Jan 15, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, निश्चित तौर पर आपने कभी ना कभी सुना ही होगा कि‘आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है।’ मेरी नजर में यह बात जितनी भौतिक अविष्कारों के लिए सही और सटीक है, उतनी ही ज़िंदगी के अन्य पहलुओं के लिए भी आवश्यक है। अपनी बात को मैं आपको एक किस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात कुछ माह पहले की है, इंदौर, मध्यप्रदेश के रहने वाले सुलभ, जो पिछले २० वर्षों से अमेरिका में कार्यरत हैं, को एक दिन अपने परिवार से फ़ोन पर बात करते हुए पता चला कि उनकी बुजुर्ग माताजी बाजार जाते वक्त सड़क पर गिर गई थी और किसी अनजान शख्स ने उनकी मदद करी और उन्हें सुरक्षित घर पहुंचाया, तो वे उस अनजान मददगार के प्रति श्रद्धा से भर गए और उन्होंने तत्काल भारत आकर अपनी माँ का हालचाल पूछने का निर्णय लिया।
अपनी इस भारत यात्रा के दौरान उनके परिवार में एक और ऐसी ही घटना घट गई। एक दिन उन्हें पता चला कि उनके वृद्ध चाचाजी अचानक बेहोश हो गए। सुलभ तुरंत उनके पास पहुँचे और उन्हें हॉस्पिटल लेकर गए। हॉस्पिटल में डॉ ने जांच के बाद बताया कि उनके चाचाजी को ब्रेन स्ट्रोक के कारण अंदरूनी ब्लीडिंग हुआ है। डॉक्टर ने इस स्थिति को गंभीर बताते हुए तत्काल ऑपरेशन करने के लिए कहा। सुलभ ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए अपने कजिन अर्थात् चाचाजी के बेटे, जो स्वयं यूके के एक प्रतिष्ठित डॉक्टर हैं, के लौट कर आने का इंतज़ार करने के स्थान पर निर्णय लिया और डॉक्टर को तत्काल ऑपरेशन करने के लिए कहा।
इन दोनों घटनाओं ने सुलभ को सोचने के लिए मजबूर किया कि परिवार के सदस्यों की ग़ैरमौजूदगी में भी बुजुर्गों को किसी भी तरह की जरूरत या परेशानी या फिर अनचाहे हादसों के दौरान मदद मिलने में देरी नहीं होना चाहिए। इस एक विचार ने सुलभ को ओमसेवा बनाने की प्रेरणा दी, जिसका एकमात्र लक्ष्य बुजुर्गों को इत्मीनान अर्थात् मन की शांति याने पीस ऑफ माइंड देना है, फिर चाहे उनके परिवार वाले या रिश्तेदार कितने भी दूर क्यों ना हों। दूसरे शब्दों में कहूँ तो ओमसेवा का उद्देश्य अपनों की ग़ैर मौजूदगी में बुजुर्गों को यह एहसास दिलाना है कि उनके पास एक विश्वसनीय हाथ है, जो हर पल उनके साथ है।
अपने उपरोक्त लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सुलभ ने तकनीकी के ज़रिए उन युवाओं तक पहुँचने का प्रयास किया जो अपने फ्री समय में सेवा कार्य करना चाहते हैं और फिर उनका बैकग्राउंड चेक कर उन्हें जरूरतमंद बुजुर्गों से जोड़ना शुरू किया। यह युवा मित्र, जो बुजुर्गों के लिए एक बेटे या बेटी का रोल निभाते हैं, उनसे ओमसेवा के माध्यम से दिन, समय और स्थान तय कर मिलते हैं और उनके साथ समय व्यतीत करते हैं। इस दौरान वे अपने साथ एक चेकलिस्ट भी रखते हैं, जिसके माध्यम से वो यह सुनिश्चित करते हैं कि भूल से भी कोई आवश्यक कार्य इस मुलाक़ात के दौरान छूट ना जाये। जैसे, इंटरनेट और वाईफाई काम कर रहा है या नहीं; सभी बिलों का भुगतान हो गया है या नहीं; बाजार और बैंक संबंधी कोई कार्य पेंडिंग तो नहीं है; बिजली के सभी उपकरण बराबर चल रहे हैं या नहीं, आदि। इतना ही नहीं डॉक्टर का अपॉइंटमेंट लेना, मेडिकल टेस्ट और शॉपिंग करवाना, मंदिर ले जाना और अगर यह सब अच्छा चल रहा है, तो उनके साथ पार्क में टहलना, ताश खेलना, बाहर खाना खाने की इच्छा हो तो रेस्टोरेंट ले जाना आदि जैसी छोटी से छोटी सुविधा या आवश्यकता की पूर्ति की जाती है।
कुल मिलाकर कहा जाये तो ओमसेवा का उद्देश्य किसी भी वजह या मजबूरी से अपने परिवार से दूर रह रहे बुजुर्गों को जीवन के अंतिम प्रहर में अकेलेपन और छोटे-मोटे कामों के लिए जूझने से बचाना और उनकी उचित देखभाल करना है। जिससे इन बुनियादी जरूरतों के अभाव में वे तन्हाई, तनाव, हताशा आदि से बच सकें। वैसे ओमसेवा इस सेवा के माध्यम से शहर में पढ़ाई अथवा कैरियर की वजह से परिवार से दूर रह रहे युवाओं को भी परिवार के साथ होने का एहसास करवा रहा है और उन्हें अपनी संस्कृति और संस्कार से जोड़े भी रख रहा है। दोस्तों, अंत में इतना ही कहना चाहूँगा कि जिस तरह ओमसेवा सिर्फ़ एक सोच और अच्छे लोगों के साथ से बुजुर्गों के जीवन में दूरियाँ मिटाने का प्रयास कर रही है, ठीक वैसे ही हम सब भी एक सकारात्मक, सेवाभावी विचार से इस दुनिया को और बेहतर बनाने में अपना योगदान दे सकते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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