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आपसी बैर, राग, द्वेष, नफ़रत, घृणा आदि से होने वाले नुक़सान...

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Oct 28, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक बहुत पुरानी कथा से करते हैं। आश्रम में शिष्यों को एक दूसरे के प्रति बैर रखता देख एक बार गुरुजी ने उन्हें आपसी बैर, राग, द्वेष, नफ़रत, घृणा आदि से होने वाले नुक़सान के विषय में समझाने का निर्णय लिया। एक दिन उन्होंने अपने सभी शिष्यों को बुलाया और कहा, ‘वत्स, इस जीवन में कई बार लोग जाने-अनजाने में हमारे साथ ग़लत व्यवहार करते हैं। जिसके कारण हम अपना मानसिक सुख-चैन आदि सब खो देते हैं और उन लोगों से नफ़रत करने लगते हैं। अगर तुम भी किसी से नफ़रत या घृणा करते हो, तो कल गुरुकुल में आते वक़्त एक आलू पर उसका नाम लिख कर ले आना और हाँ एक बात याद रखना जो शिष्य जीतने लोगों से घृणा या नफ़रत करता है, वह उतने आलू लेकर आये।’


गुरु की आज्ञा के अनुसार उस रात शिष्यों ने आलू का इंतज़ाम किया और उस पर जिससे वे नफ़रत करते थे उसका नाम लिखने लगे। अगले दिन जब वे गुरुजी के पास पहुँचे तो किसी शिष्य के पास २ तो किसी के पास ४ तो कुछ के पास ८-१० आलू भी थे। गुरुजी ने उस दिन का पाठ पढ़ाने के बाद अपने शिष्यों से कहा, ‘वत्स! अगर तुम घृणा और नफ़रत से हमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहते हो तो अपने साथ लाये आलुओं को अगले ७ दिन के लिए अपने से एक पल के लिये भी अलग मत होने देना। तुम जहाँ भी जाओ इसे साथ लेकर जाना अर्थात्, आते-जाते, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू सदैव अपने साथ रखना।’


शिष्य नफ़रत और घृणा से निजात पाने के लिए आलू के प्रयोग के विषय में ज़्यादा कुछ तो समझ नहीं पाए, लेकिन गुरु की आज्ञा को देख हर पल आलू साथ लिये घूमने लगे। पहले २ दिन तो सब ठीक था लेकिन उसके बाद शिष्यों को आलू बोझ समान लगने लगे और चौथा-पाँचवाँ दिन आते-आते आलुओं के सड़ने के कारण उसकी बदबू से परेशान हो गये। ख़ैर जैसे-तैसे सभी शिष्यों ने ७ दिन बिताए और आठवें दिन आलू साथ लिये सुबह ६ बजे ही गुरुजी के पास पहुँच गये और उन्हें बताने लगे कि सड़े हुए आलू की वजह से वे कितने परेशान हो गए हैं।


शिष्यों की बात सुनते ही गुरुजी मुस्कुराए और बोले, ‘सबसे पहले तो तुम सभी लोग इन सड़े हुए आलुओं को बाहर फेंक आओ।’ सभी शिष्यों ने वैसा ही किया और फिर से गुरुजी के पास आ गए और उनसे आलुओं का राज बताने के लिए निवेदन करने लगे। शिष्यों की जिज्ञासा को देख गुरु जी बोले, ‘वत्स, तुम सभी के साथ मैंने यह खेल शिक्षा देने के लिए ही खेला था। जब मात्र ७ दिनों में ही तुम इन सड़े हुए आलुओं से परेशान हो गए और तुम्हें यह बोझ लगने लगे। अब तुम स्वयं सोच कर देखो कि नफ़रत और घृणा को अपने मन में हमेशा साथ रखकर तुम कितना बोझ लिए रोज़ घूमते हो।’


बात तो दोस्तों गुरुजी की एकदम सही थी। लोगों से घृणा या नफ़रत रखना हमारे अंतर्मन पर अनावश्यक बोझ बढ़ाता है। जी हाँ दोस्तों, नफ़रत या घृणा आपके मन पर अनावश्यक बोझ डालती है, जिसके कारण आपके मन में भी बदबू भर जाती है। ठीक इन आलुओं की तरह। इससे बचने का दोस्तों एक ही उपाय हैं, अपने मन से गलत भावनाओं को निकाल दो और यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते, तो कम से कम नफरत तो करना बंद कर दें। ऐसा करने से आपका मन स्वच्छ और हल्का रहेगा। एक बार विचार कर देखियेगा ज़रूर दोस्तों।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com



 
 
 

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