July 17, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आईए आज के लेख की शुरुआत एक किस्से से करते हैं। सुदूर राज्य में एक व्यापारी राजा के पास पहुँचा और बोला, ‘महाराज, मैं आज आपके लिए तीन बढ़िया और शिक्षाप्रद पुतले लेकर आया हूँ। अन्नदाता, देखने में भले ही यह तीनों पुतले एकदम साधारण और एक समान लगते हैं, लेकिन वास्तव में यह सभी हैं बड़े निराले और विशेष। इसी कारण पहले पुतले का मूल्य एक लाख सोने की मोहरे है, दूसरे का मूल्य 1000 सोने की मोहरे है और अंतिम याने तीसरे का मूल्य केवल सोने की एक मोहर है।’ क़ीमत सुनते ही सम्राट ने सभी पुतलों को बारीकी से देखा, लेकिन उन्हें उनमें कोई अंतर नज़र नहीं आया। क़ीमत के अंतर के कारण पुतले उनके लिए एक गुत्थी बन चुके थे। उन्होंने अपने गुरु से मदद करने की विनती करी। गुरु ने पुतलों को बड़े ध्यान से देखा और फिर दरबान से तीन तिनके मँगवाए। इन तिनकों में से गुरु ने एक तिनका लिया और उसे पहले पुतले के कान में डाला। वह तिनका कान में से होता हुआ सीधे पुतले के पेट में चला गया। पेट में तिनका जाने के कुछ देर बाद उस पुतले के होंठ कुछ देर के लिए हिलने लगे। ऐसा लग रहा था मानो वह पुतला कुछ कह रहा हो।
इसके पश्चात गुरु ने दूसरा तिनका लिया और उसे दूसरे पुतले के कान में डाला। इस बार यह तिनका पुतले में बिना कोई हलचल किए सीधे दूसरे कान से बाहर निकल गया। पुतलों के अंतर को देख महाराज सहित सभी सभासदों की उत्सुक्ता बढ़ती जा रही थी। सब लोग अब अंतिम पुतले को बड़ी ध्यान से देखने लगे। गुरु ने दूसरे पुतले को वहीं रखा और तीसरे तिनके को अंतिम याने तीसरे पुतले के कान में डाल दिया। इस बार कान में तिनका जाते ही पुतले का मुँह हिलने लगा। ऐसा लग रहा था मानो वह लगातार बोल रहा है।
महाराज ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘गुरुवर अब इसका भेद भी समझा दीजिए।’ महाराज की बात सुन आचार्य बड़े विनम्र स्वर में बोले, ‘राजन, पहले पुतले के कान में डाला गया तिनका उसके पेट में गया था। जिसके कुछ देर पश्चात पुतले का मुँह हिलने लगा था, इससे हमें सीख मिलती है कि ज्ञानवान, सज्जन लोग सुनी-सुनाई बातों पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं देते हैं। वे उन बातों की पहले पुष्टि करते हैं, उस पर विचार करते हैं और अगर उन्हें वह बात उचित, तर्कशील, सभी के लिए मूल्यों के आधार पर लाभदायक या ज्ञानवर्धक लगती है तो ही वे अपना मुँह खोलते हैं अर्थात् उसे दूसरों से साझा करते हैं। ऐसे ही लोग चरित्रवान कहलाते हैं, इसीलिए इस पुतले का मूल्य एक लाख सोने की मोहर है।
दूसरा पुतला जिसके एक कान में तिनका डालने पर वह दूसरे कान से निकल गया था, वह हमें सिखाता है कि कुछ लोग अपने आप में ही मगन रहते हैं। वे सुनी गई सभी बातों को अपने तक ही सीमित रखते हैं और उसे कभी भी अपने फ़ायदे या अपनी तारीफ़ के लिए किसी से भी साझा नहीं करते। उनके व्यवहार से ऐसा प्रतीत होता है, जैसे उन्होंने कुछ सुना ही नहीं हो। ऐसे लोग कभी किसी को नुक़सान नहीं पहुँचाते। इसलिए इस पुतले का मूल्य सोने की हज़ार मोहर था।
अंतिम याने तीसरा पुतला जिसका मुँह, कान में तिनका डालते ही चलने लगा था। वह हमें सिखाता है कि कुछ लोग कान के कच्चे होते हैं। वे ना सिर्फ़ सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करते हैं अपितु उसका ढोल बिना सोचे-समझे सारी दुनिया में पीटने लगते हैं। अर्थात् उस बात की चर्चा बिना झूठ-सच, फ़ायदा-नुक़सान जाने सारी दुनिया से करने लगते हैं। इन्हें तो बस अपना मुँह खोलने से मतलब होता है। इसलिए इस पुतले का मूल्य सिर्फ़ सोने की एक मोहर था।’
दोस्तों, इस कहानी को सुनते ही पहला विचार जो मेरे मन में आया था वह था कि सबसे पहले मैं खुद को पहचानूँ कि मैं कौन सा पुतला हूँ। ऐसा करना मुझे अपना मूल्य (पैसों में नहीं) बढ़ाने में मदद मिलेगी। दूसरी बात, अपने आस-पास मौजूद लोगों के अंदर मौजूद पुतलों को भी उपरोक्त आधार पर पहचान सकूँ, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि मैं सही संगत में हूँ।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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