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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

आत्मिक शांति, संस्कार, शिक्षा या पैसा - सोचें क्या है ज़रूरी !!!


May 8, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, हाल ही में एक विद्यालय के 10वीं से 12वीं तक के बच्चों से व्यक्तिगत तौर पर मिलने और भविष्य की योजना पर बात करने का मौक़ा मिला। इस काउन्सलिंग के दौरान एक छात्रा से जब मैंने उसके लक्ष्य के बारे में पूछा तो वह बोली, ‘जब पूरा ही नहीं होना है, तो उस पर बात या चर्चा करने से क्या फ़ायदा?’ उसका जवाब सुन मैं कुछ पलों के लिए स्तब्ध रह गया। मैं सोच भी नहीं सकता था कि मात्र 15-16 साल की बच्ची इतनी अवसाद में हो सकती है। उसकी हताशा और अवसाद दूर करने के उद्देश्य से मैंने उसे थोड़ा मोटिवेट करते हुए विश्वास दिलाया कि अगर इच्छा तीव्र और प्रयास पूरी क्षमता से हो तो हर समस्या का हल निकल सकता है। उसके थोड़ा सामान्य होने पर मैंने जब उससे इस विषय में पूछा तो वह बोली, ‘सर, मेरे पिता चाहते हैं कि इस वर्ष बोर्ड परीक्षा में मुझे कम से कम 75% अंक मिलें और उसके बाद मैं आई॰आई॰टी॰ या उसके समकक्ष किसी इंजीनियरिंग कॉलेज से कम्प्यूटर विज्ञान में बी॰ टेक॰ करूँ और अच्छा कैरियर बनाऊँ। वैसे सर इस दबाव की एक और वजह है, पूर्व में मेरे सभी कज़िन कम से कम इतने अंक ला चुके हैं और अब वे देश के किसी ना किसी प्रतिष्ठित महाविद्यालय से इंजीनियरिंग या मेडिकल की पढ़ाई कर रहे है या कर चुके हैं। मुझ पर इस बात का इतना अधिक दबाव है कि मुझे लगता है जैसे मैं अपने सिर पर एक भारी पत्थर रखकर घूम रही हूँ। ना मैं कहीं जा सकती हूँ, ना ही विद्यालय में होने वाली किसी गतिविधि में भाग ले सकती हूँ। इतना ही नहीं, पिता अभी 2 माह की छुट्टियों में घर आए हैं, इसलिए वे वापस जाने के पूर्व, प्रतिदिन 8 से 10 घंटे पढ़ाकर मेरा सालभर का कोर्स पूरा करवाना चाहते हैं। फिर भले ही वह मुझे समझ आए या नहीं, इससे उन्हें कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता है।’ वह बच्ची अपनी पूरी बात एक ही साँस में बोल गई। मैंने उसे एक ग्लास पानी दिया और पूछा, ‘अगर तुम्हें अपनी पसंद से कैरियर चुनने का मौक़ा दिया जाए तो तुम क्या करना चाहोगी?’ वह बोली, ‘सर मैं एम॰बी॰ए॰ करना चाहती हूँ।’ जो कि वाक़ई में एक अच्छा विकल्प था।


बच्ची को अत्यधिक दबाव में देख मैंने विद्यालय की मदद से उसके पिता से बात करी और उन्हें समझाने का प्रयास करा कि उनके दबाव का उस बच्ची के कोमल मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है और इसका असर जल्द ही पारिवारिक रिश्तों पर भी पड़ सकता है। उन्होंने मेरी बात को लगभग नज़रंदाज़ करते हुए कहा ‘मैं यह सब उसके लिए ही तो कर रहा हूँ। अगर अच्छा कैरियर, अच्छा पैसा होगा तो उसी का जीवन अच्छा रहेगा।’


मैंने उनकी बात बीच में काटते हुए कहा, ‘सर, लेकिन अगर वह खुश नहीं रह पायी तो?’ वे बोले, ‘सर किस दुनिया में रह रहे हैं आप? पैसा पास होगा तो ही तो खुश रहेगी।’ मैंने विषय बदलते हुए उन्हें दबाव कम करने के बारे में कहा तो वे बोले, ‘सर, आप चिंता मत कीजिए, मेरी बच्ची है, मैं सम्भाल लूँगा।’ मैंने अंतिम पासा चलते हुए उन्हें उनके बुढ़ापे, इकलौती बच्ची, संस्कार और रिश्तों की गरमाहट के महत्व के बारे में याद दिलाया। इस बार मेरी बात बीच में काटते हुए वे बोले, ‘सर, पैसे होंगे तो ही तो सब कर पाएगी, नहीं तो उसके लिए खुद का जीवन सम्भालना भी मुश्किल होगा और रही बात संस्कारों और रिश्तों की तो उससे जीवन नहीं कटता है।’


दोस्तों, वैसे वह इकलौती बच्ची नहीं है जो इस तरह का दबाव झेल रही है। आजकल बच्चे दबाव में सातवीं-आठवीं से ही नैसर्गिक प्रतिभा, खेल-कूद को नज़रंदाज़ कर कैरियर चुन रहे हैं और कक्षा नवीं से डमी स्कूल में प्रवेश लेकर कोचिंग पढ़ रहे हैं। जहाँ मॉक टेस्ट के ज़रिए उनकी रेंक का अंदाज़ा लगाया जाता है और उन्हें बेहतर परफ़ॉर्म करने के लिए दबाव दिया जाता है। जिसकी वजह से हर साल कई बच्चे अवसाद के शिकार हो रहे हैं और कहीं ना कहीं इसके लिए हम पालक ही ज़िम्मेदार हैं।


मैं ऐसे सभी पालकों से दो बात पूछना चाहूँगा, पहली, वे अपने जीवन के कौन से हिस्से को सबसे ज़्यादा याद या मिस करते हैं? निश्चित तौर पर अपने बचपन को। अगर यह सही है तो फिर वे अपने बच्चों के बचपन से क्यूँ खेल रहे हैं? दूसरी बात, क्या वे स्वयं सिर्फ़ पैसे के बल पर अपना जीवन ख़ुशी-ख़ुशी जी सकते हैं? शायद नहीं, क्यूँकि खुश रहने के लिए सबसे पहले अच्छा और स्वस्थ तन और मन चाहिए। इसके बाद अच्छा परिवार जहाँ रिश्तों में गरमाहट हो और करने के लिए मनपसंद कार्य चाहिए और अंत में पैसा। याद रखिएगा दोस्तों, ख़ुशी-ख़ुशी तो सब कुछ पाया जा सकता है लेकिन पायी हुई चीज़ से हरदम खुश नहीं रहा जा सकता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

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