Nov 24, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, सुदूर दक्षिण में राज करने वाले एक राजा के तीन बच्चे थे। राजा तीनों राजकुमारों को इस प्रकार शिक्षित करना चाहता था कि जिससे समय आने पर वे राज-काज सम्भाल सकें और अपनी प्रजा के साथ न्यायोचित व्यवहार कर सकें। इसी कड़ी में एक दिन राजा ने अपने सबसे बड़े बेटे को बुलाया और उसे कहा, ‘बेटा हमारे राज्य में नाशपाती फल का एक भी पेड़ नहीं है। मैं चाहता हूँ, तुम जंगल में जाओ और पता लगाकर आओ कि नाशपाती का पेड़ कैसा होता है। राजा की आज्ञा ले बड़ा बेटा उत्तर दिशा के जंगल की और चल दिया। बड़े बेटे के जंगल जाने के लगभग चार माह बाद राजा ने मंझले बेटे को भी इसी कार्य के लिए जंगल भेज दिया और उसके चार माह बाद इसी कार्य को पूर्ण करने की ज़िम्मेदारी के साथ सबसे छोटे बेटे को भी जंगल भेज दिया।
राजा की आज्ञा से तीनों राजकुमार बार-बारी से जंगल गए और नाशपाती के पेड़ संबंधी जानकारी ले, वापस लौट आए। सभी के सकुशल वापस आने के बाद राजा ने एक दिन तीनों पुत्रों को दरबार में बुलाया और एक-एक कर नाशपाती के पेड़ के बारे में बताने के लिए कहा। सबसे पहले बड़ा राजकुमार बोला, ‘पिताजी, मुझे तो वह पेड़ बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा। वह बिलकुल टेढ़ा-मेढ़ा, पत्ते और फल रहित, लकड़ी के ठूंठ समान एकदम सूखा था।’ अभी बड़े राजकुमार की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि मंझला राजकुमार बीच में बोल उठा, ‘नहीं-नहीं पिताजी, बड़े भैया एकदम ग़लत बोल रहे हैं। नाशपाती का पेड़ तो एकदम हरा-भरा था। लेकिन फिर भी अधूरा लग रहा था क्योंकि उसपर एक भी फल नहीं था।’ दोनों बड़े भाइयों की बात सुन छोटा राजकुमार ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा और बोला, ‘भाइयों, मुझे लगता है, आप सही नाशपाती के पेड़ तक पहुँच ही नहीं पाए, अन्यथा आप ऐसा नहीं बोलते। मैंने तो नाशपाती के जितने भी पेड़ देखे, सब पर ढेर सारे फल लगे थे। मैंने तो इस यात्रा के दौरान कई बार पेड़ों से नाशपाती तोड़कर खाई थी।’
छोटे भाई की बात ख़त्म होते-होते तीनों राजकुमार आपस में विवाद करते हुए लगभग लड़ने लगे। वे तीनों ख़ुद को सही सिद्ध करना चाह रहे थे। कुछ देर तक तो राजा शांत रहे फिर तीनों को रोकते हुए बोले, ‘बेटों! शांत हो जाओ, आपस में बहस करने की बिलकुल भी ज़रूरत नहीं है। तुम तीनों ही सही हो और तीनों ही नाशपाती के वृक्ष का सही वर्णन कर रहे हो। तुमने वैसा ही बताया है, जैसा तुमने देखा था। बस अंतर इतना सा था कि तुमने पेड़ को अलग-अलग मौसम में देखा, इसीलिए तुमने उसे अलग-अलग पाया।’ एक पल शांत रहने के बाद राजा ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘बेटों, मैंने तुम्हें जीवन की एक महत्वपूर्ण सीख सिखाने के लिए जानबूझ कर अलग-अलग मौसम में जंगल में भेजा था। मैं तुम्हें सिखाना चाहता था कि किसी भी व्यक्ति, वस्तु या स्थिति के बारे में तुम्हें पूर्ण जानकारी तभी मिल सकती है, जब तुम उस व्यक्ति, वस्तु या स्थिति को लंबे समय तक देख और परख सको।’
बात तो दोस्तों राजा की सौ टका सही थी। जिस तरह अलग-अलग मौसम में पेड़ का रूप और स्थिति अलग-अलग थी, ठीक उसी तरह मनुष्य के जीवन में भी उतार-चढ़ाव के कारण अलग-अलग स्थितियाँ-परिस्थितियाँ आती हैं और वह उनके रंग में रंगा दिखता है याने स्थितियों के अनुरूप व्यवहार करता प्रतीत होता है। ऐसे में जल्दबाज़ी में उसके विषय में बनाई गई कोई भी धारणा ग़लत साबित हो सकती है। इसीलिए कहा जाता है, ‘जल्दबाज़ी में आँखों देखी, कानों सुनी, मुँह बोली और ख़ुद महसूस की गई बातें, स्थितियाँ और वस्तुएँ भी बिलकुल ग़लत हो सकती है।’
इसी बात को अगर आप ख़ुद के जीवन से जोड़ कर देखेंगे तो पाएँगे कि जिस तरह अलग-अलग मौसम में पेड़ अलग-अलग रूप धरता है याने कभी सूखा, कभी हरा-भरा, तो कभी मीठे फलों से लदा दिखता है। ठीक उसी तरह हमारे जीवन में भी अलग-अलग मौसम याने उतार-चढ़ाव आते हैं। अतः अगर कभी बुरा दौरा आए तो अपनी हिम्मत मत हारो और धैर्य बनाये रखो, समय अवश्य बदलेगा। यह कहानी हमें एक और महत्वपूर्ण बात सिखाती है, कभी भी अपनी बात को ही अंतिम सत्य मान कर अड़ना नहीं चाहिए। उसके स्थान पर अपना दिमाग़ खुला रखते हुए, दूसरों की बातों को ध्यान से सुनना हमेशा लाभकर रहता है। यह संसार अनसुलझे रहस्यों और ज्ञान के भंडार से भरा है, हम कभी पूर्ण ज्ञानी नहीं बन सकते हैं। इसलिए भ्रम में जीने से बेहतर है, ज्ञानी व्यक्ति की सलाह लेना। सलाह आपके विचारों को बदल सकती है और विचार आपके जीवन को। सोच कर देखियेगा…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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