top of page

उत्कृष्टता या निकृष्टता - मानवीय सोच का परिणाम

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Updated: May 8, 2023

May 5, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जीवन में आपको समस्याएँ ज़्यादा नज़र आ रही हैं या सम्भावनाएँ। आप स्वयं को सफल होता देख रहे हैं या असफल, दोनों ही स्थितियों में आप सौ प्रतिशत सही हैं। इस सृष्टि में मनुष्य ही एक मात्र ऐसा प्राणी है जिसका व्यक्तित्व प्रकृति से ज़्यादा उसकी प्रवृति याने उसकी सोच पर निर्भर करता है। जी हाँ दोस्तों, मनुष्य अपने विचारों से बनता है और उसी से खत्म भी हो जाता है। याने वह जैसा सोचता है, वैसा बन जाता है।


चौरासी लाख योनियों में इस अनोखी क्षमता याने श्रेष्ठ विचारों द्वारा श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण करना ही मनुष्य को सबसे शक्तिशाली, सबसे अलग और अनूठा बनाता है। आप स्वयं सोच कर देखिएगा दोस्तों, मनुष्य के सिवा कोई अन्य प्राणी श्रेष्ठ विचारों द्वारा एक श्रेष्ठ जीवन का निर्माण नहीं कर पाता है। वो अच्छा सोचकर, अच्छे विचारों के आश्रय से अपने जीवन को अच्छा नहीं बना सकता है। ईश्वर ने उसे जैसा बनाया, वह वैसे ही अपना जीवन जीता है। अपनी सोच बदलकर, जीवन को संवारने की क्षमता उसमें नहीं होती है और ना ही इसकी कोई सम्भावना भी रहती है।


ऐसी अनोखी क्षमताओं का धनी होने के बाद भी दोस्तों, हम में से कुछ मनुष्य परिस्थितियों, क़िस्मत या ईश्वर को दोष देते हुए जीवन जीते हैं। वे जीवन को सार्थक बनाने की तमाम सम्भावनाओं को ताक पर रखकर, समस्याओं पर अपना पूरा ध्यान लगाकर अपना जीवन जीते हैं। जिस तरह एक मक्खी साफ़-सुथरी जगह को छोड़कर गंदगी पर बैठना पसंद करती है। ठीक उसी तरह नकारात्मक लोग समस्याओं पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए जीवन जीते हैं। याने उनका पूरा ध्यान जो नहीं है, उन बातों या संसाधनों पर रहता है। इसी वजह से वे कभी भी जो उपलब्ध है उसकी क़ीमत पहचान ही नहीं पाते हैं; उसका प्रयोग अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए कर ही नहीं पाते हैं।


याद रखिएगा दोस्तों, मनुष्य को ईश्वर ने एक विशेष गुण के साथ इस धरती पर भेजा है। वह जीवन के अंतिम क्षणों तक अपनी सोच, अपने कर्म से खुद के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वह हर पल अपने जीवन को उत्कृष्ट याने बेहतर या निकृष्ट याने बदतर बना सकता है। मनुष्य के अतिरिक्त किसी भी अन्य योनि को यह क्षमता प्राप्त नहीं है। इसीलिए कहा जाता है कि पशु के जीवन में पशु से पशुपतिनाथ बनने की संभावना नहीं होती मगर एक मनुष्य के जीवन में नर से नारायण बनने की प्रबल संभावना होती है।


इसलिए दोस्तों मेरा सुझाव है कि आज से हम सभी लोग अपने जीवन को हर पल बेहतर बनाने के लिए इस धारणा को अपने जीवन का मूल मंत्र बना लेते हैं कि मनुष्य जैसा खाता है, जैसा देखता है, जैसा बोलता है और जैसा सोचता है, उसी के अनुरूप वह अपने व्यक्तित्व का निर्माण कर लेता है। याद रखिएगा, अगर आप मनुष्य को दी गई इस विशेष क्षमता का प्रयोग नहीं करेंगे तो निश्चित तौर पर ईश्वर द्वारा मनुष्य योनि में दिए गए इस जन्म को बर्बाद कर देंगे। यह स्थिति बिलकुल वैसी ही है जैसे घर पर फ़्रिज में भोजन होने के बाद भी भूखे मर जाना।


आईए दोस्तों आज नहीं, अभी से ही ईश्वरीय कृपा से मिले इस मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने का निर्णय लेते हैं और इसकी शुरुआत मनुष्य योनि में जन्म देने के लिए परमपिता परमेश्वर का आभार व्यक्त करते हुए करते हैं। इसके साथ ही आज से हर पल इस बात को खुद को बार-बार याद दिलाते हैं कि जब ईश्वर ने हमें मनुष्य बनाया है तो फिर क्यों न श्रेष्ठ को सोचकर, श्रेष्ठ को चुनकर, श्रेष्ठ पथ पर चलते हुए, श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण करें और ईश्वर के दिए इस अनुपम, अनूठे उपहार, इस जीवन को श्रेष्ठ बनाएँ।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

Comments


bottom of page