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आशावान रहें, सफल बनें…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Jan 24, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, आस या आशा एक ऐसी ताक़त है, जो हर मुश्किल से मुश्किल घड़ी में हमें सहारा देती है। जी हाँ, आशा वह शक्ति है, जो बुरी से बुरी परिस्थितियों में भी हमारे भीतर जीने की उमंग बनाए रखती है। चलिए अपनी बात को और इस विषय को विस्तारपूर्वक समझाने के लिए मैं आपसे एक प्रेरणादायक कहानी साझा करता हूँ।


बात आज से कई सौ साल पहले की है। एक राज्य में चोरी और अन्य कुछ गंभीर अपराधों के आरोप में सैनिकों ने दो लोगों को पकड़ कर राजा के सम्मुख पेश किया। सारे तथ्यों को परखने और स्थिति की गंभीरता का आकलन करते हुए राजा ने दोनों लोगों को मौत की सजा सुनाई और सैनिकों को एक सप्ताह बाद उस पर अमल करने का कहा। दोनों में से एक आरोपी राजा के विषय में थोड़ा बारीकी से जानता था। उसे पता था कि राजा अपने घोड़े से बहुत ज़्यादा प्यार करता है। इसलिए जब सजा के ठीक एक दिन पहले उसे अंतिम बार राजा के सम्मुख ले जाया गया तो वह बड़ी विनम्रता के साथ अपने हाथ जोड़ते हुए राजा से बोला, ‘महाराज! यदि आप मेरी जान बख्श दें, तो मैं एक साल में आपके घोड़े को उड़ना सिखा सकता हूँ।’


राजा, जो वाक़ई अपने घोड़े से बहुत ज़्यादा प्यार करता था, यह सुनते ही बड़ा ख़ुश हो गया और उड़ते हुए घोड़े के सपने देखते हुए सोचने लगा, 'यदि मेरा घोड़ा उड़ना सीख जाए, तो यकीनन मैं दुनिया का सबसे भाग्यशाली राजा बन जाऊँगा।’ इस विचार ने राजा को अपना निर्णय बदलने के लिए मजबूर किया और उसने उक्त आरोपी की सजा को एक साल के लिए टाल दिया। वह आरोपी जब शाम को ख़ुशी-ख़ुशी वापस जेल पहुँचा तो दूसरा क़ैदी उस पर चिढ़ते और चिल्लाते हुए बोला, ‘तुमने यह क्या कह दिया? क्या तुम पागल हो गए हो? घोड़ा कभी उड़ नहीं सकता! तुमने अपनी मौत को सिर्फ एक साल के लिए झूठ बोलकर टाला है।’ पहला आरोपी पूरी तरह शांत रहा और मुस्कुराते हुए बड़े गंभीर और धीमे स्वर में बोला, ‘जिसे तुम झूठ या मौत को एक साल टालना कह रहे हो, असल में उसने मेरे लिए ज़िंदगी को बचाने के चार मौके तैयार किए हैं। पहला मौक़ा, हो सकता है इस एक साल में राजा मर जाये। दूसरा मौक़ा, शायद इस एक साल में मैं ख़ुद मर जाऊँ। तीसरा मौक़ा, यह भी संभव है कि इस एक साल में यह घोड़ा स्वाभाविक मौत मार जाये और चौथा और सबसे महत्वपूर्ण मौक़ा, कौन जाने इस साल में मैं इस घोड़े को वाक़ई उड़ना सिखा दूँ।’


कहने की ज़रूरत नहीं है दोस्तों कि पहले आरोपी के जवाब ने दूसरे आरोपी को निरुत्तर और सोचने के लिए मजबूर कर दिया होगा। वैसे अगर आप गहराई से इस कहानी पर विचार करेंगे तो पायेंगे कि इस कहानी का सबसे बड़ा संदेश यही है कि हमें कभी भी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। आप स्वयं सोच कर देखिए, अगर वह कैदी आशा रखने के स्थान पर पहले ही हार मान लेता और राजा के निर्णय को अपना भाग्य मान स्वीकार कर लेता तो क्या होता? निश्चित तौर पर वह अपनी जान गँवा देता, लेकिन उसने विकट और विषम परिस्थिति को अपनी सोच और उम्मीदों से बदल दिया। यही बात हमें अपने जीवन में भी अपनानी चाहिए। आइए आज हम आशा की ताक़त को तीन मुख्य बातों से समझने का प्रयास करते हैं-


१) आशा, धैर्य और विश्वास रखिए मुश्किल हालात कभी भी बदल सकते हैं क्योंकि कोई भी स्थिति स्थायी नहीं होती। समय के साथ सभी चीजें बदलती हैं।

२) आशा रखें और सजग रहें, बदलता समय हमारा परिचय नई संभावनाओं से करवाता है। याद रखियेगा, उम्मीद रखने और सजग रहने से हमें नए रास्ते और समाधान अपने आप दिखाई देने लगते हैं।

३) आशा हमारे भीतर सकारात्मकता और ऊर्जा का संचार कर हमारे अंदर जीवन जीने की ऊर्जा बढ़ाती है। इसलिए हर पल आशा से भरे रहें।


तो दोस्तों, अगली बार जब कभी ईश्वर परीक्षा ले और आप ख़ुद को किसी मुश्किल हालात और परेशानी से घिरा पाएं, तो इस कहानी को याद कर लीजियेगा और अपने दिमाग को शांत और सोच को सकारात्मक रखते हुए नई संभावनाओं को खोजने का प्रयास कीजिएगा। ऐसा करना आपको जल्द ही सफल बनायेगा। इसलिए दोस्तों, हर पल याद रखें, जीवन में हर परिस्थिति का सामना किया जा सकता है, बस हमें उम्मीद का दामन थामे रखना चाहिए।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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