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उत्कर्ष के लिए संघर्ष है ज़रूरी…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Updated: May 8, 2023

May 4, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जीवन में चुनौतियों या विपरीत परिस्थितियों का होना आपको क़िस्मत विहीन या फूटी क़िस्मत वाला नहीं बनाता है। बल्कि इन चुनौतियों या विपरीत परिस्थितियों को डील करने का आपका रवैया, आपका नज़रिया यह तमग़ा आपको देता है। उपरोक्त बातें कल उस वक्त मेरे ज़हन में आई, जब एक युवा जीवन में मिली नाकामी का ठीकरा क़िस्मत पर फोड़ता हुआ मुझसे मिला। उसकी नज़र में उसकी असफलता की मुख्य वजह परिवार वालों का, दोस्तों का, व्यवसायिक सम्बन्धों का सही समय पर साथ ना देना और उसकी बातों को ना समझ पाना था। जब मैंने उसके इस विचार पर प्रश्न करते हुए पूछा कि ‘क्या तुम स्वयं अपना साथ दे रहे हो या खुद के नज़रिए को समझ पा रहे हो?’, तो वह अपनी क़िस्मत को दोष देता हुआ बोला, ‘सर सब समय का खेल है। जब वक्त बुरा होता है ना; तब कुत्ता भी शेर का शिकार कर लेता है।’


मैंने वक्त की नज़ाकत और उस युवा की मानसिक स्थिति को समझते हुए उससे कहा, ‘भाई, हो सकता है तुम सही कह रहे हो कि सारी परेशानियाँ, सारी दिक्कतें, सारी असफलताएँ, क़िस्मत या बुरे समय की वजह से हैं। तो भी क्या तुम क़िस्मत या वक्त को बदल सकते हो? शायद नहीं! ईश्वर ने तो हमें इन सभी परेशानियों, दिक्कतों को डील करने के लिए एक ही योग्यता; एक ही कौशल या कुल मिलाकर कहूँ, तो एक ही उपाय या जीवन की उलझी हुई पहेलियों को सुलझाने; क़िस्मत का दरवाज़ा खोलने की एक ही ‘मास्टर की’ या ‘चाबी’ दी है, वह है ग़लतियों से सीखकर एक बार फिर प्रयास करना।’


जी हाँ दोस्तों, जीवन की हर चुनौती; हर परिस्थिति; हर पहेली को सुलझाने का एक ही तरीक़ा है, पुरानी ग़लतियों से सीखकर एक बार फिर से प्रयास करना। वैसे यही बात हमें नीति शास्त्र भी सिखाता है। नीति शास्त्र के अनुसार मनुष्यों को निम्न तीन तरह के लोगों में विभाजित किया जा सकता है-


1) अधम श्रेणी के मनुष्य - दोस्तों, अधम का अर्थ होता है नीच, अधर्मी, या बदमाश। इस आधार पर देखा जाए तो इस श्रेणी में वे लोग आते हैं जो कठिनाइयों के भय से किसी उत्तम कार्य को प्रारंभ ही नहीं करते।।


2) मध्यम श्रेणी के मनुष्य - इस श्रेणी में वे लोग आते हैं जो किसी उत्तम कार्य को प्रारंभ तो करते हैं लेकिन परेशानियाँ, विपत्तियाँ या विपरीत परिस्थितियाँ आने पर घबरा जाते हैं और कार्यों को बीच में ही छोड़ देते हैं। इसका अर्थ हुआ, इस श्रेणी के लोग परेशानियों, विपत्तियों और विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का सामर्थ्य नहीं रखते हैं।


3) उत्तम श्रेणी के मनुष्य - इस श्रेणी में वे लोग आते हैं जो तमाम परेशानियों, विपत्तियों अथवा विपरीत परिस्थितियों की वजह से बार-बार आई चुनौतियों के बावजूद भी उत्तम कार्य को कभी भी पूरा किए बग़ैर, बीच में नहीं छोड़ते हैं अर्थात् उनका लक्ष्य हमेशा हाथ में लिए गए कार्य को पूर्ण करना होता है। वे जानते हैं कि कार्य जितना श्रेष्ठ, बड़ा और उत्तम होगा; उसमें बाधाएँ भी उतनी ही ज़्यादा आएँगी और इससे निपटने के लिए उन्हें उतने ही ज़्यादा आत्मबल की ज़रूरत पड़ेगी क्योंकि आत्मबल जितना ऊँचा या बड़ा होगा, समस्याएँ उतनी ही छोटी नज़र आएँगी। इसलिए यह लोग हमेशा आत्मविश्वास से परिपूर्ण रहते हैं।


उपरोक्त आधार पर देखा जाए दोस्तों, तो इस दुनिया में वही पूर्णता के साथ जीवन जीता है अर्थात् अपने सपनों का जीवन वही जीता है जो परेशानियों, विपत्तियों और विपरीत परिस्थितियों को चुनौतियों के रूप में स्वीकारता है; उनका सामना करता है; उनसे बचकर भागता नहीं है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हमें अपने संकल्पों को इतना मज़बूत करना है कि हमसे हार भी, हार मान कर दूर चली जाए। इसके लिए दोस्तों, हमें अपने जीवन की ज़िम्मेदारी स्वयं लेना होगी। जीवन में मिली सभी असफलताओं को स्वीकारना होगा; उनसे सीखना होगा और एक बार फिर से प्रयास करना होगा। याद रखिएगा, हार मान कर बैठने के स्थान पर संघर्ष करना बेहतर है क्योंकि जीवन में उत्कर्ष के लिए संघर्ष ज़रूरी है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर


 
 
 

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