Nirmal Bhatnagar
एम्बिशन, ऐटिटूड और ऐक्शन के सामंजस्य से पाएँ सफलता…
Dec 31, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आज हम वर्ष 2022 के अंतिम दिन तक पहुँच गए हैं, जहाँ कुछ लोग नया साल कैसे बनाएँ इस योजना को अंतिम रूप देने में लगे होंगे, तो कुछ लोग नए साल के लिए कुछ बड़े और अच्छे लक्ष्यों को तय करने में व्यस्त होंगे। लेकिन अक्सर मैंने देखा है नए वर्ष पर बनाए गए लक्ष्यों को पाना या प्रतिज्ञाओं को निभा पाना अक्सर बहुत मुश्किल हो जाता है और ज़्यादातर लोग अपने लक्ष्यों को बीच में ही छोड़ देते हैं।
वैसे ऐसा सिर्फ़ नए साल के रेज़लूशन के समय ही नहीं होता है बल्कि सामान्यतः जीवन में बनाए गए ज़्यादातर लक्ष्य ऐसे ही बीच में अधूरे छूट जाते हैं। इस बात को मैं आपको अपने जीवन की एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ। स्कूली दिनों में परीक्षा का परिणाम आने पर अक्सर मुझे अपनी रैंक देख थोड़ी परेशानी होती थी क्यूँकि कक्षा की रैंक लिस्ट में आपका नाम काफ़ी नीचे होता था। ऐसे में मैंने हर साल एक ही रेज़लूशन लिया था, ‘अगले साल कुछ भी हो जाए मैं ही कक्षा में प्रथम आऊँगा।’
निर्णय लेने के पश्चात सबसे पहला कार्य होता था घर वालों के साथ जा, अगले वर्ष की किताबें लाना और गर्मी की छुट्टियों में ही पढ़ाई शुरू कर देना। लेकिन छुट्टियों के दौरान ही मेरे कुछ मित्र उज्जैन अपने नाना-नानी या दादा-दादी के यहाँ आया करते थे और उनसे साल में एक ही बार मिलने का मौक़ा मिला करता था। ऐसे में उनके साथ खेलना और मस्ती करना, पढ़ाई के मुक़ाबले ज़्यादा ज़रूरी लगता था और मैं बनाए गए लक्ष्य को भूल खेलने में लग ज़ाया करता था।
बाहर से आए दोस्तों के वापस लौटने और गर्मियों की छुट्टियाँ खत्म होने के कुछ दिन पूर्व एक बार फिर मुझे कक्षा में प्रथम आने के लक्ष्य का भान होता था और वापस से पढ़ाई की याद आती थी। कुछ दिन फिर मैं वापस से मेहनत करता था कि स्कूल खुल ज़ाया करते थे। उस वक्त गर्मियों की छुट्टी में स्कूल के दोस्तों से मिलना नहीं हो पाता था इसलिए मैं एक बार फिर पढ़ाई छोड़ दोस्तों से मिलने, उनके साथ मस्ती करने में व्यस्त हो ज़ाया करता था और इसी दौरान पहले टेस्ट के परिणाम से याद आता था कि आप फिर से कक्षा में प्रथम नहीं आ पाए हो।
फिर एक बार अपना फ़ोकस किसी तरह मैं पढ़ाई पर लाता था लेकिन तब तक स्कूल में खेल या अन्य गतिविधियाँ शुरू हो जाती थी और आप एक बार फिर सब भूल वापस उसमें व्यस्त हो जाते थे और पता ही नहीं लगता था कि कब अर्धवार्षिक परीक्षा में भी आप मनमाफ़िक परिणाम नहीं पा पाते थे और साथ ही यह भी एहसास हो जाता था कि प्रथम आने का लक्ष्य तो शायद इस वर्ष पूरा नहीं हो पाएगा। लेकिन उसी वक्त एक बार फिर खुद को समझा लेता था कि देखना अगले साल तो मैं ही प्रथम आऊँगा। दोस्तों, यही क्रम सालों-साल चलता रहा और मैं अपनी पढ़ाई पूर्ण कर व्यापार में व्यस्त हो गया। व्यापार के दिनों में भी कई बार मैं लक्ष्य बनाने के बाद उन्हें हक़ीक़त में नहीं पा पाया।
ऐसा ही कुछ हमारे साथ नए साल के रेज़लूशन में भी होता है जिसमें हम अपने स्वास्थ्य, व्यापार, शिक्षा, परिवार, पैसा आदि को ले ढ़ेर लक्ष्य बनाते हैं लेकिन उन्हें कभी हक़ीक़त में पूरा नहीं कर पाते हैं, पता है क्यू? क्यूँकि दोस्तों हम सभी लोगों के एम्बिशन बहुत हाई होते हैं। लेकिन एम्बिशन हाई होने का अर्थ यह नहीं होता कि आप सफल हो जाएँगे या लक्ष्यों को पा लेंगे। लक्ष्य को पाने के लिए तो आपको अन्य तीन महत्वपूर्ण चीजों को ध्यान में रखते हुए कार्य करना होगा। पहली एम्बिशन अर्थात् सपना, दूसरा ऐटिटूड अर्थात् दृष्टिकोण और तीसरा ऐक्शन अर्थात् कर्म। दोस्तों, अगर आपका लक्ष्य ‘सौ’ पाना है तो आपको अपने दृष्टिकोण को ‘दो सौ’ के लायक़ बनाना होगा और कर्म चार सौ पाने के लायक़ करना होंगे। दूसरे शब्दों में कहूँ दोस्तों, तो लक्ष्य पाने के लिए आपको लक्ष्य से दुगना दृष्टिकोण और दृष्टिकोण से दुगना मेहनत या कर्म करना होता है। आईए दोस्तों इस बार हम एम्बिशन, ऐटिटूड और ऐक्शन में इस आधार पर सामंजस्य बनाते हुए नए लक्ष्य बनाते हैं और वर्ष 2023 को अपने जीवन का सबसे सफलतम लक्ष्य बनाने के लिए कार्य करते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर