Aug 15, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, सर्वप्रथम तो आप सभी को हमारे राष्ट्रीय गौरव के पर्व स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। आज हम अंग्रेजों से मिली स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण कर 76वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। यही वह शुभ या सौभाग्य का दिन है, जब वर्ष 1947 में स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा कई वर्ष तक किए गए अथक प्रयासों और संघर्षों के बाद हमें अंग्रेजों की 98 वर्षों की ग़ुलामी से आज़ादी मिली थी।
आप शायद सोच रहे होंगे कि मैंने 200 वर्ष की ग़ुलामी के स्थान पर मात्र 98 वर्ष कैसे कह दिया? तो दोस्तों आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बाता दूँ कि अंग्रेजों ने कभी हम पर 200 वर्षों तक राज किया ही नहीं। असल में यह तो शर्म आधारित राष्ट्रवाद खड़ा करने का एक प्रयास था। आप इतिहास उठाकर देख लीजिए, वर्ष 1757 में रॉबर्ट क्लाइव ने भारत के एक प्रांत बंगाल (आज की भाषा में राज्य) पर विजय प्राप्त करी थी। हालाँकि कूटनीतिक दृष्टि से बंगाल पर जीत प्राप्त करना बड़ी बात थी क्यूँकि बंगाल आर्थिक दृष्टि से हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण था। ज़्यादातर व्यापारिक गतिविधियाँ वहाँ से ही संचालित होती थी। लेकिन उसके बाद भी इसे ‘भारत जीत लेना’ कहना पूरी तरह ग़लत है।
इसके बाद 1799 में अंग्रेजों ने मैसूर, फिर 1818 में मराठों पर व 1849 सिख साम्राज्य पर जीत हासिल करी। अगर इस आधार पर देखा जाए तो अंग्रेजों को भारत के बड़े हिस्से पर जीत प्राप्त करने में लगभग 92 वर्ष लगे और उसके बाद वे लगभग 98 वर्षों तक हमारे देश के उस हिस्से पर राज कर सके।
1857 के विद्रोह को रोकने के बाद अंग्रेजों ने भारत को आधिकारिक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल किया। उसके पहले ईस्ट इंडिया कम्पनी भारतीय उप-महाद्वीप की महान शक्तियों में से एक थी, लेकिन निश्चित रूप से इनका शासन नहीं था। लेकिन फिर भी सिर्फ़ बंगाल के आधार पर कहा जाए तो भी ग़ुलामी 190 वर्षों की थी। अंग्रेज इसे 200 वर्षों की ग़ुलामी कहें तो समझ आता है क्यूँकि यह उनके लिए गर्व की बात थी, लेकिन हमारे लिए तो बिलकुल भी नहीं। इसीलिए मैंने बेनेडिक्ट एंडरसन के कथन, ‘शर्म राष्ट्रीयता का एक महत्वपूर्ण आधार है।’ के आधार पर पूर्व में कहा था कि अंग्रेजों के शासन को 200 वर्षों का बताना, शर्म आधारित राष्ट्रवाद खड़ा करने का एक प्रयास था।
लेकिन दोस्तों अब भारत युवा हो गया है, अगर हम इसे विकसित राष्ट्र बनाना चाहते है तो अब हमें शर्म नहीं, गर्व आधारित राष्ट्रवाद खड़ा करना होगा और यह सामान्य जीवन में एक-दूसरे पर आरोप लगाने की गंदी राजनीति से तो बिलकुल भी नहीं होगा। मेरी बात पर प्रतिक्रिया देने के पहले एक बार गम्भीरता से सोचकर देखिएगा। एक ओर जहाँ हम कम्प्यूटर, साइंस, टेक्नोलॉजी, अंतरिक्ष, कृषि, शिक्षा, साहित्य, खेल इत्यादि हर क्षेत्र में सफलता के नए झंडे गाड़ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर हमारा युवा अपनी शिक्षा, अपनी ज़िम्मेदारी छोड़कर स्वार्थ की राजनीति का शिकार होकर अपराध, भ्रष्टाचार, हिंसा, नक्सलवाद, आतंकवाद जैसे रास्तों पर भटक रहा है।
दोस्तों, जिस तरह पूरी दुनिया ने हमारे युवा होने की शक्ति को पहचानकर अपने उद्योग, अपने व्यापार को हमारे यहाँ फैलाने का प्रयास किया है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो हमारे बड़े क्षेत्रफल, हमारे प्राकृतिक संसाधन, हमारी जनसंख्या, हमारी बचत की आदत, हमारे युवाओं आदि सभी की शक्ति को पहचानकर, अपने बाज़ार और इकोनामी को बढाने के लिए हमारा उपयोग किया है। ठीक उसी तरह हमें अपनी उपरोक्त शक्तियों को पहचान कर, अपने व्यक्तिगत राजनैतिक लाभों को छोड़कर युवाओं को सही शिक्षा, सही प्राथमिकताओं को समझाना होगा जिससे वे सही दिशा में आगे बढ़ सकें और अपने सपनों को पूरा करने के साथ-साथ देश को और मज़बूत बनाने में अपना सकारात्मक योगदान दे सकें।
दोस्तों, अभी हमारा पूरा देश हर्षोल्लास के साथ अपनी पूरी ऊर्जा से ‘हर घर तिरंगा’ अभियान का हिस्सा बन ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है और अपने देश पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार खड़ा है। इस वक्त हमें सुनिश्चित करना होगा कि हर घर तिरंगा अभियान और आज़ादी का अमृत महोत्सव सिर्फ़ एक ऐक्टिविटी बनकर ना रह जाए। हमें इन अभियानों से उत्पन्न ऊर्जा और राष्ट्रवाद की भावना को आगे ले जाकर, शिक्षा और गौरवशाली इतिहास से इसे गर्व आधारित राष्ट्रवाद में बदलना होगा जिससे आम भारतीय के जीवन में सकारात्मक बदलाव आ सके। याद रखिएगा दोस्तों, जिस तरह स्वयं को खोजने के लिए इंसान को अपने अंदर झांकना होता है, ठीक उसी तरह राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए लोगों को शिक्षित कर राष्ट्र के गौरवशाली पलों में झांकना होता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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