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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

क्रोध के नुक़सान से बचना हो तो करें यह

Feb 11, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों, भावों की अधिकता सामान्यतः हमेशा नुक़सानदायक ही रहती है और अगर भाव नकारात्मक हो तो स्थिति और भी ज़्यादा गंभीर हो जाती है। उदाहरण के लिए आप क्रोध को ही लेकर देख लीजिए, जो कि एक नकारात्मक भाव है। इसकी अगर अधिकता होगी तो यह संबंधों को भी मुश्किल में डाल सकता है। वैसे आप मेरी बात पर सहमत होने के स्थान पर, अपने आस-पास मौजूद उन लोगों को भी याद करके देख सकते हैं जिन्होंने क्रोध की अधिकता के चलते अपने संबंधों को तबाह किया होगा। अब आपको शायद मेरी बात उचित लग रही होगी और आप साथ ही यह भी सोच रहे होंगे कि इससे बचने के लिए क्या किया जाए? तो चलिए, इस बात का समाधान हम अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति लिंकन से जुड़ी एक घटना से सीखने का प्रयास करते हैं।


अमेरिकी राष्ट्रपति लिंकन के कार्यकाल में अमेरिकी सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रक्षामंत्री के एक महत्वपूर्ण ऑर्डर को समझने में बड़ी भूल कर दी। जब यह बात रक्षामंत्री को मालूम पड़ी तो वे काफ़ी नाराज़ हो गये। लिंकन उन्हें देखते ही पहचान गये कि वे काफ़ी क्रोध में हैं। जब उन्होंने रक्षामंत्री से इस विषय में पूछा तो वे बोले, ‘श्रीमान, आज काफ़ी बड़ी गलती हो गई है। हमारी सेना के एक जनरल ने एक महत्वपूर्ण ऑर्डर को समझने में बड़ी भूल कर दी है। जिसकी वजह से हमारी आगामी योजना को बड़ा नुक़सान पहुँचा है।’ राष्ट्रपति लिंकन के समक्ष अपनी कार्यशैली प्रदर्शित करते हुए रक्षामंत्री ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘लेकिन महोदय आप चिंता मत कीजिए और बस देखिए कि मैं उस जनरल के बच्चे की कैसी खिंचाई करता हूँ। मैं अभी उसे एक कड़क पत्र लिख कर इस चूक का कारण बताने का कहता हूँ।’


लिंकन, जो इस वक़्त तक बहुत अच्छे से रक्षामंत्री के तेवर समझ चुके थे, ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘ज़रूर, आप उसे कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए एक कड़ा पत्र लिखें और हाँ याद रखियेगा उस पत्र में कठोर से कठोर शब्दों का प्रयोग कीजियेगा। राष्ट्रपति से स्वीकृति मिलते ही रक्षामंत्री उस जनरल के लिए पत्र लिखने बैठ गये। इस पत्र में उन्होंने अपने मन की भड़ास निकालते हुए खूब कटु शब्दों का इस्तेमाल करा।पत्र पूरा होने पर वे उसे लेकर राष्ट्रपति के पास पहुँचे और उनकी मेज़ पर पत्र रखते हुए बोले, ‘श्रीमान, एक बार आप भी इस पत्र का अवलोकन कर लें। आपके बताये अनुसार मैंने बहुत कड़क भाषा में इस पत्र को लिखा है।’


राष्ट्रपति लिंकन ने रक्षामंत्री की ओर बिना देखे अर्थात् उन्हें लगभग नज़रंदाज़ करते हुए, सीधे कहा, ‘इसकी ज़रूरत नहीं है। आप इस पत्र को फाड़ कर फेंक दीजिए। ऐसे पत्र मन की भड़ास निकालने के लिए लिखे जाते हैं। मैं सदैव ऐसा ही करता हूँ, अब तक २-४ पत्र तो आपके नाम ही लिख कर फाड़ चुका हूँ। यक़ीन मानियेगा, पत्र को फाड़ते ही आप काफ़ी रिलैक्स हो जाएँगे।’ लिंकन का जवाब सुन रक्षामंत्री पहले तो चौंक गए, फिर कुछ सोचते हुए पत्र फाड़ने लगे। उन्हें ऐसा करते देख लिंकन एक बार फिर बोले, ‘मैं समझता हूँ ऐसा करके आपने अपने क्रोध पर काबू पा लिया होगा।’


दोस्तों, मुझे नहीं पता लिंकन के सुझाव का रक्षामंत्री पर क्या असर पड़ा। लेकिन मेरा तो यही मानना है कि क्रोध के भाव में सामने वाले को तीखी प्रतिक्रिया देने के स्थान पर किसी अन्य तरीक़े से भड़ास निकाल लेना हमेशा ज़्यादा बेहतर रहता है। इसका सबसे बड़ा फ़ायदा यह रहता है कि आप ख़ुद को सामान्य रखने के साथ-साथ रिश्तों को बिगाड़ने से बचा भी लेते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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