May 23, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक प्रश्न से करता हूँ। चलिए बताइए, आजकल आप ताज़ा भोजन कर रहे हैं या बासी? आप भी सोच रहे होंगे, यह कैसा फ़ालतू प्रश्न कर रहा हूँ मैं आपसे। हम सब निश्चित तौर पर ताज़ा खाना ही खाते हैं। तो मैं कहूँगा जवाब देने से पहले ज़रा यह कहानी सुन लीजिए…
बात कई साल पुरानी है गुड्डी की शादी शहर के सबसे बड़े अमीर, लेकिन बेहद ही कंजूस सेठ के लड़के से हुई। उस धनाढय सेठ का हाथ दान-पुण्य तो छोड़िये ज़रूरत के अन्य कार्यों के लिए भी नहीं खुलता था। इसके ठीक विपरीत गुड्डी बहुत कुलीन और सत्संगी परिवार से थी। उसके परिवार में बड़े-बुजुर्गों की सेवा करना; ज़रूरतमंद लोगों को दान देना; साधु-संतों का सत्कार करना बड़ा सामान्य था। इसलिए उच्च संस्कारी गुड्डी को सेठ का कंजूसी भरा व्यवहार बड़ा परेशान किया करता था। वैसे तो गुड्डी भी व्यर्थ के ख़र्चों के ख़िलाफ़ थी परंतु लोक मांगल्य जैसे अच्छे कार्यों में पैसे खर्चने में हिचका नहीं करती थी। इसलिए वह अपने ससुर जी का व्यवहार याने उनके लोभी-लालची मन को बदलने के लिए प्रयत्नशील रहती थी। वह चाहती थी कि उनके ससुर जी भी परोपकारी बन जाए।
एक दिन गुड्डी घर के बाहर बैठ कुछ काम कर रही थी। तभी उसकी पड़ोसन ने उसे आवाज़ देखकर पूछा, ‘क्यों बहना, खाना खा लिया या नहीं?’ गुड्डी के हाँ में सिर हिलाते ही उसने बात आगे बढ़ाते हुए पूछा, ‘क्या-क्या खाया आज?’ प्रश्न सुनते ही गुड्डी बोली, ‘बहन, आज तो हमारे यहाँ रसोई ही नहीं बनी। हमने तो आज बासी खाना खाया। आने वाले समय में तो हमें उपवासी बनना पड़ेगा।’ गुड्डी की कही यह बात बैठक में बैठे ससुर जी ने भी सुन ली। वे एकदम से चौंक कर उठे और अंदर जाकर अपनी पत्नी पर बरस पड़े और बोले, ‘ठीक है मैं कंजूस हूँ, परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि मेरी समाज में कोई इज्जत नहीं है। तुमने बहू को आज बासी खाना क्यों खिला दिया? देखो, अब वह पूरे मोहल्ले में मेरी कंजूसी का ढिंढोरा पीट रही है।’
सेठ की बात सुनते ही सेठानी चौंक कर बोली, ‘तुम्हें किसने कहा? मैंने कभी बहू को बासी खाना नहीं दिया। मैं इतनी मूर्ख नहीं हूँ कि इतना भी न जानूँ।’ सेठानी की बात सुनते ही ससुर ने आवाज़ देकर गुड्डी को बुलाया और बोला, ‘बेटा तुमने तो आज ताज़ा भोजन किया है फिर तुम पड़ोसन से झूठ क्यों बोल रही थी कि तुमने बासी खाना खाया है?’ गुड्डी एकदम गंभीर लेकिन नम्र स्वर में बोली, ‘पिताजी मैंने सौ प्रतिशत सत्य कहा है। क्या आप जानते हैं हम इतनी धन-दौलत और अनेकों सुख-सुविधाओं के साथ इतने आराम से अपना जीवन क्यों जी पा रहे हैं?’ सेठ कुछ जवाब देते उससे पहले ही बुद्धिमान गुड्डी बोली, ‘क्योंकि पूर्व जन्म में हमने पुण्य किए थे। अर्थात् आज हम जैसे भी हैं वह वास्तव में हमारे पूर्व जन्मों में किए गए पुण्य करमों का नतीजा है। इसलिए हमारे आज एक सुख को बासी आहार के समान माना जा सकता है। इसलिए मैंने पड़ोसन से कहा था कि ’हमने आज बासी खाना खाया है।’
दूसरी बात इस जन्म में हमारे पास जितना भी धन है, उससे हमने किसी भी तरह का दान-पुण्य, परोपकार या समाज कल्याण का कार्य नहीं किया है। इसका अर्थ हुआ अगले जन्म के लिये हमने कोई पुण्य इकट्ठा नहीं किया है। इसलिए अगले जन्म में हमें उपवास करना पड़ेगा। अब आप ही बताइये मैंने सत्य कहा था या नहीं?’
बहू की बात सुनते ही सेठ-सेठानी एकदम प्रसन्न हो गये। आज पहली बार उनकी बुद्धि पर से लोभ का पर्दा हटा था और उन्हें परोपकार और अच्छे कर्मों की शक्ति का एहसास हुआ था। वे एकदम खुश होते हुए बोले, ‘तुम्हारी जैसी सत्संगी और परोपकारी बेटी पाकर मैं धन्य हो गया हूँ गुड्डी बेटी। तुमने मुझे जीवन जीने की सही राह दिखाई है। उसी दिन से सेठ और सेठानी दोनों ने अपने धन का सदुपयोग करना शुरू कर दिया और आत्म संतोष के साथ रहने लगे। असल में गुड्डी की बातों ने उन्हें समझा दिया था कि परोपकार से प्राप्त होने वाली आंतरिक प्रसन्नता ही जीवन का सार है।
दोस्तों, अब मैं आपसे एक बार फिर वही प्रश्न पूछता हूँ, ‘क्या आज आपने ताज़ा खाना खाया?’ अब अगर आपका जवाब ‘नहीं’ है तो मैं कहूँगा; आज ही से परोपकार और समाज कल्याण के कार्य करना शुरू कर दीजिए। यक़ीन मानियेगा यह ना सिर्फ़ आपके जीवन को बेहतर बनायेगा बल्कि इस समाज; इस देश को भी नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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