Sep 17, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, हाल ही में मुझे व्यवसायिक कार्य से अपने एक क्लाइंट के घर जाना पड़ा। शुरुआती औपचारिक बातचीत के बाद हमारी चर्चा समसामयिक परिस्थितियों पर चली गई। वे सज्जन भागमभाग ज़िंदगी, आज की चुनौतियों, भौतिकतावादी सोच पर टिप्पणी करते हुए बोले, ‘सर हमारा समय बहुत अच्छा था। ना किसी चीज की कमी थी, ना ही किसी चीज की दरकार। घर-परिवार के साथ रहने के लिए समय भी था, तो दूसरी ओर रिश्तों और लोगों के बीच आपसी प्यार। मुझे तो लगता है हमारी आज की पीढ़ी इन सब चीजों से वंचित ही रह जाएगी। शायद इसीलिए वे आज संस्कार, संस्कृति, समाज आदि सब से कटकर रह रहे हैं।’
हालाँकि मैं इस पर टिप्पणी तो देना चाहता था, लेकिन उनके परिवार की स्थिति देख कर चुप रह गया। असल में हमारी बातचीत के दौरान उनके ७-८ साल के बच्चे ने कम से कम ३-४ बार अपने पिता से प्रश्न पूछने का प्रयास करा, लेकिन हर बार उसे ‘अभी हम व्यस्त हैं, थोड़ी देर बाद आना’, कहकर टाल दिया गया। इसी तरह जब उसने अपनी दुविधा माँ से साझा करना चाही तो माँ ने उसे होमवर्क की याद दिलाते हुए पहले पढ़ाई करने का कहा और साथ ही अपनी परेशानी का हल टेबलेट पर गूगल की सहायता से खोजने का सुझाव भी दे दिया। कुल मिलाकर कहूँ तो घर में हर कोई अपने-अपने कार्यों में व्यस्त था। किसी के पास भी उस बच्चे की दुविधा का समाधान नहीं था या यूँ कहूँ उसके लिए समय नहीं था।
आप स्वयं सोच कर देखिए साथियों, अगर हमारे पास बच्चों के लिए समय नहीं होगा तो वे संस्कृति, संस्कार और समाज से जुड़ेंगे कैसे? याद रखियेगा समय के स्थान पर दिये गये संसाधन आपकी पूर्ति नहीं कर सकते हैं। बल्कि उनमें नशे समान उनकी लत पैदा ज़रूर कर सकते हैं। ख़ैर, बात आगे बढ़ाते हैं। इस बातचीत के कुछ देर बाद वे सज्जन अचानक से ही मेरे रेडियो शो और कॉलम के विषय में बात छेड़ते हुए बोले, ‘सर, आप अपने कॉलम या रेडियो शो के लिए रोज़ नया विचार कहाँ से ले आते हैं।’
उनका यह प्रश्न मेरे लिये सुनहरे मौक़े समान था क्योंकि इससे मैं अपने प्रश्न का जवाब देते हुए उन्हें पैरेंटिंग के महत्वपूर्ण टिप्स दे सकता था। मैंने तुरंत उसे भुनाते हुए कहा, ‘सर, जहाँ तक मैं सोच पाता हूँ इसके पीछे की सबसे प्रमुख वजह बचपन में जीवन मूल्यों को बेहतर बनाने के लिए सुनाये गये कहानी-क़िस्सों में छुपी है। जो रोज़ मुझे परिवार के बड़े-बुजुर्ग या माँ सुनाया करती थी। उनके द्वारा दिया गाया कहानी क़िस्से सुनाते वक़्त दिया गया यह समय कहीं ना कहीं मेरे अंतर्मन को प्रोग्राम कर रहा था जिसके कारण आज मेरे पास विभिन्न स्थितियों के लिए स्पष्ट विचार होते हैं। यही विचार रोज़मर्रा के जीवन में घटी घटनाओं या फिर विभिन्न स्थिति-परिस्थितियों में सही रास्ता दिखाते हैं, जिन्हें मैं आपसे अपने कॉलम या शो के ज़रिए साझा करता हूँ। आप भी ज़रा सोच कर देखियेगा, मेरे समान आपने भी, अपने बचपन में रोज़ सोने से पहले दादा-दादी, नाना-नानी या फिर परिवार के किसी बड़े से कहानियाँ सुनी होंगी और आज याने वर्तमान में वे कहानियाँ या सीखें कहीं ना कहीं आपका मार्गदर्शन कर रही होंगी। आपके जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही होंगी।’
मेरी बात पूरी होने के पहले ही उन्होंने हाँ कहते हुए समर्थन में सिर हिलाया। मैंने फिर बात आगे बढ़ाते हुए उन सज्जन से कहा, ‘इसीलिए, मैं हमेशा कहता हूँ, ‘कहानियों में जीवन बदलने की शक्ति है!’ और इसका लाभ हमें आज की पीढ़ी तक पहुँचाना होगा, जिससे हम उन्हें भी अपनी जड़ों से जोड़ सकें।’ सही कहा ना साथियों! बच्चों के साथ गुणवत्ता पूर्ण समय बिताते हुए जीवन मूल्य सिखाये बिना संस्कारवान बनाकर संस्कृति और समाज से जोड़ा नहीं जा सकता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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