top of page

आप वही दे सकते हैं, जो आपके पास है…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Sep 11, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मेरी नज़र में इतिहास सिर्फ़ पुरानी घटनाओं का लेखा-जोखा नहीं होता है। यह तो भविष्य को बेहतर बनाने के लिये अनुभवों और सीखों का पिटारा होता है। जी हाँ साथियों, अगर हम इतिहास या अपने अतीत से सीखना शुरू कर दें तो हम ख़ुद को भविष्य में आने वाली कई चुनौतियों और परेशानियों से बचा सकते हैं। उदाहरण के लिये आप जर्मनी के इतिहास को ही देख लीजिये। वर्ष १९४५ में यानी हमारी आज़ादी के दो वर्ष पहले द्वितीय विश्वयुद्ध में हार के बाद नाज़ी जर्मनी दो हिस्सों याने पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी में बँट गया था। पूर्वी हिस्से पर पर जहाँ सोवियत संघ याने रुस का वर्चस्व था वही फ़्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका ने पश्चिमी जर्मनी पर वर्चस्व स्थापित किया।


बर्लिन और जर्मनी के बाक़ी प्रांतों को पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी में कार मिलेट्री केंद्रों के आधार पर बाँटा गया था। इस आधार पर २३ मई १९४९ को पश्चिमी शक्तियों के नियंत्रण वाले जर्मनी को फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी याने पश्चिमी जर्मनी कहा गया और इसकी राजधानी बॉन को बनाया गया। इसी वर्ष अक्टूबर में सोवियत संघ के नियंत्रण वाले दक्षिणी ज़ोन को जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक याने पूर्वी जर्मनी कहा गया, जिसकी राजधानी ईस्ट बर्लिन थी। वैसे यहाँ यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि नियंत्रण के आधार पर समय के साथ पूर्वी जर्मनी कम्‍युनिस्‍ट विचारधारा और पश्चिमी जर्मनी पूंजीवादी विचारधारा के साथ आगे बढ़ने लगा।

दोनों देशों की सरकार ने आवागमन रोकने के लिये वर्ष १९६१ में दोनों देशों के बीच में एक दीवार भी बनवाई। लेकिन जर्मन लोग इस विभाजन को स्वीकार करने के लिये बिलकुल भी तैयार नहीं थे। इसका नतीजा यह हुआ कि १९७० के दशक में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के लोगों ने दोनों देशों को एक करने के लिये आंदोलन करना शुरू कर दिया। जिसके कारण धीरे-धीरे दोनों देशों के नेतृत्व के बीच में भी तनाव कम होने लगा। इसका नतीजा यह हुआ कि शीत युद्ध के दौर में विचारधाराओं के आधार पर बंटे पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को उनके शासकों याने शीत युद्ध की सभी शक्तियों ने 12 सितंबर, 1990 को टू प्‍लस फोर ट्रीटी के तहत जर्मनी पर अपनी दावेदारी को छोड़ा और ३ अक्टूबर १९९० को जनाधार के आधार पर पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी एक हो गये। याने जर्मनी संप्रभु बन गया।


दोस्तों, यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एक और जहाँ पश्चिमी जर्मनी फल-फूल रहा था वहीं पूर्वी जर्मनी ग़रीबी, बेरोज़गारी से जूझते हुए बदहाल हालत में था। लेकिन इसके बाद भी जनांदोलन के चलते दोनों देशों को तमाम विषमताओं के बाद भी फिर से एक होने का मौका मिला। दोनों ही देशों के लोगों में एक होने की इच्छा कितनी प्रबल थी इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि २ अक्टूबर की रात से ही बर्लिन के ब्रांडनबुर्गर गेट के सामने लाखों की तादाद में लोग जमा हो गये थे, जो सुबह की पहली किरण के साथ पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को एक होता हुआ देखना चाहते थे।


दोस्तों, पूरी दुनिया के इतिहास में शायद यही एकमात्र ऐसी घटना होगी जिसमें कोई देश बँटने के बाद फिर से एक हो गया हो। वह भी सिर्फ़ और सिर्फ़ लोगों की एकजुटता के कारण। जी हाँ साथियों, इस आंदोलन में एक और जहाँ सारी शक्तियाँ थी वहीं दूसरी ओर सामान्य लोगों की एकजुटता, आपसी प्यार और देशप्रेम। अगर आप इस घटना को चारित्रिक आधार पर देखेंगे तो पायेंगे कि दोनों ही देशों याने पश्चिमी और पूर्वी जर्मनी के लोगों में प्रेम था, इसलिये उन्होंने उसे बाँटा।


इसीलिये कहते हैं, ‘जिसके पास जो होता है वो वही बाँटता है।’ सुखी सुख तो दुखी दुख, ज्ञानी ज्ञान तो भ्रमित भ्रम। इसी तरह भयभीत भय, डरा हुआ डर बाँटता है और दबा हुआ औरों को दबाने का प्रयास करता है और चमका हुआ औरों को चमकाता है। कहने का सार यह है दोस्तों, हम सब मिलकर इस देश को जैसा बनाना चाहें बना सकते हैं, बस हमें एक दूसरे को वही देना शुरू करना होगा, जो हम दूसरों से चाहते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

 
 
 

תגובות


bottom of page