Feb 23, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, जीने का जज़्बा हो तो उम्र महज़ एक अंक है। जी हाँ साथियों, जिस पल तक आपके जीवन में रोमांच, सपने, आशा, उद्देश्य और उत्साह का संचार हो रहा है, तब तक आपके लिए बढ़ती हुई उम्र सिर्फ़ और सिर्फ़ जीवन को और बेहतर तरीके से जीने का मिला हुआ मौक़ा है। अपनी बात को चलिए मैं एक ऐसे युवा की कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ, जिन्होंने 2016 में 67 वर्ष की उम्र में तमाम चुनौतियों को नज़रंदाज़ करते हुए, अपने पैशन को प्राथमिकता देकर ज़िंदगी जीने का निर्णय लिया।
जीवन को ज़िंदादिली से जीने के लिए ऊर्जा और दिशा देने वाले इस किस्से की शुरुआत मैं 2011 से करता हूँ, जब हमारी इस कहानी के हीरो दिल के दौरे की वजह से और उसी समय में उनकी हीरोईन, जो उस वक्त पैर में फ्रैक्चर के कारण बिस्तर पर पड़े हुए थे। उनके लिए यह समय बेहद चुनौती भरा था क्योंकि हमेशा अपनी 1974 मॉडल की बुलेट पर घूमना पसंद करने वाले व्यक्ति को डॉक्टर ने हिदायत देते हुए कहा था कि ‘जीना चाहते हो, तो अब कभी बुलेट चलाने के बारे में सोचना भी मत।’
कुछ दिनों तक तो वे डॉक्टर की सलाह पर पूर्णतः अमल करते रहे लेकिन अपने पैशन से दूर रहना उन्हें लगातार परेशान कर रहा था। वे मन ही मन सोच रहे थे कि अभी तो मैं सिर्फ़ 67 वर्ष का हूँ । अभी से मुझे एक चारदीवारी के अंदर क़ैद रहते हुए, अपने जीवन को बूढ़ों की तरह नहीं बिताना है। थोड़ा ठीक होने पर उन्होंने यह बात अपनी पत्नी लीला को बताई और धीमी गति से शुरुआत करते हुए अपनी बुलेट से आस-पास के शहरों-बाज़ारों तक आना जाना शुरू कर दिया।
अपनी बुलेट का साथ वापस पा उन्हें अच्छा तो बहुत लग रहा था लेकिन अपनी हमसफ़र याने अपनी पत्नी लीला का दूर होना उन्हें खल भी रहा था। चूँकि उस समय लीला फ्रैक्चर के कारण व्हीलचेयर पर थी इसलिए उनका बुलेट की पिछली सीट पर बैठ कर साथ देना सम्भव नहीं था, जैसा वे पहले किया करती थी। काफ़ी विचार करने के बाद हमारी आज की कहानी के हीरो ने अपनी बुलेट में साइड कार लगाने का निर्णय लिया और अपनी पत्नी लीला के आराम से बैठने की व्यवस्था करी और 2016 में अपनी एफ़॰डी॰ तोड़ कर कुछ पैसे लिए और बीमारी के बाद अपनी पहली ‘लांग ड्राइव’ पर निकल पड़े। इस यात्रा की शुरुआत उन्होंने वडोदरा से करी और महाराष्ट्र, केरल, गोवा, कर्नाटक और तमिलनाडु होते हुए वापस लौट आए। इस यात्रा में वे 3 घंटे तक लगातार ड्राइव करने के बाद एक ब्रेक लिया करते थे और जहाँ इच्छा होती थी, वहीं रात्रि को विश्राम करने रुक ज़ाया करते थे। इस दौरान लीला फ़ाइनैन्स मैनेजर के रोल में होती थी और वे बुलेट में बनाई एक ‘सीक्रेट तिजोरी’ से प्रतिदिन 4000 रुपए खर्च करने के लिए देती थी। इस 4000 में पेट्रोल, रुकना और खाना आदि सभी कुछ सम्मिलित था। देखते ही देखते इस यात्रा में दोनों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़े-पकड़े 75 सूर्यास्त देख, इस जीवन को सार्थक बना लिया और साथ ही अपने घर वडोदरा पहुंचने के पहले अपनी अगली यात्रा का प्रोग्राम पक्का कर लिया।
फ़रवरी 2018 में उन्होंने अपनी दूसरी यात्रा उत्तर पूर्व की करी और फिर इसे अपने वार्षिक कैलेंडर में परमनेंट स्थान दे दिया। इसके बाद दक्षिण की एक यात्रा के समय श्रीमती लीला के घुटने में एक और फ़्रैक्चर हो गया और उन्हें एक सप्ताह के लिए अस्पताल में सर्जरी के लिए भर्ती होना पड़ा। लेकिन यह सर्जरी भी उन्हें रोक नहीं पाई और वे एक बार फिर कास्ट ऑन के साथ साइडकार में बैठी और बोली, 'चलो चलें!’
यात्रा के दौरान रास्ते में कई बार बच्चे उन्हें रोक कर पूछा करते थे, 'अंकल आप ठीक तो हो ना?' और वे इसके जवाब में कहते थे, 'अंकल किसको बोला बे? मैं एक वरिष्ठ नागरिक हूँ, लेकिन मेरा दिल तो अभी भी जवान है!’ वे सफलता पूर्वक अपनी यात्रा के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘मेरी बुलेट में 2 बैटरी हैं, जिनमें से एक मेरी लीला है!’
2020 तक 70 के दशक के यह युवा दम्पत्ति लगभग 30,000 किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं। एक बार जब इस यात्रा के दौरान किसी ने उन पर कमेंट करते हुए कहा, ‘देखो जय और वीरू आ गए।’ शोले फ़िल्म के जय-वीरू के रूप में पुकारे जाने पर उन्हें बड़ा अद्भुत लगा। आगे की योजना के विषय में पूछे जाने पर वे कहते हैं, ‘लीला, हमेशा मेरी वीरू रहेगी और मैं अपने जीवन के बाकी दिनों को उसके साथ, गर्जना करती हुई बुलेट पर तेज हवा के झोकों में उड़ते हुए बालों के साथ जीना चाहता हूँ।’
दोस्तों, अब तो आप निश्चित तौर पर समझ ही गए होंगे कि मैंने इस लेख की शुरुआत में क्यों कहा था कि उम्र सिर्फ़ एक अंक है और जब तक उसमें रोमांच, सपने, आशा, उद्देश्य और उत्साह है, तब तक आप युवा हैं।’ तो आइए दोस्तों उम्र को दिखाते हैं ठेंगा और निकल पड़ते हैं अपने पैशन को पूरा करने के लिए, पूरे जज़्बे के साथ !!!
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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