Jan 20, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। एक वृद्धा, जिसने अपना पूरा जीवन ईश्वर की सेवा में समर्पित कर दिया था, की मृत्यु हो गई। मृत्यु पश्चात जब भगवान चित्रगुप्त ने उसे कर्मों के आधार पर मोक्ष प्रदान करते हुए, देवदूतों को प्रभु के धाम ले जाने के लिए कहा तो वह औरत खुश होते हुए बोली, ‘धन्यवाद प्रभु, बस आपसे एक विनती है, मैंने धरती पर स्वर्ग और नर्क के विषय में बहुत सुना है। मैं प्रभु के धाम जाने से पहले दोनों को एक बार देखना चाहती हूँ।’ भगवान चित्रगुप्त ने देवदूतों को उसकी इच्छा पूर्ण करने के लिए कहा। देवदूत उसे पहले नर्क लेकर गये। वहाँ बुजुर्ग औरत ने सभी लोगों को रोते-बिलखते, बड़ी कमजोर हालत में पाया। ऐसा लग रहा था मानो वे बीमार हैं। बुजुर्ग महिला ने एक आदमी से जब इस विषय में पूछा तो वो चिढ़ते हुए बोला, ‘जब से यहाँ आया हूँ एक दिन भी कुछ खाने को नहीं मिला है। भूख से मेरी आत्मा तड़प रही है।’
उस व्यक्ति का जवाब सुन बुजुर्ग औरत चौंक गई क्योंकि उसे वहाँ स्वादिष्ट खीर की ख़ुशबू आ रही थी। उसने आसपास नज़र दौड़ाई तो उसे एक बहुत ही बड़ा पतीला नज़र आया जिसमें धुआँ उठ रहा था। वहाँ मौजूद एक व्यक्ति से पूछने पर उसे पता चला कि यह खीर का ही पतीला है। वह आश्चर्य मिश्रित स्वर में बोली तो फिर आप लोग इसे खाकर अपनी भूख क्यों नहीं मिटाते हैं? आप सभी भूख से तड़पते हुए ऐसे मारे-मारे क्यूँ फिर रहे हैं?’ वह आदमी फिर से चिढ़ते हुए बोला, ‘दिखता नहीं है क्या यह पतीला ३०० फीट ऊँचा है। हम में से कोई भी उस ऊँचाई तक पहुँच ही नहीं पाता है।’
बुजुर्ग औरत को उन पर तरस तो आ रहा था पर वो कर कुछ नहीं सकती थी। वह देवदूतों के साथ आगे बढ़ गई और जल्द ही स्वर्ग पहुँच गई। वहाँ सभी लोग उसे एकदम स्वस्थ, मस्त और हंसते-खिलखिलाते दिखाई दिए। सभी लोगों को खुश देख बुजुर्ग औरत को बहुत अच्छा लगा। आस-पास देखने पर बुजुर्ग औरत को स्वर्ग में भी नर्क समान ३०० फीट ऊँचा पतीला नज़र आया। उसे देखते ही वह वहाँ मौजूद लोगों से बोली, ‘क्या यह खीर का पतीला है?’ सभी लोगों के ‘हाँ’ में मुँह हिलाते ही वह बोली, ‘फिर तो मुझे लगता है कि आप सब लोग भी भूख से बेहाल होंगे क्योंकि उस ऊँचाई तक पहुँचाना और खीर लेकर खाना संभव नहीं है। पर मैं यह समझ नहीं पा रही हूँ कि आप लोग फिर इतने खुश और मस्त कैसे हैं?’
बुजुर्ग महिला की बात सुनते ही वहाँ मौजूद लोग मुस्कुराए बोले, ‘जी नहीं, हमें जब भी भूख लगती है हम इस पतीले में से खीर लेकर खा लेते हैं।’ बुजुर्ग महिला आश्चर्य के साथ बोली, ‘ऐसा कैसे संभव हो सकता है? पतीला तो बहुत ऊँचा है?’ वही लोग मुस्कुराते हुए बोले, ‘ऊँचा है तो क्या हुआ, ईश्वर ने हमें ढेर सारी क्षमता और इतने सारे प्राकृतिक संसाधन दिए हुए तो हैं। हमने पेड़ों की लकड़ियों के टुकड़ों को जोड़ कर एक विशाल सीढ़ी बनाई है। जिसकी सहायता से हम पतीले की ऊँचाई तक आराम से पहुँच जाते हैं और सब मिलकर खीर लेकर खा लेते हैं।’ बुजुर्ग औरत हैरानी से देवदूतों की तरफ़ देखने लगी। चूँकि देवदूत उसकी जिज्ञासा समझ चुके थे इसलिए मुस्कुराते हुए बोले, ‘ईश्वर किसी से भेदभाव नहीं करते। उन्होंने तो दोनों को समान स्थितियों में रखा है।’
बात तो दोस्तों, देवदूतों को सौ प्रतिशत सही है। इसीलिए तो शायद ईश्वर प्रत्येक मनुष्य को समान क्षमताओं और हालातों में इस दुनिया में शायद यह कहकर भेजता है कि ‘जी लो अपनी ज़िंदगी’ अब यह हमारे ऊपर रहता है कि हम अपने जीवन को स्वर्ग बना कर उसे जीते हैं या फिर नर्क बनाकर। जी हाँ दोस्तों, मेरा तो मानना यही है कि ईश्वर के यहाँ भेदभाव नहीं है। उसके लिए तो हम सब उसके बच्चे ही हैं। लेकिन अक्सर मनुष्य किंतु, परंतु, लेकिन, ऐसा क्यों-वैसा क्यों, परिस्थितियों, आलस्य आदि के चक्कर में पड़ जाता है और फिर दोष देते हुए जीवन जीता है, जैसा नर्क में मौजूद लोग कर रहे थे। याद रखियेगा दोस्तों, ईश्वर की बनाई इस दुनिया का एक ही नियम है, ‘जो कर्म करेगा, मेहनत करेगा, उसी को मीठा फल खाने को मिलेगा।’ अब यह आपके हाथ में है कि आप इस नियम को अपनाकर अपना जीवन स्वर्ग बनाते हैं या नियमों को बिना अपनाये नर्क।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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