July 30, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, हम सब अपने बच्चों, परिवार के सदस्यों या ख़ुद को सफल देखना चाहते हैं और इसीलिये अपनी ओर से हर संभव प्रयास करते हैं। लेकिन कई बार आरामदायक परिस्थितियों में याने कम्फ़र्ट ज़ोन को ना छोड़ पाने के कारण लोगों का यह सपना, सपना ही रह जाता है। जी हाँ दोस्तों, जीवन में अगर वाक़ई कुछ बड़ा अचीव करना है तो आपको आरामदायक स्थितियों को छोड़ चुनौतियों को स्वीकारना होगा। हाँ, यह सही है कि चुनौतियाँ, आपको थोड़ा परेशान कर सकती है; आपके सुख-चैन को थोड़े दिनों के लिये चुरा सकती हैं। लेकिन यक़ीन मानियेगा एक बार आप इनसे आगे निकल गये तो फिर मज़ा ही मज़ा है। लेकिन अगर आप इन चुनौतियों से भी पार पाने का कोई आसान रास्ता खोज रहे हैं तो मेरा सुझाव है कि चींटी की सवारी छोड़, हाथी की पूँछ पर लटकना शुरू कर दीजिये।
चलिये, अपनी बात को मैं आपको थोड़ा विस्तार से समझाने का प्रयास करता हूँ। अक्सर हम सब लोग उस माहौल में रहना पसंद करते हैं जहाँ हमें सबसे बेहतर, सबसे ज्ञानी या कुशल माना जाये। ऐसे लोगों के बीच में रहना मेरी नज़र में ‘अंधों में काना राजा’ होने समान है। ऐसे माहौल में आपको कोई चुनौती नहीं देगा, यहाँ कोई आपके निर्णय पर सवाल नहीं उठायेगा, कोई किसी तरह का तर्क नहीं करेगा। लेकिन इन लोगों के बीच आपको कुछ नया सीखने को भी नहीं मिलेगा। इसलिये इस स्थिति की तुलना मैंने चींटी की सवारी करने से की थी। अर्थात् चींटी याने उन लोगों या ऐसे माहौल में रहना जहां सहजता के साथ रहा जा सके; काम किया जा सके; छोटी-मोटी उपलब्धियाँ ली जा सके।
लेकिन इसके विपरीत अगर आप अपने से बेहतर, ज्ञानी और गुणी लोगों के बीच में रहते हैं, तो वे आपको बार-बार असहज स्थिति में ले आते हैं। याने आप लगातार असुविधाजनक और चुनौतीपूर्ण स्थितियों के बीच रहते हैं। जो लगातार आपको कुछ नया सोचने, नया करने और नया सीखने के लिये मजबूर करता है; आपको बेहतर बनाता है। इसीलिये मैंने इस स्थिति की तुलना हाथी की पूँछ पर लटकने से की थी जो लगातार हिलती रहती है और उस पर लटकना कहीं से भी आसान नहीं होता है। लेकिन तमाम असुविधाओं के बाद भी आगे बढ़ने की आपकी गति चींटी के ऊपर बैठने से ज़्यादा होती है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो, ज्ञानी और बड़ा व्यक्ति आपको असहज और परेशानी भरे माहौल में रखता है, लेकिन यह स्थिति आपको सफल होने के लिये आवश्यक हर कार्य और कौशल सीखने में मदद करती है।
उपरोक्त सूत्र ने दोस्तों मुझे, आज मैं जहां हूँ, वहाँ तक पहुँचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वर्ष २००७ में व्यवसाय परिवर्तन के दौरान हुए बड़े नुक़सान के दौरान मैंने अपना ज़्यादातर समय अपने गुरू श्री राजेश अग्रवाल सर के साथ बिताया। इसका सीधा-सीधा फ़ायदा मुझे मोटिवेशनल स्पीकर बनने के अपने लक्ष्य को कम समय में पाने में मिला। मोटिवेशनल स्पीकर और ट्रेनर बनने के बाद मेरा लक्ष्य स्वयम् को बाज़ार में स्थापित करना था, जिसके लिये मुझे एक ऐसे गुरू या साथ की आवश्यकता थी जो इस क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ हो। इस समय मैंने श्री एन रघुरामन सर का साथ चुना, जिसका नतीजा आज आपके सामने है।
यक़ीन मानियेगा दोस्तों, श्री राजेश अग्रवाल और श्री एन रघुरामन जैसे विशेषज्ञों के साथ रहना आसान नहीं था। वे हर छोटे से छोटा काम बड़े व्यवस्थित और योजनाबद्ध तरीक़े से करते थे, जो मेरी आदतों के उलट याने विपरीत था। लेकिन असहज स्थितियों में उनके साथ बने रहने के कारण मैं अपनी कमज़ोरियों को ना सिर्फ़ पहचान पाया बल्कि उनसे पार भी पाया। आज भी इन दोनों गुरुओं का साथ मुझे रोज़ बेहतर बनने का मौक़ा देता है। इसीलिये दोस्तों, मैंने पूर्व में कहा था, ‘अपनों से बेहतर लोगों के साथ असहज स्थितियों में बने रहना आपको भी बेहतर बनाता है।’ एक बार विचार कर देखियेगा…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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