Feb 16, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, 2-3 वर्ष के होते-होते हम सब बोलना तो शुरू कर देते हैं, लेकिन कब, कहाँ, कितना और कैसे बोलना है, सीखने में पूरा जीवन भी लग सकता है। इसलिए ही बचपन से हमें हमारे माता-पिता, परिवार के बुजुर्ग और शिक्षक कहते हैं कि सोच-समझकर बोलो। लेकिन इसके बाद भी अक्सर कई लोग इस बात को नजरअंदाज कर जाते हैं और कुछ ऐसा कह जाते हैं जो उन्हें कुछ लोगों के दिल से हमेशा के लिए उतार देता है। आइये एक सूफी कहानी से इस विषय की गंभीरता को सीखने का प्रयास करते हैं।
कई सौ वर्ष पूर्व एक शिकारी जंगल में शिकार के लिए गया, लेकिन पूरे दिन प्रयास करने के बाद भी असफल रहने पर वह एक पेड़ के नीचे बैठ सुस्ताने लगा। तभी अचानक उसे पास ही में एक मानव खोपड़ी पड़ी नजर आई। चूँकि उस समय उसे कोई और काम तो था नहीं, इसलिए अपना मन बहलाने के लिए मजाक में ही उस खोपड़ी से बोला, ‘हेलो! क्या हाल है और अभी क्या कर रहे हो?’ खोपड़ी एकदम से बोली, ‘ठीक हूँ!’
मनोरंजन के रूप में पूछे इस प्रश्न का जवाब खोपड़ी से सुन शिकारी अचंभित रह गया या यूँ कहूँ एकदम घबरा गया। लेकिन किसी तरह ख़ुद के डर और घबराहट पर काबू करते हुए बोला, ‘आपकी यह गति कैसे हुई?’ खोपड़ी उस शिकारी के प्रश्न का जवाब देते हुए बोली, ‘बकवास करने से।’ यह उत्तर सुन शिकारी बेहद चौंक गया और तुरंत भाग कर राजा के पास पहुँचा और हाथ जोड़ कर पूरे उत्साह के साथ सारा घटनाक्रम कह सुनाया। वह मान कर चल रहा था कि अनोखी बात बताने के कारण राजा उसे इनाम देगा। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं क्योंकि राजा को उसकी बात पर यक़ीन ही नहीं हुआ।
इस सबके बाद भी शिकारी अपनी बात पर अड़ा हुआ था। अंत में शिकारी की प्रतिष्ठा देख राजा ने उस पर यकीन किया और दरबारियों को साथ ले जंगल की ओर चल दिया। कई घंटों तक चलने के बाद पूरा क़ाफ़िला उस स्थान पर पहुँचा जहाँ खोपड़ी पड़ी हुई थी। शिकारी उसे देखते ही एक बार फिर ‘हेलो’ बोला, लेकिन इस बार खोपड़ी एकदम शांत रही। शिकारी ने कई बार अलग-अलग तरह से प्रयास किया लेकिन उसे कोई फायदा नहीं हुआ। जिसे देख राजा को लगा कि शिकारी झूठ बोलकर उसे वहाँ तक ले आया है। इसलिए राजा शिकारी पर क्रोधित होते हुए अपने सैनिकों से बोला, ‘इस झूठे और मक्कार शिकारी का सर कलम कर दिया जाए।’ सिपाहियों ने राजा के आदेश का पालन किया और वहाँ से चले गए। राजा के जाते ही पहले से कटी पड़ी गर्दन शिकारी की कटी गर्दन से प्रश्न करते हुए बोली, ‘हेलो! आपकी यह गति कैसे हुई?’ शिकारी की कटी गर्दन बोली, ‘बकवास करने से!’
दोस्तों, निश्चित तौर पर अब आप इस कहानी में छिपे गहरे सन्देश और पूर्व में मेरे द्वारा कही बात को समझ ही गए होंगे। कई बार बिना सोचे-समझें बोलना; बात करना और यह दिखाने का प्रयास करना कि हम बेहतर और बुद्धिमान हैं, कुल मिलाकर नुकसानदेह ही साबित होता है। अर्थात् अपने अनुभव से ज़्यादा दिखाने का प्रयास करना कुल मिलाकर नुकसानदेह ही रहता है। यह ना सिर्फ़ हमारा समय बर्बाद करता है, बल्कि कई बार हमारे लिए मुश्किल स्थितियां भी पैदा करता है। आज के दौर में सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों पर यह कहानी और भी अधिक प्रासंगिक हो जाती है।
दोस्तों, अच्छे और शांत जीवन के लिए हमें यह समझना होगा कि शब्दों की भी एक शक्ति होती है और उनका सही उपयोग करना हमारी जिम्मेदारी है। आत्म-प्रशंसा और अनावश्यक ज्ञान दिखाने की चाह अहंकार को संतुष्टि देती है, लेकिन यह कई बार हमारे लिए घातक भी साबित हो सकता है।
इसलिए, अगली बार जब कुछ कहने का मन हो, तो पहले सोचिए –
१) क्या यह सच में आवश्यक है?
२) क्या यह पूरी तरह सत्य है?
३) क्या इससे किसी को नुकसान तो नहीं पहुंचेगा?
अगर इन सवालों के जवाब सकारात्मक नहीं हैं, तो चुप रहना ही सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है। आखिरकार, शब्द बोलने के बाद वापस नहीं लिए जा सकते, इसलिए उन्हें सोच-समझकर कहना ही बुद्धिमानी है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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