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आत्म साक्षात्कार है ज़रूरी…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Oct 10, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत महान लेखक चेखव की एक कहानी ‘शर्त’ के साथ करते हैं। एक बार एक व्यक्ति अपने मित्र से शर्त लगाते हुए कहता है कि अगर तुम एक माह तक बिना किसी से मिले, बिना किसी से कुछ कहे रह कर दिखा दोगे, तो मैं तुम्हें दस लाख रुपये इनाम स्वरूप दूँगा। लेकिन अगर तुम एक माह तक उस कमरे में अकेले नहीं रह पाये तो तुम हारे हुए माने जाओगे। कुछ देर विचार करने के बाद पहले मित्र ने शर्त को स्वीकार लिया और मित्र के कहे अनुसार बस्ती से दूर सुनसान इलाक़े में स्थित कमरे में रहने चला गया। उस कमरे में पहले व्यक्ति द्वारा दैनिक ज़रूरतों का सामान, किराना और साथ ही कुछ किताबें रखवा दी गई थी। इसके साथ ही उसे यह भी बता दिया गया था कि अगर उसके लिए वहाँ रहना बर्दाश्त से बाहर हो तो वह घंटी बजा कर संकेत दे सकता है, जिससे उसे उस कमरे से बाहर निकाला जा सके।


इनाम के लालच और ख़ुद को हिम्मत वाला सिद्ध करने के चक्कर में पहले 2-3 दिन तो उस व्यक्ति ने किताबों से मन बहलाते हुए निकाल लिये। लेकिन उसके बाद उसके लिये वहाँ रहना मुश्किल होता जा रहा था। अकेलेपन के कारण अब उसे घंटे, युगों के समान लगने लगे थे और अब वह खीज कर चीखने-चिल्लाने लगता था। कई बार तो वह रोया, तड़पा, चीख़ा, ख़ुद के बाल नोचने लगा, कई बार तो गालियाँ दे देकर तड़पा, लेकिन शर्त के ख़्याल ने उसे कहीं ना कहीं घंटी बजाने से रोके रखा।


अकेलेपन की पीड़ा भयानक थी, लेकिन उसका इरादा अभी तक अडिग था। जैसे-जैसे अब दिन बीतते जा रहे थे, उसके अंदर एक अजीब सी शांति आती जा रही थी। अब उसे किसी की आवश्यकता का अनुभव ही नहीं था। अब तो वह बस मौन बैठा रहता था। उसका खीजना, चीखना, चिल्लाना, बाल नोचना, गाली देना आदि सब कुछ पूरी तरह बंद हो गया था।


दूसरी और हर बीतते दिन के साथ उसके दोस्त की चिंता बढ़ती जा रही थी। अब उसे लग रहा था कि दिन पर दिन बीतने के बाद भी उसका दोस्त बाहर क्यों नहीं आ रहा है? ऐसे तो जल्द ही एक माह पूरा हो जाएगा और वह शर्त हार जाएगा। इसी चिन्ता में अब उसका मन कहीं भी नहीं लग रहा था। अब वह हर कार्य को अनमने मन और बेचैनी के साथ कर रहा था। इसी कारण उसे व्यापार में ज़बरदस्त घाटा हुआ और उसका दिवालिया निकल गया।


अब माह के अंतिम 2 दिन बचे थे और पहला दोस्त अभी भी कमरे में पूर्ण शांत बैठा था। वहीं दूसरा दोस्त अब इस चिंता में डूबा हुआ था कि यदि मित्र ने शर्त जीत ली तो वह उसे इनाम के इतने सारे पैसे देगा कैसे? इसी चिंता में व्यापारी दोस्त, कमरे में बंद दोस्त को गोली मारने की योजना बनाता है और रात्रि के समय में उसे गोली मारने के लिए सुनसान इलाक़े में स्थिति मित्र के कमरे पर पहुँच जाता है और धीमे से दरवाज़ा खोल कर कमरे में घुसता है।


लेकिन अंदर पहुँचते ही व्यापारी दोस्त आश्चर्यचकित रह जाता है क्योंकि शर्त पूर्ण होने के ठीक एक दिन पहले उसका दोस्त, उसके नाम से एक ख़त छोड़ कर बाहर चला जाता है। उस ख़त में लिखा था, ‘प्रिय दोस्त, इस एक महीने में मैंने वो चीज पा ली है, जिसे दुनिया की सारी दौलत भी मुझे नहीं दिला सकती थी। मैंने अकेले मे रहकर असीम शांति का सुख पा लिया है और मैं ये भी जान चुका हूँ कि जितनी कम हमारी ज़रूरतें होती हैं, उतना अधिक हमें असीम आनंद और शांति मिलती है। इन दिनों में मैंने परमात्मा के असीम प्यार को जाना है। इसलिए मैं इस शर्त को तोड़कर जा रहा हूँ और अब मुझे तुम्हारे पैसे की कोई ज़रूरत नहीं है।’


यकीनन दोस्तों, दूसरा दोस्त पूर्णतः सही था, अगर आत्म साक्षात्कार हो जाये तो आपको दुनिया में किसी भी चीज की ज़रूरत नहीं रहती है। इसीलिए मेरा मानना है कि दुनिया को जानने के पहले हमें ख़ुद को जानने का प्रयास करना चाहिये।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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