क्या आपने आज अपनी धार तेज़ की?
- Nirmal Bhatnagar
- Apr 30
- 3 min read
Apr 30, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, क्या आपने आज अपनी धार तेज़ की? नहीं समझे? चलिए कोई बात नहीं एक कहानी से पहले हम पूरे विषय को समझने का प्रयास करते हैं। कुंदन काका एक फैक्ट्री में वर्षों से पेड़ काटने का कार्य कर रहे थे। उनकी कार्यकुशलता और दक्षता से फैक्ट्री मालिक अत्यंत प्रसन्न रहते थे। वे अक्सर नए मजदूरों को प्रेरणा देने के लिए काका का उदाहरण प्रस्तुत करते थे। यही कारण था कि अधिकांश मजदूर काका से ईर्ष्या करने लगे थे।
एक दिन एक नवयुवक मजदूर ने फैक्ट्री मालिक के सामने काका की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए प्रतियोगिता की चुनौती दे डाली। जिसे कुंदन काका सहित फैक्ट्री मालिक ने सहर्ष स्वीकार लिया। इस प्रतियोगिता के नियम बड़े सरल थे; जो मजदूर दिन के अंत तक सबसे अधिक पेड़ काटेगा, वही विजेता घोषित होगा। प्रतियोगिता के दिन सभी मजदूर पूरे जोश के साथ कार्य में जुट गए। शुरुआत के कुछ घंटों में नवयुवक मजदूरों ने काका से अधिक पेड़ काट लिए। जिसे देख सभी को ऐसा लगने लगा था कि आज की प्रतियोगिता में नवयुवक जीत जाएँगे। इसके बाद भी कुंदन काका अपनी रोज़ की गति और तरीके से काम कर रहे थे और हद तो तब हो गई जब वे अपने नियमित समय पर विश्राम करने चले गए। यह देखकर सभी ने अनुमान लगाया कि इस बार काका हार जाएंगे। लेकिन प्रतियोगिता समाप्त होने के बाद आए अंतिम परिणाम ने सभी को चौंका दिया।
दिन के अंत में जब पेड़ों की गिनती हुई, तो काका ने सभी को पछाड़ते हुए सबसे अधिक पेड़ काटे थे। विजेता घोषित होने पर नवयुवक मजदूर ने काका से उनकी सफलता का रहस्य पूछा। काका मुस्कुराते हुए बोले, “विश्राम के समय में कुछ मिनिट आराम करने के बाद प्रतिदिन मैं अपनी कुल्हाड़ी की धार तेज कर लेता हूँ। इसी वजह से मैं कम समय और प्रयास में अधिक पेड़ काट पाता हूँ।” यह उत्तर सुनकर सभी मजदूर आश्चर्यचकित रह गए।
दोस्तों, यह कहानी हमें एक महत्वपूर्ण शिक्षा देती है, केवल कठिन परिश्रम ही नहीं, बल्कि अपनी योग्यता को समय-समय पर निखारना भी सफलता के लिए आवश्यक है। वैसे यह सीख आज के दौर में और भी अधिक प्रासंगिक हो जाती है। चाहे आप किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हों, समय के साथ आपके कौशल पुराने पड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक कुशल कंप्यूटर इंजीनियर भी यदि नयी तकनीकों और भाषाओं को नहीं सीखता, तो कुछ वर्षों में अप्रासंगिक हो सकता है। इसलिए आवश्यक है कि हम कुंदन काका की तरह समय निकालकर अपने कौशल की धार तेज करें। नए ज्ञान और तकनीकों को अपनाएं, और अपने उद्योग या क्षेत्र में हो रहे परिवर्तनों के प्रति सजग रहें।
इसके अलावा, यह कहानी स्मार्ट वर्क की महत्ता भी समझाती है। केवल मेहनत करना काफी नहीं है; सही रणनीति, धैर्य और अनुशासन भी उतने ही आवश्यक हैं। साथ ही एक बात और याद रखियेगा, आराम करना समय की बर्बादी नहीं बल्कि आत्म-विकास का एक अवसर है।
निष्कर्ष:
अंत में निष्कर्ष के तौर पर सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा कि तेज़ी से काम करना सफलता की गारंटी नहीं है। बल्कि सही तरीके से, निरंतर खुद को निखारते हुए और विवेक पूर्ण रणनीति अपनाते हुए आगे बढ़ना ही सच्ची सफलता का मार्ग है। कुंदन काका की तरह अगर हम भी अपनी योग्यता की धार समय-समय पर तेज करते रहें, तो निश्चित ही हम भी अपने क्षेत्र के विजेता बन सकते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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