Nov 7, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, अगर आप समाज में अपने आस-पास नजर घुमायेंगे तो पायेंगे कि जीवन मूल्य, मानवता और इंसानियत से ज़्यादा महत्वपूर्ण ‘अपना फ़ायदा’ हो गया है। अर्थात् समाज में आजकल ज्यादातर लोग आपको ‘सही’ के स्थान पर ‘अपना फायदा’ देखते नजर आयेंगे। मेरी नजर में इसकी मुख्य वजह ‘किसी भी मूल्य पर सफलता’ चाहने वाले लोगों का सच्चाई के साथ जीवन जीने वाले लोगों के मुक़ाबले तेज़ी से जीवन में आगे बढ़ना है। अगर मेरी बात से सहमत ना हों तो कैरियर बनाने की दहलीज पर खड़े बच्चों से बात करके देख लीजियेगा। आज वे सभी बिना मेहनत करे सब कुछ पाना चाहते हैं और इसके लिए वे कोई सा भी रास्ता चुनने के लिए तैयार हैं।
दोस्तों मैं इस स्थिति को समाज के स्तर पर बच्चों के पालन-पोषण में हुई गंभीर चूक मानता हूँ। आज कहीं ना कहीं हम नई पीढ़ी को यह बताना या समझाना भूल गए हैं कि मूल्य आधारित जीवन किस तरह गुज़रते वक़्त के साथ उनके जीवन को आसान बनाता है। मेरा तो आज भी यह दृढ़ विश्वास है कि अगर बचपन में ही बच्चों को पूर्व की तरह जीवन मूल्य आधारित कहानियों से शिक्षित किया जाये तो उनकी मान्यताओं को निश्चित तौर पर सही दिशा दी जा सकती है। उदाहरण के लिए अगर आप उन्हें मूल्य आधारित सफलता और अच्छे कर्मों के विषय में सिखाना चाहते हैं तो आप उन्हें निम्न कहानी सुना सकते हैं-
एक बार सारी बुरी आत्माएँ इकट्ठा होकर भगवान के पास पहुँची और शिकायत करते हुए बोली, ‘प्रभु, आपने अच्छी आत्माओं को रहने के लिए शानदार महल दे रखे हैं और हमें खंडहर। आख़िर हमारे साथ यह भेदभाव और सौतेला व्यवहार क्यों किया जाता है? हम भी तो आप ही की संतान है।’ शिकायत सुन पहले तो भगवान ने उन्हें समझाने का प्रयास करते हुए कहा, ‘मैंने तो तुम सभी को एक जैसा बनाया था पर तुम अपने कर्मों की वजह से बुरी बन गई हो और वैसा ही तुम्हारा घर भी हो गया है।’ लेकिन जब वे उनके तर्कों से संतुष्ट नहीं हुई और उदास होकर बैठ गई तो भगवान ने अच्छी और बुरी दोनों आत्माओं को बुलाया और कहा, ‘बुरी आत्माओं के अनुरोध पर मैंने एक निर्णय लिया है, आज से तुम जिन घरों में रह रहे थे, वे सब नष्ट हो जाएँगे और अब अच्छी और बुरी आत्माएँ अपने लिए अलग-अलग शहरों का निर्माण करेंगी। इस निर्माण के लिए लगने वाली ईंटें पृथ्वी पर इंसानों द्वारा किए गए अच्छे और बुरे कर्म करने से तैयार होंगी। अब तुम्हारी इच्छा है कि तुम किन ईंटों से अपने घर का निर्माण करना चाहते हो।’
बुरी आत्माओं ने सोचा पृथ्वी पर बुरे कर्म करने वाले अधिक लोग हैं, इसलिए अगर उन्होंने बुरे कर्मों से बनने वाली ईंटें ले ली तो वे एक विशाल, सुंदर और अद्भुत शहर का निर्माण कर सकते हैं। विचार आते ही उन्होंने भगवान से बुरे कर्मों से बनने वाली ईंटें माँग ली। इसके ठीक विपरीत दिव्यात्माओं ने अच्छे कर्मों से बनने वाली ईंटों को चुन लिया। जल्द ही दोनों शहरों का निर्माण एक साथ शुरू हुआ और कुछ ही दिनों में बुरी आत्माओं के शहर ने एक बड़ा रूप लेना शुरू कर दिया क्योंकि उन्हें लगातार ईंटों के ढेर मिलते जा रहे थे। इसके ठीक विपरीत अच्छी आत्माओं के शहर का निर्माण बड़ी धीमी गति से चल रहा था। काफ़ी दिन बीत जाने के बाद भी उनके शहर का एक ही हिस्सा बन पाया था।
अगले कुछ दिन ऐसे ही काम चलता रहा, फिर अचानक से एक दिन बड़ी अजीब सी घटना घटी और बुरी आत्माओं के शहर से ईंटें ग़ायब होने लगी। कभी दीवारों से, तो कभी छत से, तो कभी नींव से। इस घटना से उनका नवनिर्मित शहर एक बार फिर खंडहर जैसा हो गया। बुरी आत्माएँ परेशान होकर एक बार फिर भगवान के पास पहुंची और शिकायती लहजे में प्रश्न पूछते हुए बोली, ‘हे प्रभु! हमारे महल से अचानक ये ईंटें क्यों गायब होने लगी? इतनी मेहनत से बनाया हमारा महल और शहर तो फिर से खंडहर बन गया?’ प्रश्न सुन भगवान मुस्कुराए और बड़े शांत भाव से बोले, ‘ईंट ग़ायब होने लगी! इसका अर्थ हुआ जिन लोगों ने बुरे कर्म किए थे उन्हें उनके कर्मों का परिणाम मिलने लगा है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो बुरे कर्मों का फल भुगत लेने के कारण उनके बुरे कर्म और उनसे उपजी बुराइयाँ नष्ट होने लगी है। इसलिए उनसे बनी ईंटे भी नष्ट हो रही है। आखिर को जो आज बना है वह कल नष्ट भी होगा ही। अब किसकी आयु कितनी होगी, ये अलग बात है।’ भगवान का न्याय सुन बुरी आत्माएँ अपना सिर झुका कर वहाँ से चली गई।
उपरोक्त कहानी से दोस्तों हमारे बच्चों को निम्न बातें सिखाई जा सकती है। बुराई या अनैतिक तरीक़े से मुनाफ़ा तो जल्दी कमाया जा सकता है, परंतु वह नष्ट भी उतनी जल्दी ही होता है। वहीं दूसरी ओर सच्चाई और नैतिकता के रास्ते पर चलने वाला जीवन में धीमी गति से आगे बढ़ता प्रतीत होता है परंतु उसकी ग्रोथ, उसकी सफलता स्थायी होती है। अतः हमें हमेशा सच्चाई की बुनियाद पर अपनी सफलता की इमारत खड़ी करनी चाहिए, झूठ और बुराई की बुनियाद पर तो बस खंडहर ही बनाये जा सकते हैं।
हो सकता है दोस्तों, आप में से कुछ लोग अभी भी मेरी बात से सहमत ना हों कि कहानियों से बच्चों को जीवन मूल्य सिखाये जा सकते हैं। तो मैं आपसे सिर्फ़ इतना कहूँगा कि एक माह तक इस सूत्र को प्रतिदिन काम में लेकर देखिए, अगर फ़ायदा मिले तो इसे दोहराइयेगा अन्यथा छोड़ दीजिएगा। बस एक बार प्रयास करके ज़रूर देखियेगा…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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