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कथनी और करनी रखें एक…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Aug 14, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। गुरुकुल में शिक्षा के दौरान एक दिन गुरुजी ने अपने शिष्यों की परीक्षा लेने का निर्णय लिया और सभी शिष्यों को मैदान में इकट्ठा होने का आदेश दिया। जब सभी छात्र मैदान में इकट्ठे हो गए, तो गुरुजी सभी को नारियल देते हुए बोले, ‘जाओ इस नारियल को किसी ऐसी जगह तोड़ कर आओ जहाँ तुम्हें कोई भी देख ना रहा हो।’


गुरु का आदेश मिलते ही सभी छात्र अपनी-अपनी सोच के अनुसार अलग-अलग रास्तों पर चल पड़े और थोड़ी देर में ही अपने लक्ष्य को पूरा कर वापस आने लगे। असल में उन सभी के लिए यह बहुत ही सरल परीक्षा थी क्योंकि आश्रम के पास ही बहुत सारी गुफ़ाएँ, कन्दराएँ और घनी झाड़ियाँ थी। उन सभी बच्चों के लिए यह जगह एकदम एकांत समान थी जहाँ उन्हें कोई नहीं देख सकता था। इसलिए सभी बच्चों ने वहाँ नारियल फोड़ा और वापस लौट आए सिवाय राम के, जो देर शाम तक भी नहीं लौटा था और इसी वजह से अब गुरुजी को उसकी चिंता हो रही थी।


गुरुजी राम को खोजने के लिए कुछ लोगों को आश्रम के आस-पास भेजने की योजना ही बना रहे थे कि राम बड़े उदास मन से अपना साबुत नारियल लिए लौट आया और गुरुजी को प्रणाम करता हुआ बोला, ‘गुरुजी, मुझे माफ़ कर दीजियेगा मैं आपकी परीक्षा में सफल नहीं हो पाया।’ राम की बात सुनते ही गुरुजी बोले, ‘क्यों राम तुम्हें आश्रम के आस-पास मौजूद कोई गुफा, कोई कन्दरा, घनी झाड़ी या आश्रम को कोई ऐसा कोना नहीं मिला, जहाँ कोई तुम्हें देख ना रहा हो?’ ‘जी गुरुजी!’ राम बहुत धीमे स्वर में बोला।


उसकी बात सुनते ही अन्य सभी छात्र उसका मजाक उड़ाने लगे, जिन्हें देख गुरुजी ने सभी छात्रों को टोका और राम से इसकी वजह पूछी तो वह बोला, ‘गुरुजी मैं सभी कन्दराओं, सभी गुफाओं, सभी झाड़ियों के पीछे और आश्रम के कोनों में गया, पर हर जगह मैंने महसूस किया कि ईश्वर और मेरा अंतर्मन मुझे देख रहा है। इसलिए अंत में हार मान कर मैं लौट आया।’ राम की बात पूर्ण होते ही गुरुजी ने उसे गले लगा लिया और बोला, ‘राम इतने छात्रों में सिर्फ़ तुम्हें आत्म साक्षात्कार की अनुभूति हुई है। इसलिए आज की परीक्षा में तुम अकेले ही सफल हुए हो।’


दोस्तों उक्त कहानी मुझे आज उस वक़्त याद आई, जब मैं पिछले सोमवार अपने एक नेता मित्र के साथ कावड़ यात्रियों के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए गया। उक्त कार्यक्रम में नेताजी ने हमारे शहर इंदौर के विषय में बताते हुए बड़े जोर-शोर से कहा कि किस तरह सभी इंदौरी लोगों ने मिलकर इस शहर को स्वच्छता में ना सिर्फ़ नंबर वन बनाया, बल्कि उसे पिछले सात सालों से बरकरार भी रखा। इतना ही नहीं नेताजी ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए यह भी बताया कि किस तरह उन जैसे ‘नेताओं’ की राजनैतिक इच्छाशक्ति ने इसे एक मुहिम का रूप दिया।


यक़ीन मानियेगा, नेताजी का भाषण सुन तो मेरे जैसे ख़ालिस ‘उज्जैनी’ को भी अपने ‘इंदौरी’ होने पर गर्व होने लगा। कार्यक्रम ख़त्म होते ही मैंने अपने नेता मित्र को अच्छे संबोधन के लिए बधाई दी और उनके साथ कार में बैठ कर लौटने लगा। कुछ मिनिटों बाद नेताजी ने बिस्किट का एक पैकेट खोला और सबके साथ मिल बाँट कर खाने लगे और अंत में बिस्किट के रैपर को काँच खोलकर चलती गाड़ी से बाहर फेंक दिया। उन्हें ऐसा करते देख मैंने उन्हें उनके भाषण की याद दिलाई तो वे बोले, ‘भाई, यहाँ हमें कौन देख रहा है? वैसे भी अगर इस रैपर को अंदर छोड़ दिया, तो चूहे कमाल दिखा जाएँगे।’


दोस्तों, आगे की बात यहाँ कहना उचित नहीं है, इसलिए घटनाक्रम को मैं यहीं इस विचार के साथ रोकता हूँ कि क्या हम दूसरों के कंधों पर बोझ रखते हुए अच्छे समाज और विकसित राष्ट्र के सपने को पूरा कर पायेंगे? मेरे हिसाब से तो जब तक हमारी कथनी और करनी एक नहीं होगी, शायद तब तक तो नहीं। एक बार विचार कीजिएगा…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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