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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

किसी की मजबूरी के सौदागर ना बनें…

Nov 27, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जीवन में कई बार कुछ घटनाएँ ऐसी घट जाती हैं जो इंसानियत, मानवता या ईश्वर के हमेशा आपके आस-पास होने के एहसास या विश्वास को मज़बूत बना जाती हैं। अपनी बात को मैं इस शुक्रवार को घटी एक असामान्य सी घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ। भोपाल स्थित एक विद्यालय का अपना कार्य पूर्ण कर मैं लगभग साढ़े चार बजे फ्री हुआ ही था कि मेरे फ़ोन की घंटी बजी। फ़ोन उठाते ही सामने से एक मित्र का आदेशात्मक स्वर सुनाई दिया, ‘मैंने तुझे एक क्यूआर कोड भेजा है, उसपर तेरी सहूलियत के हिसाब से दो हज़ार से दस हज़ार के बीच पैसे ट्रांसफ़र कर दे।’


दोस्तों, मित्र की आवाज़ में पता नहीं क्या जादू था कि मैंने उस वक़्त, बिना कोई प्रश्न किए, उस क्यूआर पर पैसे भेज दिये। लेकिन बिना वजह जाने पैसा देने के बाद जैसी बेचैनी किसी और को हो सकती थी, ठीक वैसी ही बेचैनी मुझे भी हो रही थी। वैसे इस बेचैनी के पीछे की वजह एक और थी, मित्र स्वयं इतने सक्षम थे कि उन्हें किसी भी स्थिति में इतने कम पैसों की ज़रूरत नहीं पड़ सकती थी। मैंने इस विषय में ज़्यादा सोचने या परेशान होने के स्थान पर शाम को उन्हें सीधे फ़ोन किया और इसकी वजह पूछ ली। मेरे प्रश्न को सुनते ही वे बोले, ‘यार, तुझे कोई दिक़्क़त हो या मन में ज़्यादा ही प्रश्न आ रहे हों तो मैं तेरे पैसे तुझे वापस भेज देता हूँ।’ मैंने किसी तरह बात सँभालते हुए उसे समझाया कि कारण जानने का उद्देश्य पैसे बचाना नहीं है। मेरे मन में तो बस उस कारण को जानने की जिज्ञासा है, जिसके कारण तुमने इतने अधिकार और गर्व के भाव के साथ पैसे देने का कहा था।


मित्र एक पल चुप रहे फिर बोले, ‘यार, तुझे बताने में एक ही समस्या है, तू उस बात को रेडियो पर बोल देगा और पेपर में छपवा देगा।’ उसकी बात सुनते ही मुझे हंसी आ गई, पर मैंने किसी तरह ख़ुद को सम्भालते हुए कहा, ‘देख अगर किसी के अच्छे या बुरे काम से दूसरों को अपना जीवन बेहतर बनाने की प्रेरणा मिल सकती है, तो उसे दूसरों से साझा करने में बुराई क्या है? मेरा तो मानना ही है कि अच्छे और भलाई वाले काम और बातें आज के युग में वायरल होना चाहिए। तभी तो हम नई पीढ़ी को ऐसा करने के लिए प्रेरणा दे पाएँगे।’ मेरी बात सुन मित्र थोड़ा शांत हुआ और मुस्कुराते हुए बोला, ‘यार, आज एक परिचित, जो कि बड़े सभ्य, सौम्य और शांत हैं, मेरे पास आए और आभूषण गिरवी रख कर पैसे माँगने लगे। जब मैंने बातों ही बातों में इसकी वजह जानने का प्रयास करा, तो मैं यह जानकर हैरान रह गया कि वे किसी और के बच्चे की फ़ीस भरने के लिए अपनी पत्नी के गहने गिरवी रख, पैसों का इंतज़ाम कर रहे हैं। अब तू ही बता पूरी बात जानने के बाद मुझे क्या करना चाहिए था…’


दोस्तों, मेरे पास मित्र के प्रश्न का इसके सिवा कोई और जवाब नहीं था कि तूने जो किया, वह एकदम सही था। ख़ैर मैंने मित्र से आग्रह किया कि वो मुझे उन सज्जन से मिला दे, तो उसने यह कहते हुए साफ़ इनकार कर दिया कि वे इस विषय में किसी के भी सामने ना तो अपनी और ना ही उस ज़रूरतमंद बच्चे की पहचान उजागर करना चाहते हैं। वैसे यही तो हमारे समाज में सिखाया भी जाता है, ‘जब सीधा हाथ दान दे, तो उल्टे हाथ को भी पता नहीं लगना चाहिए।’ लेकिन इस विषय में मेरी धारणा थोड़ी अलग है, जब कोई अच्छा, प्रेरणा देने वाला काम करे तो उसका पता सबको चलना चाहिए, अन्यथा समाज में अच्छाई का भाव फैलेगा कैसे?


ख़ैर इस घटना और बात को यहीं छोड़ते हैं और एक गंभीर विषय पर कम शब्दों में चर्चा कर लेते हैं। उपरोक्त किस्से में तो उधार लेने की वजह सेवा करने की भावना थी। लेकिन कई बार ऐसी स्थिति में आपके पास कोई मजबूर, परेशान या परिस्थिति का मारा व्यक्ति भी आ सकता है। उस वक़्त अगर आप उसकी मदद ना भी कर पाएँ, तो कोई बात नहीं, बस उसकी मजबूरी का फ़ायदा मत उठाइएगा क्योंकि कोई भी साधन जो किसी की मजबूरियों का फ़ायदा उठाकर लिया जाता है, वह ज़िंदगी में सुख नहीं देता है। उसका मूल्य हमें इसी जीवन में किसी ना किसी रूप में चुकाना पड़ता है। वैसे भी दोस्तों हमारी संस्कृति में यही तो सिखाया जाता है कि किसी की मजबूरी न खरीदें बल्कि उसके दर्द या मजबूरी को समझ कर, अपना पूर्ण सहयोग दें। जी हाँ दोस्तों, मदद और सहयोग करना ही सच्चा तीर्थ करना है। यही सच्चा कर्म और ईश्वर की बन्दगी है; एक यज्ञ है। एक बार विचार कर देखियेगा…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

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