Sep 11, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, पिछले दिनों एक बहुत ही बेहतरीन क़िस्सा सोशल मीडिया पर पढ़ने को मिला। मैं इस लेख के लेखक या पात्र से तो परिचित नहीं हूँ लेकिन इस क़िस्से में छिपे दिल को छू जाने वाले संदेश के कारण इसे आप से साझा करने से ख़ुद को रोक नहीं पाया। अगर आपको यह क़िस्सा आपके दिल को गुदगुदा पाता है तो दिल की गहराइयों से इसके लेखक का शुक्रिया अदा कीजियेगा। तो चलिए शुरू करते हैं…
बात कई साल पुरानी है सेना के एक मेजर १५ जवानों की टुकड़ी लिए हिमालय पर्वत पर स्थित अपनी चौकी पर जा रहे थे। रास्ते में चल रही ठंडी बर्फीली हवाओं के कारण मेजर ने अपने सिपाहियों से कहा, ‘अगर इस कड़ाके की ठंड में एक कप गर्म चाय मिल जाती, तो मज़ा आ जाता। यह कहके वे अभी थोड़ा ही आगे बढ़े थे कि उनका ध्यान एक जर्जर सी चाय की दुकान पर गया लेकिन संयोगवश उस पर ताला लगा हुआ था। ठंड, भूख, थकान और जवानों के आग्रह के चलते मेजर ने दुकान का ताला तोड़ने की इजाज़त दे दी।
ताला तोड़ते ही दुकान के अंदर चाय बनाने का सभी सामान एवं बिस्किट आदि देख सभी सिपाही खुश हो गये। चाय-बिस्किट खाने के बाद सभी सिपाही तरोताज़ा होकर आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे। लेकिन मेजर साहब को यूँ चोरी करके चाय पीना और बिस्किट खाना अखर रहा था। आत्मग्लानि के चलते उन्होंने अपने पर्स में से एक हज़ार रुपये का एक नोट निकाला और दुकान में रखे चीनी के डिब्बी की नीचे रख कर, ठीक तरीक़े से दुकान का दरवाज़ा बंद कर आगे बढ़ गये।
तीन माह की ड्यूटी पूर्ण कर सेना की वही टुकड़ी अपने मेजर के साथ वापस लौटते समय उसी चाय की दुकान को खुला देख, ख़ुशी के साथ वहाँ कुछ देर चाय-पानी के साथ विश्राम करने के उद्देश्य से रुक गये। दुकान का मालिक बूढ़ा व्यक्ति इतने ग्राहकों को एक साथ देख कर ख़ुश हो गया और पूरे मनोयोग के साथ सभी के लिए चाय बनाने में जुट गया। मेजर व कुछ जवान चाय पीते-पीते उस बूढ़े दुकानदार से चर्चा करने लगे और बातों ही बातों में पहाड़ी के ऊपर इतने दुर्गम स्थान पर चाय की दुकान चलाने के अनुभव पूछने लगे।
बूढ़े दुकानदार ने उन्हें कई रोचक क़िस्से ईश्वर का धन्यवाद करते हुए सुनाये। इस तरह बार-बार भगवान का शुक्रिया अदा करते देख एक जवान उस बूढ़े व्यक्ति से बोला, ‘बाबा, आप तो अपने भगवान के प्रति इतने समर्पित हैं। अगर वह वाक़ई होता तो क्या आपको इतने बुरे हाल में रखता?’ इतना सुनते ही बूढ़े बाबा एकदम गंभीर हो गये और बोले, ‘नहीं-नहीं साहब, ऐसा नहीं कहते भगवान के बारे में। वाक़ई इस दुनिया में भगवान है और मैंने तो उन्हें साक्षात अनुभव किया है।’
बूढ़े बाबा के अंतिम वाक्य ने सभी जवानों के अंदर जिज्ञासा का तूफ़ान पैदा कर दिया और सभी के सभी जवान उस बूढ़े बाबा को प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगे। बाबा अपने अनुभव से तत्काल समझ गये कि जवानों के मन में क्या चल रहा है, इसलिए बाबा ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘साहब, मेरे इकलौते बेटे के साथ तीन माह पहले आतंकवादियों ने बहुत मार-पीट करी थी। लेकिन जब उन्हें इस बात का अंदेशा हुआ कि उसके पास कोई जानकारी नहीं है तो उन्होंने उसे अधमरी हालत में रास्ते में छोड़ दिया। उस वक़्त मुझे कई दिनों के लिए दुकान बंद कर अस्पताल में रहना पड़ा। मैं बहुत आर्थिक तंगी में आ गया था और आतंकवादियों के डर से कोई भी मुझे उधार देने के लिए राज़ी नहीं था। ऐसे में दवाई ना ख़रीद पाने की स्थिति में मेरे बच्चे की जान जा सकती थी। मैं बहुत परेशान था; मैं रोया भी बहुत; मैंने भगवान से प्रार्थना भी करी और मदद माँगी।
अगले दिन कोई आस ना देख मैं दुकान पर पहुँचा तो ताला टूटा देख डर गया। लेकिन उस रात भगवान मेरी दुकान में आये और मेरे लिये चीनी के डिब्बे के नीचे हज़ार रुपये का नोट रख गये। मेरे लिये उस एक हज़ार रुपये की क़ीमत क्या थी शायद आप समझ नहीं पायेंगे। लेकिन साहब भगवान तो है।’ भगवान के होने का विश्वास बाबा की आँखों में देख मेजर की आँखों में भी आँसू आ गये और उन्होंने आँखों ही आँखों में सैनिकों को चुप रहने का इशारा किया और चाय का बिल अदा कर, बूढ़े को गले लगाते हुए बोले, ‘हाँ बाबा! मैं सहमत हूँ, भगवान तो वाक़ई है और हाँ आपने चाय बहुत अच्छी बनाई थी।’
दोस्तों, उस दिन सैनिकों ने पहली बार अपने मेजर की आँखों में चमकते हुए पानी का दुर्लभ साक्ष्य अनुभव किया था क्योंकि बूढ़े बाबा की आँखों में सच्चाई जो थी। असल में बूढ़े बाबा जानते थे कि भगवान हर जगह तो स्वयं नहीं पहुँच सकता है इसीलिए तो वह किसी बंदे को अपना दूत या माध्यम बनाकर ज़रूरतमंद तक मदद पहुँचा देता है। जी हाँ साथियों, हक़ीक़त में तो हमें भी नहीं पता है कब, कहाँ भगवान हमें ‘भगवान’ बना के भेज दे। इसलिए हमेशा लोगों की हर संभव मदद करने के लिए तैयार रहें।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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