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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

अहम बड़ा है या आपका रिश्ता…

Dec 9, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, ‘अहम बड़ा है या आपका रिश्ता?’ यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसका उत्तर हर इंसान जानता है, लेकिन खुले मन से स्वीकार नहीं कर पाता है। अर्थात् हम सब जानते हैं कि मनुष्य जीवन में अहम के मुक़ाबले रिश्ता ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है। लेकिन इसके बाद भी ज्यादातर लोग अहम को प्राथमिकता देते हुए, रोज रिश्ते को दाँव पर लगाते हैं। ऐसा ही कुछ अनुभव मुझे हाल ही में घटी एक घटना को देख कर हुआ। हाल ही में एक युवा मेरे पास काउंसलिंग के लिए आया, जिसका मानना था कि वह आजकल अत्यधिक तनाव के दौर से गुज़र रहा है और वह समझ नहीं पा रहा है कि इससे किस तरह निपटा जाये। चूँकि उसकी बात अस्पष्ट थी, इसलिए मैंने उस युवा को पूरी स्थिति विस्तार पूर्वक बताने के लिए कहा।


इसपर युवा ने जो बातें बताई, मैं उसपर सहसा विश्वास ही नहीं कर पाया। इस युवा का विवाह अभी कुछ ही माह पूर्व हुआ था और अब वह किसी भी क़ीमत पर इससे मुक्त होना चाहता था। इसकी मुख्य वजह पति-पत्नी के रिश्ते में आई खटास थी। जब मैंने पति-पत्नी, दोनों से इस विषय में विस्तार से अलग-अलग चर्चा की तो मुझे एहसास हुआ कि समस्या उतनी बड़ी नहीं है, जितना वे मान कर चल रहे हैं। मैंने पहले पति को इस विषय में समझाने का प्रयास किया और उससे कहा, ‘तुम दोनों एक-दूसरे को माफ कर फिर से एक नई शुरुआत कर सकते हो।’ इस पर वह युवा बोला, ‘मुझे तो इसमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन माफी पहले वो मांगेगी क्योंकि झगड़ा उसने ही शुरू किया था।’ उस युवा की बात को सुन मुझे थोड़ी हँसी आई, लेकिन मैंने ख़ुद पर क़ाबू रखते हुए उसकी पत्नी से बात करने का प्रयास किया तो वह मुझ से बोली, ‘सर, आप ही बताइए लड़की कभी गलती मान कर माफी माँग सकती है? अगर वे मुझे से सम्बन्ध रखना चाहते हैं तो माफी तो पहले उन्हें ही माँगनी पड़ेगी।’


पहले प्रयास में जब मैं दोनों को ही समझाने में असफल रहा तो मैंने लड़की के पिता, जो उन दोनों को मेरे पास लाए थे, से इस विषय में चर्चा करी तो वे बिना पूरी बात सुने ही लड़के पर दबाव बनाते हुए बोले, ‘जब सीधी उंगली से घी नहीं निकलता है, तब उँगली टेढ़ी करनी पड़ती है। अभी तुम्हें माफी मांगने का कह रहे हैं तो समझ नहीं आ रहा है, अभी एक कंप्लेंट कर दी तो भागते फिरोगे।’ उनकी बात सुनते ही वह युवा भी तैश में आ गया लेकिन मैंने किसी तरह उस वक्त बात सम्भाल कर मामले को पूरा शांत किया।


उन लोगों के जाने के बाद मैं सोच रहा था कि जो बात माफी मांगने और माफ करने से खत्म हो सकती थी, उसे वे लोग मार-पीट और कोर्ट-कचहरी से सुलझाने का प्रयास कर रहे थे। अर्थात् उनके लिए अपने जीवन, अपने रिश्तों से ज़्यादा बड़ा अहम हो गया था। वर्तमान समय में आपसी संबंधों में मतभेद का प्रमुख कारण ही यह है कि हम दूसरों को प्रेम की शक्ति से नहीं अपितु बल की शक्ति से जीतना चाहते हैं। इसलिए हमेशा ख़ुद को हर हाल में सही मान कर चलते हैं। अगर आप लोगों के घरों में झाँक कर देखेंगे तो पायेंगे कि घर-परिवार में भी आज सुनाने को सब तैयार हैं, पर सुनने को कोई तैयार ही नहीं है। दूसरों को सुनाने की अपेक्षा स्वयं सुन लेना भी हमारे आपसी संबंधों की मज़बूती के लिये कई बार अति आवश्यक हो जाता है।


आप स्वयं ही सोच कर देखिए, ख़ुद को सही साबित करने के लिए पूरे परिवार को ही अशांत बनाकर रख देना क्या उचित है? मेरी नजर में तो नहीं। मेरा तो मानना है कि हम घर-परिवार में जितना ज़्यादा एक दूसरे को समझेंगे, उतने ही हमारे आपसी संबंध भी सुलझेंगे। लेकिन आज के युग में ज्यादातर लोग इस सिद्धांत के विपरीत जी रहे हैं। यही आज के युग की सबसे बड़ी समस्या है, जिसकी वजह से रिश्तों का महत्व खत्म होता जा रहा है। हम लोग भूल गए हैं कि दूसरों को जीतने के लिए बल के प्रयोग से कई गुना बेहतर प्रेम का प्रयोग करना है। मेरा मानना है कि किसी को बलपूर्वक हराकर जीतना आसान है, लेकिन उनसे प्रेमपूर्वक हार कर हमेशा के लिए उनको जीत लेना इससे कई गुना ज्यादा श्रेष्ठ है। इसीलिए तो कहते हैं, जो टूटे को बनाना और रूठे को मनाना जानता है, वही इंसान असल में बुद्धिमान है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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