Apr 9, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, आज की इस भौतिकवादी दुनिया में इंसान स्वयं इतना उलझ चुका है कि कई बार वह सीधी और सच्ची बातों को भी आसानी से समझ नहीं पाता है। जैसे अपने अमूल्य शरीर का मूल्य वह नगण्य मान, पहले उसे बर्बाद कर पैसा कमाता है और फिर उसी पैसे से शरीर को ठीक रखने या करने का प्रयास करता है। याने दोस्तों, इंसान अपनी उलझी हुई प्राथमिकताओं या जीवनशैली की वजह से सीधी-साधारण सी बातों को भी उलझा-उलझाकर, समझने का प्रयास करता है।
ऐसी विचित्र स्थिति में दोस्तों कई बार हमें सीधी बातों को भी घुमा कर समझाना पड़ता है। ऐसा ही एक क़िस्सा आज से कुछ साल पहले ब्राज़ील में घटा। ब्राज़ील के सबसे शक्तिशाली और अमीर लोगों में एक नाम चिकिन्हो स्कार्पा नामक व्यक्ति का भी आता है। एक दिन इन सज्जन ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि वे अपनी बेंटले कार जिसकी क़ीमत दस लाख डॉलर याने भारतीय मूल्य में सात करोड़ रुपए है को ज़मीन में दफ़नाने जा रहे हैं। दफ़नाने की वजह बताते हुए चिकिन्हो स्कार्पा ने कहा कि, ‘मैं ऐसा इसलिए कर रहा हूँ ताकि मरने के बाद स्वर्ग जाने के बाद भी मैं इसमें घूम सकूँ।’
चिकिन्हो स्कार्पा की घोषणा सुन मीडिया से लेकर हर किसी ने आलोचना करना शुरू कर दी और इसका बहुत ही नकारात्मक तरीके से प्रचार करना शुरू कर दिया। जिसके कारण लोग चिकिन्हो स्कार्पा को पागल, बिगड़ैल और सनकी मिज़ाज तक का कह रहे थे। उनका मानना था कि इतनी महँगी कार को दफ़नाना पैसे की बर्बादी से अधिक कुछ नहीं है। मीडिया और लोग चिकिन्हो स्कार्पा को तरह-तरह की सलाह दे रहे थे। जैसे, इसे दफ़नाने की जगह दान क्यों नहीं कर देते आदि।
लोगों की सलाह, उनके नज़रिए या उनकी सोच से दूर चिकिन्हो स्कार्पा अपनी बेंटले कार को दफ़नाने की तैयारियों में व्यस्त था। जैसे शहर के बीच, पूर्व से चयनित एक मैदान पर कार को दफ़नाने के उद्देश्य से गड्डा खुदवाना, लोग इस नज़ारे को देख पाएँ उसकी व्यवस्था करना आदि।
ख़ैर जल्द ही वह दिन आ गया जिस दिन कार को दफ़नाया जाना था। लोग भी उस मैदान पर जमा होना शुरू हो गए। काफ़ी भीड़ इकट्ठा होने के बाद तय समय पर चिकिन्हो स्कार्पा अपनी बेंटले कार से मैदान में पहुँचा और कार दफ़नाने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले माइक लेकर भीड़ को सम्बोधित करते हुए बोला, ‘दोस्तों, आज मैं अपनी बेशक़ीमती कार बेंटले को दफ़नाने नहीं जा रहा हूँ। मैंने तो यह ड्रामा सिर्फ़ और सिर्फ़ आप सभी का ध्यान अंगदान जैसे महत्वपूर्ण विषय पर आकर्षित करने के लिए करा था। मेरी इस बहुमूल्य 7 करोड़ की बेंटले कार की तुलना आप अपने अमूल्य अंगों, जैसे हार्ट, लंग्स, लिवर, किडनी और आँखों से कर सकते है। जिसे हम अच्छा, दान देने योग्य होने के बाद भी रोज़ दफ़नाते या जलाते हैं। शायद आपको पता नहीं है कि इस दुनिया में बहुत सारे लोग अंगों के प्रत्यारोपण के लिए इंतज़ार कर रहे हैं, जिससे वे अपनी या अपनों की ज़िंदगी बचा सकें। मैंने तो यह प्रण लिया है कि मैं अपने सभी अंगों का दान करूँगा। यही प्रण आप सभी लोग भी लें ताकि हमारे अंग हमारे इस दुनिया से जाने के बाद दूसरों के जीवन को बेहतर बना सकेंगे, उनको एक नया जीवन दे सकेंगे।’
दोस्तों, चिकिन्हो स्कार्पा द्वारा अजीब तरीक़े से समझाई गई इस बात ने वहाँ मौजूद कई लोगों को अंगदान की महत्ता को समझने का मौक़ा दिया और उसके लिए प्रेरित किया। चिकिन्हो स्कार्पा जी को इस नेक काम की शुरुआत के लिए मैं साधुवाद देते हुए सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा कि उलझन भरी इस दुनिया में कई बार सीधी बात को भी टेढ़े तरीके से समझाना पड़ता है। जिससे लोगों तक सही प्रेरणा पहुँच सके।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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