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Writer's pictureTrupti Bhatnagar

कही, सुनी, सीखी बातें विशेष परिस्थितियों में ही सच होती हैं…

Sep 23, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, ज़िंदगी में हमें जो भी सिखाया या बताया जाता है, वो विशेष परिस्थितियों में ही सच होता है। जैसे, कर्म, दान एवं मदद का महत्व सिखाते वक़्त हमें गीता के पाठ ‘तू कर्म कर, फल की इच्छा मत रख…’, या ‘नेकी कर दरिया में डाल…’ सिखाया जाता है। लेकिन अगर आप बिना सोचे समझे उपरोक्त कार्य करने लगते हैं, तो हमें उपरोक्त भाव के बिलकुल विपरीत बात सिखाते हुए बताया जाता है कि ‘हवन करते समय भी हाथ जल सकता है…’ याने नेकी, मदद, भलाई या सदकर्म करते वक़्त भी ध्यान ना दिया जाए तो आपको नुक़सान हो सकता है। अपनी बात को मैं आपको एक बहुत ही प्यारी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।


बात कई साल पूरानी है, जंगल का राजा शेर अपने बच्चों के लिए भोजन का इंतज़ाम करने के उद्देश्य से अपनी पत्नी शेरनी के साथ शिकार के लिए जंगल के भीतरी इलाक़े में गया। असल में पिछले दो दिनों से अच्छा शिकार हाथ ना लगने के कारण शेर का पूरा परिवार भूख से परेशान था। काफ़ी देर तक जब शेर और शेरनी शिकार से नहीं लौटे तो शेर के बच्चे भूख से बिलबिलाने; तड़पने लगे। तभी वहाँ से एक बकरी का गुजरना हुआ, शेर के छोटे बच्चों को यूँ भूख से तड़पता देख उसे उन पर दया आ गई और वह उन बच्चों को दूध पिलाने लगी।


दूध पीते ही बच्चों ने मस्ती करना; खेलना शुरू कर दिया। तभी शिकार ना मिलने से हताश शेर-शेरनी अपने बच्चों के पास लौट कर आये और वहाँ बकरी को देख ख़ुश हो गये। शेर अभी उस बकरी पर हमला करने की तैयारी ही कर रहा था कि शेर के बच्चों ने उसे बताया कि इस बकरी ने ही उन्हें दूध पिलाकर, भूख से मरने से बचाया है। इतना सुनते ही शेर खुश हो गया और वह बकरी के प्रति कृतज्ञता के भाव से भर गया और फिर बकरी का धन्यवाद करते हुए बोला, ‘मैं तुम्हारा उपकार कभी नहीं भूलूँगा और अब तुम पूरे जंगल में आराम से घूम-फिर सकती हो; मौज कर सकती हो। कोई भी तुम्हें यहाँ नुक़सान नहीं पहुँचायेगा। फिर क्या था बकरी जंगल में पूरी तरह निर्भय होकर रहने लगी। यहाँ तक कि अब तो वह कभी-कभी शेर की पीठ पर चढ़कर भी पेड़ों के पत्ते खा लिया करती थी।


इस दृश्य को जब आकाश में उड़ती एक चील ने देखा तो वह बकरी के पास गई और उससे इसका राज पूछा। इसपर बकरी ने उसे पूरा क़िस्सा सुनाते हुए अंत में कहा, ‘यह उपकार के बदले में मिला उपहार है।’ पूरी कहानी सुन चील बड़ी प्रभावित हुई और उसने भी इसे अपने जीवन में अपनाने का निर्णय लिया। यह सोचकर वह अभी आकाश में थोड़ा ही ऊपर उड़ी थी कि उसे चूहे के छोटे-छोटे बच्चे दलदल में फँसे नज़र आये। उसने तुरंत उन्हें बचाने का निर्णय लिया और उन्हें पकड़कर सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया। चूँकि चूहे के बच्चे काफ़ी देर से भीगे हुए थे इसलिए वे ठंड के मारे काँपने लगे। चील ने उन्हें गर्माहट देने के लिए अपने पंखों की ओट में छिपा लिया, जिससे बच्चों को जल्द ही ठंड से राहत मिली।


बच्चों को सुरक्षित देख अंत में जब चील वहाँ से वापस जाने लगी तो वह यह देख हैरान रह गई कि चूहों के उन बच्चों ने उसके पंखों को ही कुतर दिया है। किसी तरह चील उड़कर वापस बकरी के पास गई और उसे पूरी घटना को सुनाने के बाद बोली, ‘तुमने भी उपकार किया और मैंने भी, फिर हमें अलग-अलग फल क्यों मिला?’ बकरी ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘हमेशा याद रखो, जब भी उपकार करना हो तब शेरों पर करना, चूहों पर नहीं क्योंकि कायर कभी उपकार को याद नही रखते और बहादुर कभी उपकार नही भूलते।’


दोस्तों, साधारण सी लगने वाली यह बात अपने अंदर एक बहुत बड़ी सीख समेटे हुए है। अगर आप इस सटीक बात पर थोड़ा सा विचार कर देखेंगे तो समझ जाएँगे कि मैंने इस लेख की शुरुआत में आपको क्यों कहा था कि ‘ज़िंदगी में हमें जो भी सिखाया या बताया जाता है, वो विशेष परिस्थितियों में ही सच होता है।’ दोस्तों, अगर आपका लक्ष्य जीवन की इन सीखों से हर हाल में लाभ लेना है, तो आपको इन्हें जीवन में प्रयोग में लाते वक्त खुले दिमाग़ से एक बार फिर विचार करना होगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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