July 20, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, शारीरिक विकलांगता से ज़्यादा बुरी मानसिक विकलांगता होती है। मेरी बात पर कुछ भी प्रतिक्रिया देने से पहले ज़रा ऐसा कहने की वजह तो जान लीजिए। मेरा मानना है कि अगर आप मानसिक रूप से सशक्त याने सकारात्मक रहते हुए, कभी हार ना मानने वाला नज़रिया रखते हैं तो शारीरिक विकलांगता को आप दिव्यांगता में बदल सकते है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो मानसिक तौर पर विकलांग व्यक्ति सब कुछ होने के बाद भी जो थोड़ा बहुत नहीं मिलता है उसे याद कर परेशान होता है और मानसिक तौर पर सशक्त इंसान उसके पास जो होता है, उसको उच्चतम स्तर तक प्रयोग कर उन्हीं कार्यों में विशेषज्ञता हासिल कर खुद को सफल बनाता है। अपनी बात को मैं आपको पैरा तैराक सत्येंद्र सिंह लोहिया के जीवन से समझाने का प्रयास करता हूँ।
सत्येंद्र का जन्म मध्यप्रदेश के एक शहर भिंड के पास स्थित गाँव में हुआ था। एक माह की उम्र में दवाई की रिएक्शन के कारण उनके दोनों पैरों ने 70 प्रतिशत तक काम करना बंद कर दिया था। इस वजह से सत्येंद्र को कम उम्र से ही चलने में परेशानी होने लगी थी, जिसके कारण गाँव के अन्य बच्चे उन्हें नादानी के कारण कई बार चिढ़ाया करते थे और बड़े लोग उन्हें लाचारी की नज़रों से देखा करते थे, जो सत्येंद्र को बिलकुल भी पसंद नहीं था।
पारिवारिक माहौल और संस्कारों के कारण बचपन से ही सत्येंद्र ने समस्याओं के स्थान पर सम्भावनाओं पर ध्यान लगाना सीख लिया था। इसीलिए उन्होंने शारीरिक अक्षमता को कभी अपनी मानसिक अक्षमता बन, राह का रोड़ा नहीं बनने दिया और गाँव से अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण करी। 10 वर्ष की उम्र में उन्होंने गाँव की बैसली नदी में तैरना सीखा जो समय के साथ उनका पेशन बन गया।
वर्ष 2007 में डॉक्टर वी के डबास की प्रेरणा से सत्येंद्र ने पैरा तैराक बनने का निर्णय लिया। इस निर्णय ने उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। सत्येंद्र अब तक पैरा तैराकी में 4 अंतर्राष्ट्रीय और 28 राष्ट्रीय पदक जीत चुके हैं। इसके साथ ही उन्होंने वर्ष 2018 में इंग्लिश चैनल तैरकर पार कर अपना नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड में दर्ज करवाया। इसके बाद उन्होंने वर्ष 2019 में 45 किमी लम्बे कैटलीना चैनल को तैरकर पार किया। उपरोक्त उपलब्धियों के कारण वर्ष 2020 में सत्येंद्र को तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार से तत्कालीन राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद द्वारा सम्मानित किया गया । वे इस सम्मान को पाने वाले पहले दिव्यांग तैराक थे। इसके पश्चात उन्होंने वर्ष 2022 में 8 डिग्री तापमान वाले नार्दन आईलैंड के नार्थ चैनल को पार किया।
इतना ही नहीं साथियों सत्येंद्र ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक की 4320 किमी की यात्रा बाइक से पूरी करी और आज ही सत्येंद्र ने अपनी 6 लोगों की टीम के साथ इंग्लिश चैनल के 14 डिग्री के ठंडे पानी में लंदन से फ़्रान्स और फिर फ़्रान्स से लंदन तक की नार्थ चैनल की 72 किमी की दूरी को 31 घण्टे 29 मिनिट में पार किया है। सत्येंद्र और उनकी टीम ऐसा करने वाली एशिया की पहली टीम बन गई है। सत्येंद्र की इस टीम में उनके साथ मध्यप्रदेश के ही जयंत जयप्रकाश, नागपुर (महाराष्ट्र) के एल्विस, वेस्ट बंगाल के रिमो शाह, तेलंगाना के शिवकुमार और तमिलनाडु के स्नेहन हैं। दोस्तों, सत्येंद्र की असाधारण उपलब्धियाँ हमें यह सिखाती हैं कि बंदिशें और नाकामियाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ दिमाग में होती है। अगर हम भी उनके समान कमज़ोरियों को अपनी ताक़त बनाना सीख जाएँ, तो निश्चित तौर पर मानसिक विकलांगता से बच सकते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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