Nirmal Bhatnagar
आसक्ति या प्रेम : कार्य को मुश्किल या आसान बनाते हैं
July 28, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, उद्देश्य, समर्पण और विचार किसी भी कार्य को मुश्किल या आसान बनाते हैं। अगर आप अपने उद्देश्य के प्रति समर्पण का भाव रख सकारात्मक विचारों के साथ लक्ष्य प्राप्ति के लिये कार्य करते हैं तो संभव ही नहीं है कि उस कार्य को करते वक़्त आप थकान, तनाव या किसी भी तरह की परेशानी को महसूस करें। आप जटिल से जटिल कार्य को भी आसानी से पूर्ण कर पाएँगे अन्यथा आपको साधारण सा कार्य भी असंभव और परेशानी भरा लगने लगेगा। चलिये अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
कुछ वर्ष पूर्व एक सज्जन पुरुष पहाड़ी के ऊपर स्थित मंदिर के दर्शन के लिये निकले। रास्ते में दिक्क्त ना हो इसलिये उन्होंने एक पोटली खाना बाँधा, पीने के लिये पानी की बॉटल रखी और चढ़ने में दिक्क्त न हो इसलिये एक लाठी भी साथ ले ली। पूरी तैयारी के साथ उन सज्जन ने पहाड़ी चढ़ना शुरू किया। अभी वे आधी पहाड़ी भी नहीं चढ़ पाये थे कि उन्हें धूप, गर्म हवा और टपकते पसीने के कारण परेशानी होने लगी। उन्होंने रास्ते में एक पेड़ के नीचे रुककर थोड़ी देर सुस्ताने का निर्णय लिया।
कुछ देर सुस्ताने के बाद उन सज्जन ने किसी तरह ख़ुद को सम्भाला और अपना हौंसला बढ़ाते हुए, एक बार फिर सिर पर पोटली रखी और लाठी की सहायता से पहाड़ी चढ़ने लगे। लेकिन कुछ ही देर में फिर से उनका हौंसला जवाब दे गया और वे एक बार फिर पेड़ की छाया देख उसके नीचे सुस्ताने लगे। सुस्ताते-सुस्ताते अचानक ही उन सज्जन की नज़र पहाड़ी चढ़ती हुई एक लड़की पर पड़ी जिसने अपने छोटे भाई को पीठ पर बाँधा हुआ था और हाथ में कुछ सामान पकड़ा हुआ था। कुछ देर पश्चात जब वह लड़की उन सज्जन के क़रीब पहुँची तो उन्होंने उसे रोककर सहानुभूति जताते हुए कहा, ‘बेटी, इस वक़्त धूप भी काफ़ी तेज है और तुम्हारी पीठ पर काफ़ी वजन भी है। मेरा सुझाव है थोड़ी देर तुम भी इस पेड़ की छाँव में सुस्ता लो।’ उन सज्जन की बात सुन वह लड़की मुस्कुराते हुए बोली, ‘महोदय, मेरी पीठ पर कोई वजन नहीं है। यह तो मेरा छोटा भाई है। इसको साथ ले जाने में क्या तकलीफ़? हक़ीक़त में तो वजन आप लेकर चल रहे हैं।’ इतना कहकर वह लड़की मुस्कुराते हुए अपने रास्ते पर आगे बढ़ गई।
दोस्तों, अगर आप इस कहानी पर गौर करेंगे तो पायेंगे कि एक ओर वे सज्जन थे, जिनके पास परिस्थितियों के हिसाब से ज़रूरत का सभी साजो-सामान था। जैसे, भूख से बचने के लिये खाना, पीने के लिये पानी, चलने में दिक्क्त ना हो उसके लिये लाठी आदि। लेकिन इन सबके बाद भी धूप, गर्म हवा, चढ़ाई आदि जैसी छोटी-मोटी विषम परिस्थितियाँ उन्हें परेशान कर रही थी। वहीं दूसरी ओर वह छोटी लड़की बिना संसाधनों के विषम परिस्थितियों का सामना हंसते हुए करते हुए बिना थकान, बिना शिकन, आराम से अपने भाई को लिये लक्ष्य की ओर बढ़ती जा रही थी।
दोस्तों, अब आप ही बताइये, आख़िर इन दोनों लोगों की मनःस्थिति में इतना अंतर आया कैसे? मेरी नज़र में तो यह अंतर सिर्फ़ और सिर्फ़ उद्देश्य, समर्पण और विचारों की वजह से था। उन सज्जन के अंदर भगवान के दर्शन की भूख नहीं थी। इसलिये उनके विचार, लक्ष्य के अनुरूप नहीं थे। इसलिये वे अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित नहीं थे। इसी कारण उन्हें सुविधा का सामान भी अतिरिक्त भार लग रहा था। इसके विपरीत उस लड़की का उद्देश्य एकदम साफ़ था, इसलिये वह अपने कार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित थी और उसके विचार भी समय की आवश्यकता के अनुरूप ही थे।
इसलिये दोस्तों, मैंने पूर्व में कहा था, ‘उद्देश्य, समर्पण और विचार किसी भी कार्य को मुश्किल या आसान बनाते हैं।’ वैसे इसी कहानी को अगर आप आध्यात्मिक नज़रिये से देखेंगे तो पायेंगे कि वे सज्जन आसक्ति के शिकार थे इसलिये रास्ते को बोझ मान रहे थे जबकि वह लड़की अपने कार्य को प्रेम के साथ कर रही थी, इसलिये वह नैसर्गिक रूप से अपने कार्य को कर रही थी। इस आधार पर हम यह भी कह सकते हैं, ‘जहां आसक्ति है वहाँ मन पर दबाव है और जहां प्रेम है वहाँ मन पूरी तरह स्वतंत्र है; हल्का है।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com