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कोई भी इंसान ‘शून्य’ नहीं होता…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Sep 15
  • 3 min read

Sep 15, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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आज सुबह की शुरुआत श्री मदन जैन जी द्वारा साझा किए गए एक किस्से से हुई, जो रूस में पढ़ रहे एक छात्र के अनुभव पर आधारित है। उस युवा ने एक लेख में अपना अनुभव साझा करते हुए बताया था कि सामान्यतः रूस में परीक्षा अधिकतम 5 अंकों की होती है और अगर इन परीक्षाओं में कोई छात्र एक भी प्रश्न का उत्तर न दे पाये, तो भी उसके शिक्षक परीक्षार्थी को शून्य नहीं बल्कि 2 अंक देते हैं।


शुरुआत में उस छात्र को यह बात अजीब लगी। इसलिए एक दिन उस छात्र ने अपने प्रोफेसर, डॉ. थिओडोर मेड्राएव से पूछा, “सर, जब हमारी कक्षा के एक छात्र ने परीक्षा पत्र में एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया, तो भी आपने उसे 2 अंक क्यों दिए? क्या उसे शून्य देना सही नहीं होगा?” प्रश्न सुन पहले तो प्रोफेसर मुस्कुराए फिर धीमी लेकिन गंभीर आवाज में जीवन का गहरा सत्य उजागर करते हुए बोले, “हम किसी इंसान को शून्य कैसे दे सकते हैं? तुम ही सोच कर देखो जिसने सुबह जल्दी उठकर व्याख्यानों में भाग लिया, इतनी अधिक ठंड में यात्रा कर समय पर परीक्षा दी, रातों को जागकर पढ़ाई की, नोटबुक, पेन और किताबों पर पैसा खर्च किया, अपने जीवन के सुखों को छोड़कर अध्ययन की राह को चुना—क्या यह सब व्यर्थ है?”


इतना कह कर वे एक क्षण के लिए रुके, फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले, “मेरी नजर में तो नहीं क्योंकि अंक सिर्फ उत्तर पुस्तिका के लिए नहीं होते, वे इंसान के प्रयास, उसके संघर्ष और उसके अस्तित्व को भी मान्यता देते हैं।” उनके इस जवाब ने उस छात्र को अचंभे में डाल दिया क्योंकि उसने कभी इंसान के मूल्य को उसके प्रयासों के आधार पर परखने के विषय में सोचा ही नहीं था।


दोस्तों, इस लेख को पढ़कर मैं भी सोच में पड़ गया। सच है, हम अक्सर जीवन को सिर्फ परिणामों के आधार पर परखते हैं। अगर सफलता मिली तो वाहवाही, और असफलता मिली तो आलोचना। लेकिन इस लेख ने मुझे एहसास करवाया कि हर इंसान का प्रयास, उसकी जद्दोजहद, उसके सपनों के लिए किया गया त्याग कभी भी शून्य नहीं हो सकता।


दोस्तों, रूस में पढ़ रहे छात्र के साथ घटी यह घटना हमें सिखाती है कि इंसान की कीमत उसके नतीजों से नहीं, बल्कि उसके प्रयासों और इरादों से लगाई जानी चाहिए।

1) एक खिलाड़ी मैदान में हार जाए, लेकिन उसकी मेहनत कभी शून्य नहीं होती।

2) एक छात्र परीक्षा में अच्छे अंक न ला पाए, पर उसकी कोशिशें व्यर्थ नहीं होतीं।

3) एक कर्मचारी का प्रोजेक्ट विफल हो जाए, लेकिन उसकी निष्ठा और परिश्रम की गिनती ज़रूर होती है।


दोस्तों, हमें समाज में व्यापक पैमाने पर व्याप्त इस कमी को दूर करना होगा। याने हमें जल्दबाज़ी में दूसरों को उनकी विफलताओं के लिए “शून्य” ठहरा देना बंद करना होगा। क्योंकि यह सोलह आने सच है कि हर इंसान संघर्ष करता है। हर व्यक्ति अपने तरीके से प्रयास करता है। कुल मिलाकर कहूँ तो हमें किसी की भी असफलता को “अयोग्यता” का नाम देना बंद करना होगा।


दोस्तों, जीवन में असली सफलता यही है कि हम दूसरों को भी उनके प्रयासों के लिए सराहना दें। हर इंसान में मूल्य है, भले ही उसके प्रयासों का परिणाम वैसा न हो जैसी उम्मीद थी। याद रखिए, किसी भी इंसान का मूल्य शून्य नहीं हो सकता क्योंकि हर आत्मा का मूल्य है, हर प्रयास की गिनती है, और हर इंसान सम्मान के योग्य है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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