Oct 16, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, प्रसन्नता और सुख दो ऐसे भाव हैं जो आपको ना तो कोई स्थिति, परिस्थिति अथवा घटना दे सकती है और ना ही कोई व्यक्ति। इसीलिए उपरोक्त दोनों से इनकी अर्थात् प्रसन्नता और सुख की अत्यधिक चाह रखना ही दुःख का कारण बन जाता है। हर पल बदलती इस दुनिया में बदलती परिस्थितियों के बीच हर क्षण प्रसन्नता और सुख की आस रखना बेमानी है। बदलाव या परिवर्तन का समय द्वंद्वात्मक विचार पैदा करता है और ऐसी स्थिति में हर समय सुख या प्रसन्नता कैसे सम्भव है और जो सम्भव नहीं है, उसकी कामना रखना कहीं से भी बुद्धिमत्ता पूर्ण विचार नहीं हो सकता है।
प्रसन्नता और सुख दोनों को ही आप ना तो बाज़ार जाकर ख़रीद सकते हैं और ना ही कोई और इसे आपको दे सकता है। अगर वास्तव में यह सम्भव होता तो हर अमीर इंसान आज खुश और प्रसन्न होता। दोस्तों, अगर आप प्रसन्न और सुखी रहना चाहते हैं तो हमेशा याद रखिएगा दुःख उठाकर ही सुख या प्रसन्नता पायी जा सकती है और हाँ, दुःख के अभाव में सुख या प्रसन्नता का कोई मूल्य या महत्व भी नहीं है। यह ठीक वैसा ही है जैसे थकान के बाद आराम, अत्यंत भूखे-प्यासे होने के बाद भोजन-पानी, ग़रीबी के बाद अमीरी आदि।
आपने यह तो निश्चित तौर पर सुना ही होगा कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है। ठीक इसी तरह दुःख को, सुख और प्रसन्नता का जनक माना जा सकता है। उदाहरण के लिए जो गरीब होगा, वही अमीर बनने के लिए कार्य करेगा और सफल होने के बाद उसके सुख को भोगेगा। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि दुःख, परेशानी या तकलीफ़ ही पुरुषार्थी व्यक्ति की क्रियाशीलता को बढ़ाती है, अन्यथा इंसान मृत समान या निर्जीव सा किसी एक जगह, आराम से पड़ा रहता।
आगे बढ़ने से पहले मैं आपको एक बात और बता दूँ, सुख के दौर में अत्यधिक प्रसन्न या हर्षित होना भी दुःख का विषय बन सकता है। यह एक साधारण नियम है, ‘जो अनुकूल परिस्थितियों में अत्यधिक खुश होगा, वह ही प्रतिकूल परिस्थितियों में उतना ही अधिक दुखी रहेगा।’ सुख प्रसन्नता का कारण हो सकता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि आपकी बाक़ी अनुभूतियाँ या अनुभव इसके ग़ुलाम बन कर रह जाएँ।
दोस्तों, अगर आप हर हाल में सुखी और प्रसन्नचित्त रहना चाहते हैं तो एक बात को गाँठ बांध कर जीवन का अंग बना लीजिए। सुख और प्रसन्नता को सिर्फ़ और सिर्फ़ जीवन जीने के ढंग या सही जीवनशैली से ही पाया जा सकता है। याद रखिएगा, जिंदगी भले ही खूबसूरत हो, लेकिन जीने का अंदाज खूबसूरत ना हो तो जिंदगी को बदसूरत होते देर नहीं लगती। इसीलिए तो आपको महलों में दुखी और झोंपड़ी में आनंद से लबालब इंसान मिल जाता है।
इसलिए साथियों, अगर सुखी और प्रसन्न रहना है तो सबसे पहले अपनी सोच बदलें। सोच बदलते ही ज़िंदगी उत्सव बन जाएगी और अगर आप इसे परिवार से जोड़ कर देख रहे हैं तो विशेष तौर पर ध्यान रखिएगा, संसार जुड़ता है त्याग से और बिखरता है स्वार्थ से। अगर रिश्तों में त्याग है तो आप आनंदित, प्रसन्नचित्त और सुखी रह सकते हैं। इसीलिए तो शायद किसी ने कहा है, ‘सोच को बदलो; सितारे बदल जाएँगे, नजर को बदलो; नज़ारे बदल जाएँगे। कश्तियाँ बदलने से कुछ नहीं होता, दिशाओं को बदलो, किनारे बदल जाएँगे।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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