Dec 15, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, अगर आप मुझसे पूछें कि यदि आपको विशेष शक्तियों का धनी बना दिया जाए तो आप शिक्षकों और प्राचार्य की कौनसी एक आदत को तत्काल बदलना चाहेंगे तो मैं कहूँगा ‘ग़लतियों को ढूँढने का नज़रिया!’ जी हाँ दोस्तों, एक ट्रेनर और एजुकेशनल कंसलटेंट के रूप में यही मेरी पहली प्राथमिकता होगी।
चौंक गए ना… लेकिन जरा ठहरिए… एकदम से कोई भी प्रतिक्रिया देने के स्थान पर मुझे आज घटी एक घटना आपसे साझा कर लेने दीजिए। आज याने इस गुरुवार १४ दिसंबर २०२३ को मुझे सेंट मेरीज़ कॉन्वेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल देवास द्वारा कक्षा नवीं से बारहवीं के बच्चों को कैरियर संबंधित विषय पर संबोधित करने के लिए बुलाया गया। अपने सेशन के अंतिम पड़ाव में मैंने लगभग २० मिनिट का समय प्रश्नोत्तर राउंड के लिए रखा था, जो मात्र ५ मिनिट में ही पूर्ण हो गया क्योंकि उस हॉल में मौजूद लगभग १००-१५० बच्चों में से मात्र २ या ३ बच्चों ने ही मुझसे प्रश्न किए। यह स्थिति मेरे लिये चौकानें वाली थी क्योंकि सामान्यतः प्रश्नोत्तर राउंड हमेशा तय समय से ज़्यादा चलता है और उसे हमेशा आयोजकों द्वारा बीच में ही रोका जाता है। ख़ैर मैंने समय पूर्व ही सेमिनार ख़त्म करने का निर्णय लिया और धन्यवाद देने के पश्चात अपना सामान समेटते हुए सोचने लगा कि आज सेमिनार में कहाँ गलती हो गई?
मैं अभी विचारों की तंद्रा में खोया हुआ ही था कि पीछे से ‘सर’ कहती आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा। मैंने जैसे ही पलट कर देखा तो पाया लगभग १५-२० बच्चे मुझे घेरे हुए खड़े थे। मैंने जब मुस्कुराते हुए उनसे बात शुरू करी तो पाया कि हर बच्चे के मन में कोई ना कोई दुविधा थी और वो उसके समाधान के लिए मुझसे व्यक्तिगत रूप से चर्चा करना चाहता था। बच्चों के प्रश्नों को जवाब देने याने उनकी जिज्ञासा शांत करने के बाद मैंने जब उनसे पूछा कि उन्होंने प्रश्नोत्तर काल के दौरान प्रश्न क्यों नहीं पूछे तो सभी बच्चों ने लगभग एक स्वर में उत्तर दिया कि उन्हें अन्य बच्चों के सामने ग़लत सिद्ध होने का डर था।
दोस्तों, फ़ौरी तौर पर देखने में हमें यह घटना सामान्य लग सकती है, लेकिन अगर आप गहराई से इस विषय में सोचेंगे तो पायेंगे कि बच्चों को हीरो या विशेष योग्यता का धनी बनाने की चाह में हमने घर और विद्यालय दोनों ही स्थानों पर उनकी इतनी ग़लतियाँ निकाली हैं कि अब वे हमारे सामने कोई नया कार्य करने या अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए प्रश्न पूछने से ही हिचकने लगे हैं।
जी हाँ दोस्तों, सामान्य जीवन में गाइड, मैनेजर, बॉस, शिक्षक, कोच, परिवार में बड़े की भूमिका मिलते ही हम सभी दूसरों की याने हमसे छोटे या हमारे अधीन कार्य करने वाले की ग़लतियाँ निकालना शुरू कर देते हैं। अर्थात् हम उन्हें गलत काम करते हुए पकड़ना शुरू कर देते हैं। वह भी इसलिए नहीं कि हम उन्हें सुधार सकें या बेहतर करने के लिए प्रेरणा दे सकें बल्कि इसलिए कि हम उन्हें ‘सुना सकें।’ जी हाँ क्योंकि हमारी अपेक्षा के अनुसार परिणाम देने के स्थान पर जब कोई हमारी अपेक्षा या पसंद के अनुसार काम नहीं करता है तो हमारे बोलने की संभावना काफ़ी बढ़ जाती है। सही कहा ना दोस्तों…
सोच कर देखियेगा साथियों, अगर आप अपनी इस सोच के विपरीत कार्य करते तो क्या होता? आप अपने अधीनस्थ लोगों को ग़लत कार्य करने के स्थान पर सही करते हुए पकड़ते और अगर आप उन्हें सही करते हुए पकड़ते तो आप निश्चित तौर पर उनकी तारीफ़ करते; उनके कार्य की सराहना करते, जो उनके दिल को गहराई के साथ छू जाता और वे आपके समक्ष हमेशा अच्छा करने का प्रयास करते। हो सकता है दोस्तों, आप में से कुछ लोगों के मन में प्रश्न आ रहा होगा कि अगर हम हमेशा उनकी तारीफ़ करेंगे तो उनकी कमियों को दूर कैसे करेंगे या उनकी ग़लतियों को कैसे सुधारेंगे? तो मैं आपको बताना चाहूँगा कि बच्चों को अपने समक्ष खुल के कार्य करने की छूट देना उन्हें सुधारने की दिशा में पहला कदम है। दूसरी बात जब आपका बच्चों के साथ दिल का रिश्ता बन जाता है तो आप उन्हें सुझाव के द्वारा बेहतर बना सकते हैं।
वैसे दोस्तों यही तरीक़ा याने ‘लोगों को सही करते हुए पकड़ना और उनकी तारीफ़ करना’, के माध्यम से ही हम एक महान संस्था बनाने के लिए कर्मचारियों या अपने अधीनस्थों का विकास कर सकते हैं। जी हाँ साथियों, यह सफल और शक्तिशाली संगठन बनाने का अचूक प्रबंधकीय सूत्र है। दुर्भाग्य से अधिकांश लोग इस सूत्र की प्रासंगिकता समझ नहीं पाते हैं और अच्छाइयों को पहचान कर तारीफ़ करने का मौक़ा चूक जाते हैं। वैसे इसका एक और फ़ायदा है, लोगों को अच्छे कार्य करते हुए पकड़ना आपको ख़ुद को संतुष्टि देता है और आपके आसपास मौजूद लोगों को प्रेरणा। इसलिए दोस्तों, आज नहीं अभी से ही लोगों की अच्छाइयों को ढूँढे और उनकी प्रशंसा करें। यह उन्हें लगातार अच्छा कार्य करने के लिए प्रेरित करेगा। वैसे इसी सूत्र को आप परिवार में भी अपना सकते हैं और अपने जीवनसाथी, भाई या बहन की भी समय-समय पर अच्छे कार्य के लिए तारीफ़ कर रिश्तों को फलता-फूलता देख सकते हैं। वैसे भी दोस्तों, इस दुनिया में ढेरों आलोचक हैं, इसलिए प्रोत्साहक बनें और दूसरों की प्रशंसा कर उन्हें ऊर्जावान बनाएँ।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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