Oct 4, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आइये साथियों आज के लेख की शुरुआत जीवन को सही दिशा देने वाली एक बड़ी ही प्यारी सी कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, सुदूर गाँव में सभी गाँववासी बड़ी आत्मीयता के साथ खुश और मस्त रहा करते थे। उस गाँव में पीने के पानी का एक ही कुँआ था। एक बार उस कुएँ में तीन कुत्ते लड़ते-लड़ते गिर गये जिसके कारण कुएँ का पानी ख़राब होने लगा।
इस समस्या से निजात पाने के लिए गाँव वालों ने पंचायत बुलाने का निर्णय लिया। लेकिन संयोगवश पंचायत द्वारा सुझाए गये उपायों पर सब लोग एकमत नहीं हो पाये। पीने के पानी की बढ़ती क़िल्लत को देखकर सभी गाँव वालों ने गाँव के बाहरी इलाक़े में रहने वाले प्रसिद्ध संत से सलाह लेने का निर्णय लिया और सभी लोग एकत्र होकर उनके पास पहुँच गये। संत के द्वारा अचानक पूरे गाँव सहित आने का कारण पूछने पर सरपंच संत को प्रणाम करते हुए बोले, ‘गुरुवर, बड़ी विकट स्थिति में फँस गये हैं। गाँव के एकमात्र कुएँ से बड़ी बदबू आ रही है इसलिए पीने के पानी की गाँव में क़िल्लत हो गई है।’ संत ने जब बदबू के आने के कारण पूछा तो एक गाँव वाला बोला, ‘गुरुवर, एक दिन तीन कुत्ते आपस में लड़ते हुए उस कुएँ में गिर गये थे। कुएँ की गहराई अधिक होने के कारण वे उसमें से बाहर नहीं निकल पाए और शायद उसी में मर गए। अब आप ही बताइये जिस कुएँ में कुत्ते मर गए हों, उस कुएँ का पानी आख़िर पियें कैसे?’
संत ने गाँव वालों को सलाह देते हुए कहा, ‘देखिए आपको सबसे पहले तो उस कुएँ की शुद्धि कर लेना चाहिये। एक काम कीजिए, आप उसमें १०-२० बाल्टी गंगा जल डालिये। आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा। गाँव वालों ने उसी दिन प्रबंध कर कुएँ में २० बाल्टी गंगाजल डलवाया। लेकिन इससे भी कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ा वे अगले दिन वापस संत के पास पहुँचे और उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत करवाया। संत ने विचार करते हुए कुएँ के पास भगवान की कथा करवाने के लिए कहा।
गाँव वालों ने संत की सलाह अनुसार गाँव में कथा का आयोजन करवाया। लेकिन इससे भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा और वे सब एक बार फिर संत के पास पहुँचे और उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत करवाते हुए बोले, ‘गुरुवर, समस्या तो जस की तस है।’ संत ने इस बार कुएँ में सुगंधित द्रव्य डलवाने का सुझाव दिया। गाँव वालों ने वैसा ही किया लेकिन नतीजा फिर भी वही का वही रहा। वे फिर संत के पास पहुँचे और बोले, ‘गुरुवर, आपके सुझाव अनुसार हमने कुएँ में गंगाजल डाला, गाँव में कथा करवाई, प्रसाद बाँटा और कुएँ में सुगंधित द्रव्य और पुष्प भी डलवाये लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। कुएँ से अभी भी वैसी ही बदबू आ रही है।’
इतना सुनते ही संत बोले, ‘सबसे पहले तो आप लोग मुझे यह बताइए आपने कुएँ में से उन तीनों कुत्तों को बाहर निकलवाया या नहीं?’ गाँववासी आश्चर्यचकित होते हुए बोले, ‘गुरुवर, उसके लिए तो आपने कहा ही नहीं था। वे तो आज भी कुएँ में ही पड़े हुए हैं।’ इतना सुनते ही संत पहले तो मुस्कुराए फिर गंभीर स्वर में बोले, ‘जब तक उन्हें नहीं निकालोगे तब तक इन उपायों का कोई प्रभाव नहीं होगा।’
दोस्तों अब तो आप सभी अंदाज़ा लगा सकते हैं कि गाँव वालों ने अगला कदम क्या उठाया होगा और उसका नतीजा उन्हें क्या मिला होगा। लेकिन अगर आप थोड़ा और गहराई से इस कहानी पर सोचेंगे तो पायेंगे कि यह कहानी असल में हमारी ख़ुद की कहानी है। हमारे अंतर्मन रूपी कुएँ में रोज़ तीन कुत्ते याने काम, क्रोध और लोभ आपस में लड़ते हुए नकारात्मक अनुभवों के रूप में इकट्ठे होते रहते हैं और उसकी सड़ान्ध हमारे वर्तमान को नकारात्मक रूप में बुरी तरह प्रभावित करती है। इस स्थिति में तरह-तरह के जतन करना जैसे पूजा-पाठ, तीर्थयात्रा, टोटके अथवा कोई और ऐसा ही उपाय, कोई लाभ नहीं पहुँचाता है। ऐसी स्थिति में सबसे पहले हमें यह स्वीकारना होगा कि जब तक काम, क्रोध और लोभ रूपी कुत्तों से अपने अंतर्मन को आज़ाद नहीं करेंगे तब तक जीवन को बेहतर याने सुखी बनाने के उपाय किसी काम के नहीं रहेंगे। तो आइए साथियों सबसे पहले हम इन्हें निकालकर बाहर करते हैं और अपने जीवन को उपयोगी बनाते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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