Jan 4, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, तेज़ी से बदलती इस दुनिया में जीवन मूल्य और सामाजिक दायित्व बड़े हैं या पैसा? आप कहेंगे, ‘क्या फ़ालतू का प्रश्न कर रहे हो? निश्चित तौर पर जीवन मूल्य और सामाजिक दायित्व पैसे से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसा विषय है, जिसपर मेरा मानना है कि ज़्यादातर लोगों का यही मत होगा। लेकिन अगर आप लोगों की जीवनशैली, काम करने के तरीक़े और उनके व्यवहार पर गौर करेंगे तो पायेंगे कि वे बिलकुल इसके उलट चल रहे हैं। याने उनके लिए पैसा, उनके अपनों, सामाजिक व्यवहार और जीवन मूल्य से ज़्यादा ज़रूरी होता है।
सोच और कर्म अथवा सपनों और हक़ीक़त के बीच का यही अंतर; मेरी नज़र में आज के युग में बढ़ते अवसाद, खिन्नता, कुंठा और एकाकी जीवन की महत्वपूर्ण वजह है। यही वो कारण है, जिसकी वजह से आज के युग में लोगों के चेहरे से मुस्कुराहट और दिल से ख़ुशी ग़ायब हो रही है और इसकी वजह से उपजी नकारात्मकता लोगों के जीने के हौसले को समाप्त कर रही है। चलिए, इस स्थिति को हम वर्तमान में समाज में आए परिवर्तन से समझने का प्रयास करते हैं।
पहले सामान्यतः लोग संयुक्त परिवार में रहना पसंद करते थे। लेकिन इस भौतिक युग और दिखावा पसंद संस्कृति में ख़ुद को सफल सिद्ध करने और जीवन में आगे बढ़ते हुए अपने सपनों को सच करने की चाह में आजकल लोग एकाकी जीवनशैली को अपना रहे हैं। यही एकाकी जीवन शैली कुंठा के साथ जीवन में आने वाले और भी कई नकारात्मक भावों की एक प्रमुख वजह है। अगर आप थोड़ा गंभीरता के साथ इस विषय में सोचेंगे तो पाएँगे एकाकी जीवनशैली आपको भावनात्मक रूप से अस्थिर बना देती है क्योंकि हमारे आस-पास हमारे सुख-दुख को बाँटने वाला कोई भी नहीं रहता है और यही वह बिंदु होता है जहां से हमारा मन कुंठाग्रस्त होने लगता है।
इसीलिए मैं हमेशा कहता हूँ कि सिर्फ़ असफलता ही नहीं बल्कि एकाकी जीवन जीकर पाई सफलता भी कुंठा का कारण होती है। अगर सहमत ना हों तो जरा सोच कर देखिए, आपने एकाकी जीवन जीते हुए अपना कोई बहुत बड़ा सपना पूरा किया। आप एवरेस्ट चढ़ आए या आपने ढेर सारे पैसे कमा लिए या फिर आपने कोई बहुत बड़ा पद पा लिया या फिर ढेर सारा नाम कमा लिया, लेकिन अब आपके आस-पास कोई भी अपना नहीं है जिसके साथ आप इस ख़ुशी को बाँट पाएँ या फिर सब कुछ पाने के बाद भी कोई आपकी पीठ थपथपाने वाला, आपकी प्रशंसा करने वाला नहीं है तो आपको कैसा लगेगा? आप कितने दिनों तक अकेले ही जीवन का लुत्फ़ उठा पायेंगे? क्या आपकी यह सफलता आपको सुख का अनुभव देगी? शायद नहीं!
इसीलिए दोस्तों, मेरा मानना है कि जिस परिवार में लोग भौतिक रूप से दूर रहते हुए भी एक दूसरे के दिल के पास रहते हैं। भौतिक रूप से दूर होने के बाद भी एक दूसरे के सुख-दुख में सहभागी होना जानते हैं वहाँ कुंठा, अवसाद या अन्य नकारात्मक भावों के स्थान पर सुख और ख़ुशी निवास करती हैं। जी हाँ दोस्तों अगर आप ख़ुद को कुंठा और अवसाद जैसे नकारात्मक भावों से बचाना चाहते हैं तो अपने परिवार, अपने दोस्तों, आपके अपने लोगों के लिए समय निकालना शुरू कीजिए याने इन लोगों के साथ समय व्यतीत कीजिए। उनके और अपने ग़म बाँटें, सुख-दुख के साथी बनें, एक दूसरे के साथ मिलकर मुस्कुरायें और शांत रहते हुए ख़ुशी के साथ सुखी जीवन जिएँ। अन्यथा दोस्तों, आप नाम और पैसा तो बहुत कमा लेंगे लेकिन प्रसन्न नहीं रह पाएँगे।
जी हाँ दोस्तों, यह वाक़ई इतना महत्वपूर्ण है, इसलिए एक बार विचार कर देखियेगा ज़रूर…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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