Mar 15, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
हाल ही की वडोदरा की अपनी व्यक्तिगत यात्रा के दौरान एक परिचित लेकिन 14-15 वर्षीय बच्चे के माता-पिता ने मुझसे एक प्रश्न पूछते हुए कहा, ‘सर, आपको नहीं लगता आजकल पेरेंटिंग बहुत मुश्किल हो गयी है।’ मैंने जब उनसे विस्तार से बताने के लिए कहा तो वे बोले, ‘सर, हमारा उदाहरण ही देख लीजिए। हम दोनों पति-पत्नी बच्चे को अच्छी से अच्छी सुख-सुविधा और शिक्षा देने के लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं। लेकिन आज के बच्चे कुछ समझने के लिए राज़ी ही नहीं हैं। हम इसे शहर के सबसे महँगे विद्यालय से शिक्षा दिला रहे हैं। इसने जो भी माँगा जैसे लैपटॉप, बाइक, कोचिंग आदि हमने इसे सब कुछ दिया, लेकिन उसके बाद भी इसे हमारी मेहनत या महत्ता को कोई अंदाज़ा नहीं है। बात सुनते ही मुझे उस यंग कपल की समस्या तत्काल समझ आ गई। लेकिन मैंने उन्हें सीधे जवाब देने के स्थान पर कहानी सुनाने का निर्णय लिया जो इस प्रकार थी-
माँ गंगा किनारे स्थित गाँव में एक विधवा महिला रहती थी जो अपना ज़्यादातर समय सूत कातने अथवा धान कूटने में लगाया करती थी। महर्षि कपिल, जो रोज़ उसके घर के सामने से गंगा नहाने जाते थे, उसे ऐसा करते देख विचलित हो ज़ाया करते थे। एक दिन महर्षि कपिल ने उस महिला से इस विषय में चर्चा करने का निर्णय लिया और उसके पास पहुँच कर बड़े स्नेह के साथ बोले, ‘बेटा, ऐसी कौन सी परेशानी आ गई जिसके कारण तुम्हें रोज़ यह कार्य करना पड़ता है।’ महिला ने महर्षि को प्रणाम करते हुए कहा, ‘गुरुजी, मेरे पति अब इस दुनिया में नहीं हैं और उनके बाद हमारे परिवार में आजीविका चलाने वाला भी कोई नहीं है। इसलिए यह ज़िम्मेदारी मैं निभा रही हूँ।’
विधवा महिला की बात सुन महर्षि कपिल का हृदय दया से भर गया। उन्होंने उस महिला से बड़े आदर भरे शब्दों में कहा, ‘मैं पास ही के आश्रम का कुलपति कपिल हूँ। रोज़ गंगा स्नान के लिए जाते वक्त तुम्हें कार्य करते हुए देखता हूँ, मुझसे तुम्हारी यह स्थिति देखी नहीं जाती है। मेरे कई शिष्य राज परिवारों से हैं। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी आजीविका की स्थाई व्यवस्था करवा सकता हूँ।’
उस महिला ने महर्षि से हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘बहुत-बहुत धन्यवाद गुरुजी, मदद की इस पेशकश के लिए मैं आभारी हूँ। लेकिन आपने मुझे पहचानने में थोड़ी भूल कर दी। ना तो मैं असहाय हूँ और ना ही निर्धन। मेरे पास पाँच ऐसे रत्न हैं जिनकी सहायता से अगर मैं चाहूँ तो स्वयं राजसी जीवन जी सकती हूँ। अभी तक ऐसी आवश्यकता महसूस नहीं हुई इसलिए मैंने उन्हें सुरक्षित रखा हुआ है।’
महिला का जवाब सुन महर्षि के मन में उत्सुक्ता जगी उन्होंने महिला से विनम्र निवेदन करते हुए उन पाँचों रत्नों को देखने की इच्छा प्रकट करी। महिला ने गुरुजी को बैठने के लिए आसन दिया और फिर उनके समक्ष जल व फल का भोग रखा और हाथ जोड़ते हुए बोली, ‘गुरुजी, आपको थोड़ी देर प्रतीक्षा करना होगी, तब तक आप जल व फल पाएँ।’ इतना कह कर वह वापस चरखा कातने में व्यस्त हो गई।
कुछ देर पश्चात उस महिला के पाँचों पुत्र आश्रम से पढ़ाई कर लौट कर आए और पहले अपनी माँ फिर महर्षि के पैर छूते हुए बोले, ‘माँ! आज भी हमने किसी से झूठ नहीं बोला, किसी को कटु या दिल दुखाने वाले वचन नहीं कहे, गुरुजी ने जो भी सिखाया हमने पूरे ध्यान और परिश्रम के साथ सीखा।’
माँ-बच्चों का संवाद सुन महर्षि मुस्कुराए क्योंकि वे महिला के पाँचों रत्नों को देख चुके थे और अब कुछ कहने-सुनने लायक़ कुछ बचा नहीं था। उन्होंने महिला और बच्चों को पहले प्रणाम फिर आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘भद्रे ! वाकई में तुम्हारे पास अति बहुमूल्य रत्न है, ऐसे अनुशासित बच्चे जिस घर में हों, जिस देश में, हो उसे चिंता करने की आवश्यकता ही नहीं है।’
कहानी पूर्ण होते ही मैंने उस कपल से प्रश्न किया, ‘आप बच्चों को संसाधन दे रहे हैं या संस्कार? विचार कीजिएगा, अगर आपकी प्राथमिकता संसाधन है तो यक़ीन मानिएगा, आपके लिए ना सिर्फ़ अभी पेरेंटिंग मुश्किल है बल्कि आपको भविष्य में भी सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है। लेकिन अगर आपकी प्राथमिकता बच्चों को संस्कारी बनाना है तो यक़ीन मानिएगा, कुछ ही दिनों में आप ना सिर्फ़ पेरेंटिंग को इंजॉय करेंगे बल्कि देर-सवेर बादशाहों वाली ज़िंदगी जिएँगे। यानी आप ना सिर्फ़ पैसों से बल्कि मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक, भौतिक तृप्ति के साथ अपना जीवन जिएँगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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