Apr 11, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, हाल ही में एक कक्षा नवीं के छात्र की काउन्सलिंग करने का मौक़ा मिला। बातचीत के दौरान मुझे एहसास हुआ कि पिता और बच्चे के बीच रिश्ता सामान्य नहीं है। जब मैंने बच्चे से इस विषय में बात करी तो वह बोला, ‘सर, हम दोनों की सोच बिल्कुल अलग है। मैं पूर्व हूँ तो वे पश्चिम हैं। किसी भी विषय में हमारी सोच मिलती नहीं है।’ जब मैंने उस बच्चे से किसी घटना या उदाहरण के माध्यम से समझाने का कहा तो वह बोला, ‘सर, वे मुझे आज भी बच्चा मानते हैं और उन्हें लगता है कि मैं ख़ुद का ध्यान रखने में सक्षम नहीं हूँ। इसीलिए वे मेरी पसंद-नापसंद, दोस्तों आदि सभी पर उँगली उठाते रहते हैं।’
बच्चे का मत जानने के बाद जब मैंने उसके पिता से इस विषय में बात करी तो उन्होंने बोला, ‘सर, मैच्युरिटी ना होने के कारण बच्चा किसी परेशानी में ना पड़ जाए इसलिए मैं उसे टोकता हूँ। जैसे आजकल यह ग़लत संगत में पड़ गया है, इसलिए मुझे उसे दोस्तों के लिये टोकना पड़ रहा है।’ पिता की बात सुनते ही मुझे सारा माजरा समझ आ गया। उनका याने पिता का उद्देश्य नहीं, बल्कि बच्चे को समझाने का तरीक़ा ग़लत था। मैंने तुरंत पिता को कहा, ‘सर, मेरा मानना है कि बच्चे इंस्ट्रक्शन से नहीं एक्साम्पल से सीखते हैं। आप उसे आदेश देते हुए याने इंस्ट्रक्शन से सिखाने का प्रयास कर रहे हैं। इसीलिए सारी परेशानी आ रही है। अगर आप उसे वाक़ई सिखाना चाहते हैं तो आप उसे अपने जीवन की कोई घटना, कोई कहानी सुना सकते हैं, किसी सफल व्यक्ति की जीवनी या किताब के माध्यम से उसे सही रोल मॉडल चुनने में मदद कर सकते हैं। जैसे मान लीजिए बच्चे को अच्छी संगत के विषय में बताना हो तो आप उसे निम्न कहानी सुना सकते हैं।
कई साल पूर्व एक हकीम लुकमान हुए थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन ज़रूरतमंदों की सहायता करने के लिए समर्पित कर दिया था। जब उनका अंतिम समय नज़दीक आया तो उन्होंने अपने बेटे को पास बुलाया और कहा, ‘बेटा जैसा कि तुम जानते हो मैंने अपना पूरा जीवन लोगों को शिक्षा देने में गुज़ारा है। अब मेरा अंतिम समय आ गया है इसलिए मैं तुम्हें जीवन का एक महत्वपूर्ण सूत्र सिखाना चाहता हूँ। लेकिन उससे पहले तुम मेरा एक छोटा सा काम कर दो, मेरे लिये थोड़ा सा कोयला और थोड़ा सा चंदन लेकर आ जाओ।’
बेटे को पिता का बताया काम थोड़ा अटपटा सा लगा पर उसने सोचा कि पिता का हुक्म है तो इसे पूरा तो करना पड़ेगा। विचार आते ही वह कोयला और चंदन की लकड़ी लेने चला गया। सबसे पहले वह घर के चौके याने किचन में गया वहाँ से थोड़ा सा कोयला उठाया और फिर उसके बाद घर में रखा चंदन का टुकड़ा लेकर अपने पिता याने हकीम लुकमान के पास पहुँच गया। उसे देख हकीम लुकमान बोले, ‘बेटा, अब इस चंदन की लकड़ी और कोयले को नीचे फेंक दो।’ बेटे ने ऐसा ही किया और अपने हाथ गंदे देखकर उसे धोने के लिए बाहर जाने लगा। तभी हकीम लुकमान बोले, ‘रुको बेटा, हाथ धोने जाने से पहले अपने उस हाथ को सूंघ कर देखो जिससे तुमने चंदन की लकड़ी को पकड़ा था।’ लड़के ने तुरंत वैसा ही किया। हकीम लुकमान ने अगला प्रश्न करते हुए कहा, ‘अब जरा मुझे बताओ तुम्हारे हाथ में कैसी ख़ुशबू आ रही थी?’ बच्चा बोला, ‘पिताजी, मेरे हाथ में चंदन की ख़ुशबू आ रही थी।’
हकीम लुकमान मुस्कुराए और बोले, ‘चलो, अब मुझे वह हाथ दिखाओ जिससे तुमने कोयले को पकड़ा था।’ बेटे ने वैसा ही किया। उसके हाथ को देखते हुए हकीम लुकमान बोले, ‘देखो बेटा कोयला पकड़ते ही तुम्हारा हाथ काला हो गया और यह कालिख कोयला फेंकने के बाद भी तुम्हारे हाथ में लगी रह गई।’ इसके बाद वे एक पल के लिये चुप हुए फिर बोले, ‘संगति का प्रभाव हमारे जीवन पर ऐसे ही पड़ता है। ग़लत संगति कोयले समान है। अर्थात् अगर तुम ग़लत लोगों के साथ रहोगे तो परेशान और दुखी रहोगे। इतना ही नहीं उनसे दूर होने के बाद भी, पूर्व में साथ रहने के कारण जीवन भर के लिए तुम्हारे नाम के साथ बदनामी जुड़ जाएगी। दूसरी ओर सज्जनों का साथ चंदन की लकड़ी के समान है। जो साथ रहते हैं तो ज्ञान देकर, अच्छी बातें सिखाकर हमारे जीवन को महकाते हैं और साथ छूटने पर उनसे सीखी गई बातें हमारे जीवन को बेहतर बनाती है।’
कहानी पूरी होते ही मैंने उस बच्चे के पिता की ओर देखते हुए कहा, ‘सर, कहानी या उदाहरण के माध्यम से बच्चों के अंदर अच्छे विचारों के बीज बोना हर हाल में उसके जीवन मूल्यों को बेहतर बनाता है। जो अंततः उसकी निर्णय लेने की क्षमता को सुधारकर उसके जीवन को बेहतर बनाता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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