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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

ईश्वर को खोजें नहीं, महसूस करें…

Dec 1, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, बच्चों को शिक्षित, ज्ञानी और विद्वान बना कर हमने उसे पाखंड से दूर रहना तो सिखा दिया है लेकिन कहीं ना कहीं विज्ञान की सीमाओं से आगे के विषय के बारे में बताना भूल गए हैं। जी हाँ दोस्तों, बच्चे आज यह तो जानते हैं कि विज्ञान कहता है, ‘तुम मुझे करके दिखाओ, मैं तुम पर विश्वास कर लूँगा।’, लेकिन हम उसे प्रकृति का यह नियम सिखाना भूल गए हैं कि विज्ञान के आगे आस्था का नियम चलता है, जो कहती है, ‘तुम मुझ पर विश्वास रखो, मैं तुम्हें कर के दिखाऊँगी।’ एक बार गम्भीरता से इस बात पर गौर कीजियेगा। मेरी नजर में तो आस्था का नियम ना सिखा पाने का ही नतीजा है कि आज के युवा नकारात्मकता के साथ जीते हैं और ईश्वरीय शक्तियों पर या यूँ कहूँ कुछ विशेष स्थितियों में तो ईश्वर पर भी विश्वास नहीं रख पाते हैं।


उक्त बात का एहसास मुझे हाल ही मैं एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के छात्रों से चर्चा करते वक्त हुआ। अपने वक्तव्य के दौरान जब मैं उन्हें ‘ईश्वर और विश्वास की शक्ति’ विषय पर बता रहा था, तो एक युवा ने ईश्वर के होने पर ही सवाल खड़ा कर दिया और मुझसे कहा, ‘आप इसे सिद्ध करके दिखाइए।’ शुरू में तो मुझे कुछ सुझा नहीं, लेकिन तभी मुझे कई वर्षों पूर्व पढ़ी कहानी याद आई, जिसे सुना मैंने उस बच्चे को संतुष्ट करने का प्रयास किया। कहानी कुछ इस प्रकार थी…


बात कई साल पुरानी है, गाँव में रहने वाला ब्राह्मण दूसरों को पूजा-पाठ कराकर अपना जीवन-यापन किया करता था। एक बार उस ब्राह्मण को राजा ने अपने महल में पूजा कराने के लिए आमंत्रित किया। जिसे उसने ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार किया और तय दिन पूजा करवाने राजा के महल पहुँच गया। पूजन के पश्चात राजा ने ब्राह्मण को दक्षिणा दी और उसके पश्चात उनसे एक प्रश्न किया, ‘हे ब्राह्मण देव! आप पूजा-पाठी हैं, इसलिए कृपया मेरी निम्न दुविधाओं का समाधान करें, ‘भगवान कहाँ रहते हैं? उनकी नजर किस ओर है, और भगवान क्या कर सकते हैं?’ राजा के प्रश्न ने ब्राह्मण को दुविधा में डाल दिया। कुछ देर विचार करने के बाद ब्राह्मण ने राजा को बताया कि इस सवाल का जवाब देने के लिए उन्हें एक माह का समय चाहिए। जिसे राजा ने स्वीकार लिया।


वहाँ से आने के बाद ब्राह्मण हर क्षण इसी सोच में उलझा रहता था कि राजा द्वारा पूछे गए इन प्रश्नों का जवाब क्या होगा। इसी विचार में कई दिन बीत गए और महीना पूरा होने में अब सिर्फ़ कुछ ही दिन बचे थे। इस बात का एहसास होते ही ब्राह्मण दुखी और उदास रहने लगा। एक दिन ब्राह्मण को उदास देख ब्राह्मण के बेटे ने बोला, ‘पिताजी, आप इतने उदास क्यों हैं?’ ब्राह्मण बोला, ‘बेटा! कुछ दिन पहले मुझे राजा ने महल में पूजा करने के लिए बुलाया था। पूजन के पश्चात उन्होंने मुझसे तीन प्रश्न पूछे थे। पहला, भगवान कहाँ रहते हैं? दूसरा, भगवान क्या कर सकते हैं और तीसरा, भगवान की नजर किस ओर है। जब मुझे इन सवालों के जवाब नहीं सूझे ; तो मैंने राजा से उत्तर देने के लिए कुछ दिनों की मोहलत माँगी थी। तब राजा ने मुझे एक माह का समय दिया था और अब वो समय ख़त्म होने वाला है और मैं अभी तक भी इसका जवाब नहीं दे पाया हूँ, इसलिए ही चिंतित हूँ।’ ब्राह्मण की बात सुनते ही उनका पुत्र बोला, ‘पिताजी, आप निश्चिंत रहिए, राजा के सभी सवालों का जवाब मैं दूँगा।’


एक माह पूरा होते ही ब्राह्मण अपने पुत्र को लेकर राज दरबार में पहुँचा और राजा को प्रणाम कर बोला, ‘राजन, आपके प्रश्नों के उत्तर मेरा बेटा देगा।’ राजा ने ब्राह्मण के पुत्र के समक्ष प्रश्न दोहराते हुए कहा, ‘पहला, बताओ भगवान कहाँ रहते हैं? दूसरा, भगवान की नजर किस ओर है तथा तीसरा, भगवान क्या कर सकते हैं?’ ब्राह्मण का बेटा राजा को प्रणाम करते हुए बोला, ‘राजन! क्या आपके राज्य में अतिथि का सम्मान नहीं किया जाता है?’ बच्चे के प्रश्न से राजा सकपका गए और सेवक से सबसे पहले उस बालक का आदर सत्कार करने के लिए कहा। सेवक तत्काल उस ब्राह्मण बालक के लिए दूध का ग्लास लेकर आया। बालक ने दूध का ग्लास लिया और उसमें उँगली डालकर कुछ निकालने का प्रयास करने लगा। जिसे देख राजा वोले, ‘यह क्या कर रहे हो?’ बालक बोला, ‘सुना है दूध में मक्खन होता है। मैं उसे खोजने का प्रयास कर रहा हूँ। लगता है आपके राज्य के दूध से मक्खन ही गायब है।’ राजा मुस्कुराते हुए बोले, ‘दूध का मक्खन ऐसे नहीं मिलता। उसके लिए पहले तुम्हें दूध को जमाकर दही बनाना होगा और फिर दही को मथकर मक्खन प्राप्त होता है।’ जवाब सुनते ही बालक बोला, ‘महाराज यही आपके पहले प्रश्न का जवाब है। प्रत्येक जीव के अंदर भगवान हैं। परंतु उन्हें पाने के लिए सच्ची भक्ति की आवश्यकता होती हैं। मन से ध्यानपूर्वक भक्ति करने पर आत्मा में छुपे हुए परमात्मा का आभास होता है।’


इसके बाद बालक ने वहाँ जलती हुई मोमबत्ती की तरफ़ इशारा करते हुए पूछा, ‘राजन इस मोमबत्ती की रोशनी किस ओर है?’ राजा बोले, ‘इसकी रोशनी चारों दिशाओं में एक समान है।’ जवाब सुन बालक बोला, ‘राजन! यही आपके दूसरे सवाल का जवाब है। परमात्मा सर्वदृष्टा हैं और उनकी नजर सभी प्राणियों के कर्मों की ओर परस्पर रहती है। अब अगर आप तीसरे सवाल का जवाब जानना चाहते हो तो आपको मेरे स्थान पर और मुझे आपके स्थान पर आना होगा।’ राजा, जो अब तक बालक के ज्ञान के कायल हो चुके थे, उत्सुकता के साथ अपने स्थान से उठे और बालक को वहाँ बैठा कर, ख़ुद बालक के स्थान पर जाकर बैठ गए। राजा के सिंहासन पर बैठते ही वह बालक बोला, ‘राजन! आपने पूछा था, ‘भगवान क्या कर सकते हैं?’ तो जवाब है, भगवान मुझ जैसे रंक को राज सिंहासन पर बैठा सकते हैं और आप जैसे राजा को मुझ जैसे सवाली के स्थान पर। अर्थात् भगवान राजा को रंक और रंक को राजा बना सकते हैं। यही आपके अन्तिम सवाल का जवाब है।’


कहानी पूरी होते ही मैंने सवाल करने वाले बच्चे से कहा, ‘बेटा, भगवान को खोजने की नहीं, अपने अंदर महसूस करने की जरूरत है क्योंकि भगवान कहीं बाहर नहीं हमारे हृदय में निवास करते हैं। अगर तुम उनसे प्रेम करोगे; उनके प्रति समर्पण रखोगे तो वे तुम्हें अपने आप ही सही मार्ग दिखायेंगे। जिस दिन तुम अपने अंदर मौजूद उस शक्ति से जुड़ जाओगे, जीवन के असली लक्ष्यों को पा लोगे क्योंकि तब तुम विज्ञान के नियम पर नहीं अपितु आस्था के नियम पर जीवन जीने लगोगे।

-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर


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