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आस्था, अस्तित्व की नींव है…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Jul 8, 2024
  • 3 min read

July 8, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, पिता अपने बेटे को ले, समुद्री मार्ग से एक बहुत ही छोटी सी नाव पर बैठ अपने घर लौट रहे थे। किनारे पर पहुँचने के पूर्व ही अचानक समुद्र में बड़ा भयानक तूफ़ान आ गया। जिसे देख बेटा बहुत ही ज़्यादा डर गया। हर उठती लहर के साथ उसे लग रहा था कि बचना मुश्किल है। लहर का एक थपेड़ा उनकी नाव को पलट देगा और वे डूब जाएँगे। इस वजह से वो बहुत ही अधिक निराश और हताश था।


तूफ़ान के कारण उपजी उस भयावह स्थिति, जो किसी भी पल नाव पर सवार पिता पुत्र को डुबा सकती थी, को देखने के बाद भी पिता एकदम निर्भीक और शांत बैठे थे। उन्हें देख कोई अंदाज़ा ही नहीं लगा सकता था कि वे इस पल एक ऐसी परेशानी का सामना कर रहे हैं, जो कभी भी उनकी जान ले सकता है।


दूसरे शब्दों में कहूँ तो बेटा जितना डर रहा था, पिता उतने ही निर्भीक, शांत और चुपचाप बैठे थे। उन्हें देख ऐसा लग रहा था मानो कुछ हो ही नहीं रहा हो। काफ़ी देर तक तूफ़ान से जूझने के बाद बेटे ने काँपते हुए अपने पिता से पूछा, ‘पिताजी, क्या आपको डर नहीं लग रहा है? इस पल तो यह भी संभव है कि यह हमारे जीवन का अंतिम क्षण हो। इस भयावह तूफ़ान को देख आपको ऐसा नहीं लगता कि हम किनारे तक नहीं पहुँच पाएंगे? इस समय केवल चमत्कार ही हमें बचा सकता है, अन्यथा हमारी मौत निश्चित है।’


बेटे की बात सुन पिता सिर्फ़ मुस्कुरा रहे थे, जिसे देख बेटा लगभग चिल्लाता हुआ बोला, ‘क्या आप डर नहीं रहे हो?’ इस बार भी पुत्र की बात सुन पिता हँसे और उन्होंने अपनी तलवार को म्यान से निकाल लिया और सीधे अपने बेटे की गर्दन के पास लगा दिया। अर्थात् तलवार की धार अब बेटे की गर्दन को छू रही थी। पिता ने बेटे से पूछा, ‘क्या तुम अब भी डर रहे हो?’ बेटा हँसने लगा और बोला, ‘पिताजी, मैं क्यों डरूं? आप मेरे पिता हो, इसलिए आप मुझे कभी चोट नहीं पहुँचाओगे। मैं जानता हूँ कि आप मुझसे प्यार करते हो।’ बेटे की बात सुन पिता ने अपनी तलवार को वापस म्यान में रखा और बोले, ‘तुम्हारे पहले प्रश्न का यही जवाब है बेटा। मैं जानता हूँ कि मेरा भगवान मुझसे प्यार करता है और तूफान उसके हाथ में है। जब दोनों ही चीजें याने तूफ़ान और मैं उस भगवान के हाथ में है तो कुछ भी ग़लत कैसे हो सकता है? इसलिए मेरे बेटे तुम एकदम निडर और शांत रहो, जो भी होगा वह सब अच्छा ही होगा। अर्थात् हम इस तूफ़ान से बच जाते हैं, तो भी अच्छा है और अगर नहीं बच पाते हैं, तो भी अच्छा है क्योंकि सब कुछ उसके हाथ में है और वह कुछ भी गलत नहीं कर सकता।’


दोस्तों, उक्त कहानी मुझे हाल ही में घटी कुछ घटनाओं के कारण याद आई जिसमें अच्छे ख़ासे पढ़े-लिखे, सक्षम लोगों ने परेशानियों की वजह से उपजे अवसाद के कारण अपनी जान दे दी। जान देने वाले इन लोगों में प्रोफ़ेसर, आईटी प्रोफेशनल आदि जैसे पढ़े-लिखे, नौकरीपेशा सक्षम लोग थे। इन सबकी समस्या एक ही थी, जीवन में आए भूचाल में ख़ुद के आत्मविश्वास को बरकरार ना रख पाना। इसकी मुख्य वजह ईश्वर में पूर्ण आस्था की कमी भी है।


याद रखियेगा दोस्तों, जीवन में सब कुछ होने के बाद भी अगर मन अस्थिर हो तो जीवन से सुख, शांति और ख़ुशी कोसों दूर चली जाती है। अगर आपका लक्ष्य सुख, शांति और ख़ुशी से भरा जीवन जीना है, तो सर्वप्रथम ईश्वर के प्रति पूर्ण आस्था विकसित करें। यह आप में ईश्वर के प्रति भरोसा और पूर्ण समर्पण का भाव जगायेगा। जिसके कारण आप ख़ुद पर पूर्ण विश्वास रख पाएँगे, वह भी, लेश मात्र, शंका के बिना। जी हाँ दोस्तों, ‘आस्था, अस्तित्व की नींव है। बिना आस्था के हमारा जीवन, नींव रहित भवन जैसा होगा जिसका अस्तित्व हवा के झोंके और आँधी की दया पर निर्भर करता है।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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