Sep 11, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

चलिए दोस्तो, आज के शो की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। मोहल्ले के सक्षम परिवारों में काम करने वाली नंदा आज बहुत ख़ुश थी क्योंकि आज उसे एक परिवार ने अतिरिक्त काम करने के लिए बुलाया था और इस अतिरिक्त काम के बदले मिलने वाले पैसे से वह अपने बच्चे के लिए खिलौना लाने का अपना सपना पूरा करने वाली थी। इसीलिए उसने घर से निकलने के पहले अपने बच्चे से पूछा था, ‘बेटा मैं आज हाट से तुम्हारे लिए क्या लेकर आऊँ?’ इस पर बेटे ने झट से जवाब दिया था, ‘ढोल…’ लेकिन उस दिन नंदा के लिए ईश्वर ने कुछ और योजना बनाई थी।
शाम को अतिरिक्त काम कर नंदा को जो भी पैसे मिले उससे वह सिर्फ़ घर की ज़रूरत का ही सामान ख़रीद पाई और उसके पास बच्चे के लिए ढोल ख़रीदने के पैसे ही नहीं बचे। किराना लिए, बुझे मन से नंदा घर की ओर यह सोचते हुए चली कि ‘आज घर पहुँचने पर बच्चा जब उसका ढोल या कोई खिलौना माँगेगा तो वह उसे क्या देगी?’ तभी अचानक नंदा की नज़र सड़क किनारे पड़े गोल से लकड़ी के टुकड़े पर पड़ी। उसने उसे तुरंत उठा लिया और घर पहुँचकर इसे बच्चे को खेलने के लिये दे दिया।
वह छोटा सा बच्चा शायद माँ की स्थिति से वाक़िफ़ था इसलिए वह बिना कुछ कहे ही बाहर जाकर उस लकड़ी के गोल टुकड़े से खेलने लगा। खेलते-खेलते वह बच्चा घर से थोड़ी दूर पहुँच गया, जहाँ एक बूढ़ी अम्मा खाना बनाने के लिए गीले कंडों को जलाने का प्रयास कर रही थी। बुद्धि अम्मा को यूँ परेशान होता देख उस बच्चे ने माँ द्वारा खेलने को दिया हुआ गोल लकड़ी का टुकड़ा उठाया और उस अम्मा को दे दिया। लकड़ी पा अम्मा खुश हो गई और उन्होंने लकड़ी के उस टुकड़े को जलाकर अपने लिए रोटियाँ बनाई और उसमें से एक रोटी इस बच्चे को दे दी।
बूढ़ी अम्मा से रोटी लेकर वह लड़का अपने घर की ओर चला ही था कि उसे रास्ते में कुम्हारिन नज़र आई जिसका बच्चा मिट्टी में लोट लगाकर ज़ोर से रो रहा था।इस बच्चे ने जब कुम्हारिन से इस विषय में पूछा तो उसने बताया कि बच्चा भूख से बेहाल है और आज घर पर भी खाने के लिए कुछ नहीं है। इतना सुनते ही उस बच्चे ने बूढ़ी अम्मा से मिली रोटी कुम्हारिन को दे दी, जिसके एवज़ में उसने बच्चे का आभार मानते हुए उसे एक मिट्टी का एक बड़ा घड़ा दे दिया। घड़ा लेकर वह अभी थोड़ा आगे ही चला था कि उसे सड़क पर झगड़ते हुए धोबी-धोबिन मिले। उसने रुककर जब इसका कारण पूछा तो उसे पता चला कि धोबिन से धोबी का कपड़े धोने वाला घड़ा फुट गया है इसलिए धोबी उससे लड़ रहा है। बच्चे ने तुरंत अपना मिट्टी का घड़ा उन्हें देकर उनका झगड़ा रुकवा दिया। इसके एवज़ में उस धोबिन ने इस लड़के को ठंड से बचने के लिए एक कोट दे दिया, जिसे इस लड़के ने रास्ते में ठंड से ठिठुरते हुए मिले एक व्यक्ति को दे दिया।
इस पूरी घटना को वहाँ खड़े एक सज्जन देख रहे थे। वे हैरान थे कि इस बच्चे को जो भी मिल रहा है, वह उसे किसी ना किसी को देकर उसकी परेशानी दूर कर रहा है। उन सज्जन ने इस बच्चे को अपने पास बुलाया और उससे पूछा, ‘बेटा, मैं तुम्हें कुछ इनाम देना चाहता हूँ। बताओ तुम्हें क्या चाहिये? इस पर वह बच्चा बोला, ‘ढोल!’ उन सज्जन ने तत्काल इस बच्चे को एक ढोल दिला दिया। ढोल लेकर लड़का भागा-भागा घर पहुंचा और ढोल बजाते हुए मां को पूरी कहानी सुनाने लगा कि उसकी दी हुईं लकड़ी से उसने ढोल कैसे प्राप्त किया। अब एक ओर जहां लड़का ढोल को पाकर बहुत खुश था, वहीं माँ भगवान को धन्यवाद कह रही थी।
दोस्तों, साधारण सी लगने वाली इस कहानी में हमारे लिये एक बहुत ही महत्वपूर्ण संदेश छिपा हुआ है कि निःस्वार्थ भाव से किया गया सत्कर्म घूम फिर कर कर्म करने वाले के पास ही लौट कर वापस आता है। अर्थात् हमारे द्वारा दूसरों की भलाई के लिए किए गए अच्छे कर्म का फल घूम फिर कर हमें ही मिलता है। इसलिए दोस्तों, प्रतिदिन किसी ना किसी की किसी ना किसी बहाने से किसी ना किसी रूप में मदद करते रहिए, फिर देखियेगा भगवान किस तरह आपके जीवन को देखते ही देखते बेहतर बनाते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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