Mar 1, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, जंगल में एक सन्यासी रहा करते थे। वे अक्सर लोगों को धर्म, सदाचार, जीवन जीने की कला आदि विषयों पर जागरूक किया करते थे। वे इतने ज्ञानी और तेजस्वी थे कि उनसे मिलने वाला व्यक्ति उनसे प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं पाता था।
एक दिन उसी जंगल से एक व्यक्ति गुजर रहा था। उसने इन संत-महात्मा की झौपड़ी के बाहर जब लोगों का हुजूम देखा तो उत्सुक्ता वश पता करने चला गया। जैसे ही उसे पता चला कि सभी लोग वहाँ रहने वाले संत के दर्शन करने आए हैं तो उसने सोचा मैं यह मौक़ा क्यों छोड़ूँ? भीड़ के साथ वह भी महात्मा की झौपडी में दाखिल हो गया। अंदर का माहौल देख वह आश्चर्यचकित रह गया क्योंकि वहाँ साधारण से कपड़ों में एक महात्मा को अमीर, शानदार कपड़े पहने, महँगी गाड़ियों में आए लोगों ने घेर रखा था।
वह वहीं लोगों की भीड़ के साथ बैठ गया और महात्मा जी की बातें सुनने लगा। रात्रि के समय जब उसे मौक़ा मिला तो महात्मा जी के पास गया और उन्हें प्रणाम करता हुआ बोला, ‘महात्मा जी!, ना तो आप अमीर हैं, ना ही आपने महँगे कपड़े पहने हैं और ना ही आपके पास किसी और तरह की धन-दौलत दिख रही है। फिर भी इतने अमीर, सेठ लोग आपके दर्शन करने क्यों आते हैं? आपको देखकर मैं तो बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुआ हूँ।’
उस व्यक्ति की बात सुन संत मुस्कुराए और उसको एक पत्थर देते हुए बोले, ‘बेटा, अभी मैं थक गया हूँ, तुम कल सुबह इस पत्थर को गाँव में किसी दुकानदार को बेचकर किराना ले आओ। फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा।’ उस व्यक्ति ने आधे-अधूरे मन से महात्मा से पत्थर लिया और अगले दिन सुबह-सुबह गाँव की ओर चल दिया। दिन भर काफ़ी प्रयास करने के बाद भी गाँव में मौजूद कोई भी दुकानदार उसे पत्थर के बदले सामान देने को राज़ी नहीं हुआ। वह थक-हार कर वापस आश्रम पहुँचा और महात्मा जी से बोला, ‘महात्मा जी!, वैसे तो जब आपने मुझे यह पत्थर देकर सामान लाने के लिए कहा था मुझे तभी से एहसास था कि इसके बदले कोई दुकानदार सामान तो क्या, पीने का पानी भी नहीं देगा।’
उस व्यक्ति की बात सुन महात्मा मुस्कुराए और उससे बोले, ‘बेटा, बस अब मेरा एक अंतिम काम और कर दो, इसी पत्थर को लेकर तुम गाँव के सुनार के पास जाओ और उससे पूछो वह इसकी क्या क़ीमत देगा। अनमने मन से एक बार फिर उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया और वह पत्थर लेकर एक सुनार के पास पहुँचा और उसे पत्थर दिखाते हुए बोला, ‘भैया, मैं इसे बेचना चाहता हूँ, आप इसकी क्या क़ीमत देंगे?’ सुनार ने पत्थर लिया और उसे परखते-परखते पसीने से तर-बटर होते हुए बोला, ‘भैया, मैं तो क्या यहाँ के सारे सुनार भी मिलकर इसकी क़ीमत नहीं चुका पाएँगे। यह तो अनमोल रत्न है।’
सुनार का जवाब सुन वह व्यक्ति हैरान था। वह डरते-घबराते वापस संत के पास पहुँचा और पत्थर लौटाते हुए पूरा क़िस्सा कह सुनाया। उसकी बात सुन महात्मा मुस्कुराए और बोले, ‘बेटा चीज़ें जैसी ऊपर से दिखती हैं, वैसी होती नहीं है। वाक़ई में यह पत्थर एक अनमोल रत्न है जिसको पहचानना किसी साधारण व्यक्ति के बस में नहीं था। इसीलिए वे इसके रूप रंग को देख क़ीमत लगाने का प्रयास कर रहे थे और इसीलिए इसके बदले अनाज देने को राज़ी नहीं हुए। लेकिन जैसे ही तुमने इसे सुनार को दिखाया वह इसकी क़ीमत पहचान गया और इसे ख़रीदने में अपनी असमर्थता ज़ाहिर करने लगा। ठीक इसी तरह तुमने मुझे मेरे कपड़ों से तोला था, मेरी क़ीमत मेरे पास मौजूद सामान से लगाई थी। इसलिए तुम मुझसे प्रभावित नहीं हुए थे। जबकि अन्य लोगों ने मेरे रूप-रंग या मौजूद संसाधनों को नहीं बल्कि मेरे ज्ञान को पहचाना था, इसलिए वे मुझे इज्जत दे रहे थे, मेरी बातों को ध्यान से सुन रहे थे।
उक्त कहानी दोस्तों मुझे अपनी इस शनिवार की जबलपुर यात्रा के दौरान तब याद आयी जब एक बच्चे ने पैसे और ज्ञान के विषय में प्रश्न करते हुए पूछा था कि दोनों में से क्या महत्वपूर्ण है?, मैंने उसे सीधे जवाब देने के स्थान पर उक्त कहानी सुनाते हुए कहा, ‘अब तुम ही निर्णय ले लो, तुम्हें दोनों में से क्या महत्वपूर्ण या ज़रूरी लगता है। लेकिन निर्णय लेते वक्त मेरी एक बात याद रखना; ज्ञान की सहायता से पैसा तो कमाया जा सकता है लेकिन पैसे से ज्ञान को ख़रीदना सम्भव नहीं है।’ जी हाँ दोस्तों, अपने पास मौजूद संसाधनों जैसे धन-दौलत, मकान, गाड़ी, कपड़े आदि से व्यक्ति की पहचान नहीं होती। वह तो अपने आचरण और ज्ञान से पहचाना जाता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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