजगता ने शिवाजी को अहंकार से होने वाले नुक़सान से बचा लिया। इसीलिए मैंने पूर्व में कहा था, ‘जीवन में कोई ना कोई ऐसा इंसान गुरु, दोस्त या सचेतक होना चाहिए जो समय रहते आपको ‘अहम्’ के ‘वहम्’ से बचा ले ताकि आप अपने लक्ष्य याने सफलता या यश के शिखर तक बिना किसी अवरोध के पहुँच सकें।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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