Jan 7, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, तेज़ी से भागती इस दुनिया में मानवीय प्राथमिकताएँ बहुत तेज़ी से बदल रही हैं। इन्हीं के कारण आज हम ‘जो हमारे पास है' से ज़्यादा ‘जो हमारे पास नहीं है’ पर ध्यान लगाने लगते हैं। जो निश्चित तौर पर हमारे सुकून को छीन लेता है और हम मानवीय मूल्यों के स्थान पर बाहरी चीजों पर ज़्यादा ध्यान लगाने लगते हैं। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
सुदूर गाँव में रहने वाला राजू आज बड़ा ही उत्साहित और खुश था क्योंकि उसकी बेटी गुड्डी का दाख़िला शहर के एक बड़े नामी स्कूल में हो गया था। उसने अपनी बेटी को आवश्यक समझाईश के साथ शहर पढ़ने भेज दिया। आज गुड्डी का स्कूल में पहला दिन था। गुड्डी समय से पूर्व ही अपनी कक्षा में जाकर बैठ गई। जैसा कि अक्सर होता है कक्षा के कुछ बच्चे गाँव से आई गुड्डी का मजाक उड़ाने लगे। तभी कक्षा में शिक्षिका ने प्रवेश किया और सभी बच्चों को शांत करवाने के पश्चात् गुड्डी का परिचय पूरी कक्षा से करवाते हुए कहा, ‘बच्चों, यह हमारे विद्यालय की नई विद्यार्थी और तुम्हारी नई दोस्त गुड्डी है। आज से यह आप ही के साथ पढ़ेगी और आप ही के साथ खेलेगी।’
शिक्षिका द्वारा परिचय करवाने के पश्चात् सभी बच्चों ने पहले गुड्डी का स्वागत किया और उसके पश्चात शिक्षिका ने अपनी कक्षा शुरू करते हुए सभी बच्चों को सरप्राइज टेस्ट के लिए तैयार होने का बोलते हुए कहा, ‘चलिए बच्चों, अपनी-अपनी कॉपी निकालिए और जल्दी से दुनिया के 7 आश्चर्य लिख डालिए।’ शिक्षिका से निर्देश पा सभी बच्चों ने जल्दी से अपनी कॉपी निकाली और जल्दी जल्दी उत्तर लिखने लगे। गुड्डी ने भी ऐसा ही किया बस उसकी लिखने की गति बहुत धीमी थी। ऐसा लग रहा था मानो वह बहुत सोच-सोच कर लिख रही है। कुछ देर पश्चात सभी बच्चों ने कॉपी जमा करना शुरू कर दिया, लेकिन गुड्डी अभी भी लिख रही थी। शिक्षिका तुरंत उसके पास गई और प्रेम से उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘क्या हुआ बेटा आपको कुछ परेशानी आ रही है क्या? आपको जितना पता है उतना ही लिखिए, इन बच्चों को तो मैंने कुछ दिन पहले ही दुनिया के सात आश्चर्य बताये थे।” शिक्षिका की बात सुन गुड्डी एक पल के लिए सकुचाई फिर बोली, ‘मैम, मैं तो सोच रही थी कि इस दुनिया में ईश्वर की बनायी बहुत सारी आश्चर्यजनक चीजें हैं… उनमें से किन सात चीजों के विषय में लिखूँ और किन्हें छोड़ूँ, यही दुविधा है।’
शिक्षिका गुड्डी की बात तो नहीं समझ पाई पर मुस्कुराते हुए वहाँ से आगे बढ़ गई और अन्य बच्चों से उनकी उत्तर पुस्तिका जाँचने के लिये लेने लगी। कुछ देर पश्चात शिक्षिका ने सभी बच्चों के उत्तरों को ज़ोर से पढ़ना शुरू किया क्योंकि ज़्यादातर बच्चों ने सही उत्तर लिखे थे। जैसे चीचेन इट्ज़ा, क्राइस्ट द रिडीमर की प्रतिमा, कोलोसियम, चीन की विशाल दीवार, माचू पिच्चू, पेत्रा आदि। टीचर बहुत खुश थी क्योंकि बच्चों को उनका पढ़ाया हुआ याद था। बच्चे भी काफ़ी उत्साहित थे क्योंकि उन्होंने सही उत्तर दिये थे और उन्हें शिक्षिका से इसके लिए शाबाशी भी मिल रही थी। इसीलिए वे एक दूसरे को बधाई भी दे रहे थे। इसी बीच गुड्डी भी अपनी उत्तर पुस्तिका लेकर शिक्षिका के पास आ गई। शिक्षिका ने भी उसकी कॉपी खोली और उसे जोर से पढ़ना शुरू किया, ‘मेरी नज़र में दुनिया के सात आश्चर्य निम्नलिखित हैं। पहला : देख पाना; दूसरा : सुन पाना; तीसरा : किसी चीज को महसूस कर पाना; चौथा : हँस पाना; पाँचवाँ : प्रेम कर पाना; छठा: सोच पाना; सातवाँ : दया कर पाना।
गुड्डी का उत्तर सुन जहाँ पूरी कक्षा में सन्नाटा छा गया वहीं शिक्षिका एकदम अवाक खड़ी थी। आज गाँव से आई एक बच्ची ने उन सभी को भगवान के दिए उन अनमोल तोहफों का आभास करा दिया था जिनकी ओर सामान्य जीवन में उन्होंने कभी ध्यान ही नहीं दिया था।
दोस्तों, गुड्डी का जवाब सच में ही इंसान को अंदर से हिला देने वाला था। अगर आप गहराई से सोचेंगे तो पायेंगे कि देखने, सुनने, सोचने, समझने आदि जैसी शक्तियां वाक़ई किसी आश्चर्य से कम नहीं हैं। इसीलिए तो प्रख्यात लेखिका हेलेन किलर ने कहा है, ‘दुनिया की सबसे अच्छी और सबसे खूबसूरत चीज़ों को न तो देखा जा सकता है और न ही छुआ जा सकता है। उन्हें तो बस दिल से महसूस किया जा सकता है।’ लेकिन दोस्तों, बाहरी दुनिया का आकर्षण और साथ ही भटकाने वाले दिशानिर्देश हमें इनके विषय में कभी सोचने-समझने का मौक़ा ही नहीं देते हैं। अगर आपका लक्ष्य खुशहाल, शांतिपूर्ण जीवन जीना है तो हमारे पास क्या नहीं है के विषय में सोच कर दुखी होने के बजाय, आपको ईश्वर के दिए इन अनमोल तोहफों के लिए शुक्रगुजार होना सीखना होगा, तभी आप छोटी-छोटी बातों में छिपी खुशियों को महसूस कर पायेंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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